🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚 विरही- गोपी- उध्धव छे- संवाद-१५🦚
🌹 भ्रमर -गीत🌹
🪷 गोपी-मधुबन भावमय संवाद🪷
🍁 मधुबन की हरियाली देख विरही गोपी कहती है,
👉 हे ‘मधुबन’ हम श्याम की याद में जल रही है और तुम मदमस्त हो। हमारी तरह तुझे श्याम का विरह क्यों नहीं है? तुम्हारे पेड़ों की डाल पर बैठे प्रभु वेणु बजाकर वेणु नॉद से सारे जंगल के जीव मुग्ध हो जाते हैं, मुनि समाधि में ध्यान लग जाता था। हे मधुबन तेरी याददाश्त कम हो गई, तब ही तू मस्त हो फल-फूल रहा है। क्या श्याम विरह तुझे क्यों नहीं ?
🪷 गोपी! मधुबन अब मन को नहीं भा रहा है प्रभु विरह ताप में और गोपियाँ असहाय दुःखी है। नित्य क्रम यमुना जल भरने यमुना किनारे जा गोपियाँ प्रभु स्मरण में विरह में बातें करती हैं :
🍁 यमुना तट पर एक गोपी निराशा भाव से कहती है क्या श्याम हमें दो शब्द चिट्ठी नहीं लिख सकता है? दो कोड़ी के कागज का, शाही ठाठ ज्यादा कीमती है? इस कारण चिट्ठी नहीं लिख भेजी?
अरे सखी क्या करें! अपन इस पार है और नटखट श्याम उस पार है। बीच में विरह अग्नि है, नहीं तो तैर कर पार कर श्याम पास पहुँच जाते। श्याम का मन कठोर हो गया है?
दूसरी गोपी कहती है, अरे जाने भी दे, अपन सभी ने कितने संदेश, पत्र भेंजे? अरे हमारे पत्रों से मथुरा के कुएं भर गए होंगे? उसे क्या फिकर हमारी? कितने राहगीरों संग अनेकों पत्र भेजे फिर भी कोई खबर नहीं भेजी। सखी, राहगीर को राजकाज का घीम में रोक लिया होगा, ऐसा लगता है?
एक गोपी मजाक व्यंग्य में बोलती है, सखी सुनो! मुझे लगता है सभी राहगीर कही स्वर्ग सिधार तो नहीं गये ?
सखी ! अब पत्र कैसे लिखे ? पत्र लिखते लिखते स्याही सूख गयी है, और आंसुओं से पत्र का कागज गीला हो गया है? अब क्या६ करें?
🌹 गोपियों का राहगीरों से संवाद🌹
🪷 (यमुना तट पर)
इसी समय उद्धव गोपियाँ पत्रों और राहगीरों की बातें कर रही थी, उसी समय मथुरा जाता एक राहगीर देख बोली भैय्या, आप मथुरा जा रहे?
कृपया
🍁 हमारा एक काम कर दीजिये। भाई देखो तो यमुना कैसी श्याम हो गई। भाई मथुरा जा श्याम प्रभु से कहना, तुम्हारे विरह-ताप सेवा यमुनाजल काला हो गया है। (जलने से जैसे वस्तु काली हो जाती है) यमुना विरह में अशक्त कमजोर हो बहने में असमर्थ हो गई। भैय्या जाकर सारा, हमारा और यमुना का सविस्तार हाल बताना।
इस बीच एक गोपी कहती है कि भैय्या (राहगीर) देखो तो इस तरह यमुना के लिए औषधि चूर्ण से इलाज चल रहा है। (यमुना किनारे ब्रजरज के ढेर लगे हैं, जैसे दवाई चूर्ण पावडर) और भैय्या देखो, यमुना किनारे हरी घास ऐसे लग रही मानो यमुनाजी के बाल केश बिखरे, निढाल हो विरह में विलाप कर रही है। गोपी राहगीर भैय्या को समझा कर कहती है, यमुना के तट पर कीचड़ जैसे यमुना के आँखों का अंजन फ़ैल रहा है।
🌻 ओ भैय्या संबोधन करते गोपी राहगीर से कहती है, यमुना तटों पर भँवरे गुंजन भी नहीं कर रहे ? भ्रम में यमुना आड़ी-तिरछी हो बह रही है। चकवा पक्षी जैसी हे प्रिय ! हे प्रिय श्याम ! रटते-रटते दौड़ रहा व्याकुलु है। ये बातें हम गोपियाँ और सभी वृक्षों, यमुना की ऐसी विरह बेसब्री हालात का बयान जरूर कर कहना। भैय्या भूलना मत, जरूर से जाकर कन्हैया से कहना।🪷 विरही गोपी-१६
🪷 क्रिष्णा 🪷🪷🪷🪷
Author: admin
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