!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 72 !!
नन्द यशोदा को उद्धव का ज्ञानोपदेश
भाग 2
हे नन्दराय ! ये सब लीला है
…..और उनकी लीला चलती ही रहती है ।
इतना कहकर उद्धव चुप हो गए थे ।
ये क्या कहना चाहता है ? यशोदा जी नें नन्दराय से पूछा ।
नन्द जी नें उद्धव कि ओर देखकर इशारा किया ……..
समझाओ इनको ।
आप भूल जाएँ कृष्ण को ! उद्धव नें यशोदा मैया से कहा ।
उन्हें याद करके इस प्रकार रोनें से क्या लाभ ? वो केवल आपके ही हैं ऐसा नही है ……..वो जीव चराचर सबके हैं ……..उनकी दृष्टि में अपना नही पराया नही ।
हम भूल जाएँ ? ओह ! हृदय फिर भर आया मैया यशोदा का ।
क्या कहा उद्धव ! हम भूल जाएँ अपनें नन्द नन्दन को ?
नन्दराय समझ गए……उद्धव बुद्धिमान है……विद्वान है ………..
पर ये इतना नही समझता कि …..प्रियतम के लिये व्याकुल मानव को ज्ञान नही …..प्रिय ही चाहिये ………….ममता की मारी इस बेचारी यशोदा के सामनें ज्ञान बघारना उनके वात्सल्य का अपमान ही है ।
उद्धव ! तुम कहते हो तो बात ठीक ही होगी ………..क्यों की बृहस्पति के शिष्य हो तुम ……….ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ हो …………बुद्धिमान हो ।
“हम तो गंवार हैं”
…..नन्दराय के मन में दीन भाव का उदय हो गया था …..
युगल नयनों से अश्रु धार बह चले थे ।
हम तो ग्वाले हैं ……गाय चराना पशुपालन यही हमारा काम है ……..ये ज्ञान हम नही जानते ……..पर एक बात तुझ से पूछनी है उद्धव ! बताएगा ? नन्दराय नें उद्धव से पूछा ।
हाँ …….पूछिये ना ब्रजपति ! उद्धव नें कहा ।
क्या तुम ये कहोगे कि हम कृष्ण को भूल जाएँ ?
नन्दराय का प्रश्न उद्धव के प्रति ।
हाँ ….हाँ ……मैं यही कहूँगा कि आप कृष्ण को भूल जाएँ ……….
उद्धव नें नन्दराय को समझाते हुये कहा था ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल …
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