!! श्रीराधाचरितामृतम् – 2 !!
( राधे ! चलो अवतार लें … )
भाग 2
श्रीराधा रानी क्या हैं फिर ? वज्रनाभ नें फिर पूछा ।
वो भी चन्द्र हैं , पूर्ण चन्द्र ! महर्षि का उत्तर ।
कहाँ कि चन्द्र ? वज्रनाभ आनन्दित हैं , पूछते हुए ।
वत्स वज्रनाभ ! श्रीकृष्ण के हृदय समुद्र में जो संयोग वियोग कि लहरें चलती और उतरती रहती हैं ……..उसी समुद्र में से प्रकटा चन्द्र है ये श्रीराधा …..।
तो फिर ये दोनों श्रीराधा कृष्ण कौन हैं ?
दोनों चकोर हैं और दोनों ही चन्द्रमा हैं ………..कौन क्या है कुछ नही कहा जा सकता ………इसे इस तरह से माना जाए …….. राधा ही कृष्ण है और कृष्ण ही राधा है ………….क्या वज्रनाभ ! प्रेम कि उस उच्चावस्था में अद्वैत नही घटता ? वहाँ कौन पुरुष और कौन स्त्री ?
उसी प्रेम कि उच्च भूमि में विराजमान हैं ये दोनों अनादि काल से … ……..इसलिये राधा कृष्ण दोनों एक ही हैं ……..ये दो लगते हैं ……..पर हैं नही ?
हे वज्रनाभ ! जो इस प्रेम रहस्य को समझ जाता है ……वह योगियों को भी दुर्लभ “प्रेमाभक्ति” को प्राप्त करता है ।
इतना कहकर भावसमाधि में डूब गए थे महर्षि शांडिल्य ।
हे राधे ! जय राधे ! जय श्री कृष्ण जय राधे !
“ये आवाज काफी देर से आरही है ……देखो तो कौन हैं ?
विशाखा सखी नें ललिता सखी से कहा ।
कहो ना ! ज्यादा शोर न मचाएं ………..वैसे भी हमारे “प्यारे” आज उदास हैं ……….उनका कहीं मन भी नही लग रहा ।
पर ऐसा क्या हुआ ? ललिता सखी नें विशाखा सखी से पूछा ।
प्यारे अपनी प्राण “श्रीजी” को चन्द्रमा दिखा रहे थे ……….और दिखाते हुये बोले ………”तिहारो मुख तो चन्द्रमा कि तरह है मेरी प्यारी !
बस ….रूठ गयीं हमारी राधा प्यारी ! विशाखा सखी नें कहा ।
पर इसमें रूठनें कि बात क्या ? ललिता सखी फूलों कि सेज लगा रही थी ………..और पूछती भी जा रही थी ।
जब प्यारे नें अपनी प्राण श्रीराधिका से …..उनके चिबुक में हाथ रखकर, उनके कपोल को छूते कहा …..”चन्द्र कि तरह मुख है तुम्हारो”……
ओह ! तो क्या मेरे मुख में कलंक है ? मेरे मुख में काला धब्बा है !
बस श्रीराधा प्यारी रूठ गयीं ।
ओह ! ललिता सखी भी दुःखी हो गयी…………पर श्याम सुन्दर को ये सब कहनें कि जरूरत क्या थी ? ।
पर श्रीराधा रानी को भी बात बात में मान नही करना चाहिए ना !
विशाखा सखी नें कहा ।
प्रेम बढ़ता है………प्रेम के उतार चढाव में ही तो प्रेम का आनन्द है ।
यही तो प्रेम का रहस्य है ……..रूठना ……….फिर मनाना ………।
श्रीराधे ! जय जय राधे ! जय श्री कृष्ण जय जय राधे !
अरी अब तू जा ! और देख ये कौन आवाज लगा रहा है ……..कह दे हमारे श्याम सुन्दर अभी उदास हैं ……क्यों कि उनकी आत्मा रूठ गयीं हैं ……अब वो मनावेंगे ।……..जा ललिते ! जा कह दे ।
ललिता सखी बाहर आयी ………..कौन हैं आप ? और क्यों ऐसे पुकार रहे हैं ………क्या आपको पता नही है ये निकुञ्ज है ……..श्याम सुन्दर अपनी आल्हादिनी के साथ विहार में रहते हैं ।
हमें पता है सखी ! हमें सब पता है …….पर एक प्रार्थना करनें आये हैं हम लोग ……….उन तीनों देवताओं नें हाथ जोड़कर प्रार्थना कि ललिता सखी से ।
पर ………कुछ सोचती हुई ललिता सखी बोली …..आप लोग हैं कौन ?
हम तीनों देव हैं ……….ब्रह्मा विष्णु और ये महेश ।
अच्छा ! आप लोग सृष्टि कर्ता , पालन कर्ता और संहार कर्ता हैं ?
ललिता सखी को देर न लगी समझनें में ………फिर कुछ देर बाद बोली …..पर आप किस ब्रह्माण्ड के विष्णु , ब्रह्मा और शंकर हैं ?
क्या ? ब्रह्मा चकित थे……..क्या ब्रह्माण्ड भी अनेक हैं ?
ललिता सखी हँसी………….अनन्त ब्रह्माण्ड हैं हे ब्रह्मा जी ! और प्रत्येक ब्रह्माण्ड के अलग अलग विष्णु होते हैं ….अलग ब्रह्मा होते हैं और अलग अलग शंकर होते हैं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल ……..
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