!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!
( रसातुर युगल – “बिहरत दोऊ प्रीतम कुंज” )
गतांक से आगे –
दो ही मार्ग हैं …एक प्यास का और एक तृप्ति का ।
ज्ञान का मार्ग है तृप्ति का मार्ग …कि बस हो गया । अब कुछ नही चाहिए ।
किन्तु प्रेम का मार्ग है प्यास का । अगर प्यास नही है तो ये मार्ग आपके लिए नही है ।
प्यास , तड़फ , बैचेनी , बेकली । ये सब मिलेंगे इस प्रेम मार्ग में ।
आइये इस रस जगत में ….जहां स्वयं इस प्रेम जगत के राजा श्याम सुन्दर बेचैन बैठे हैं ….
क्यों ? अपने आपसे मिलने के लिए । श्रीराधारानी स्वयं श्याम सुन्दर ही तो हैं । श्याम सुन्दर श्रीराधा रानी हैं । ये बेकली विचित्र है । अपने आपसे एक होने की बेकली । चलिए ! उसी प्रेम जगत में …वहाँ समझना नही है ….वहाँ बस इस रस को पीना है । अद्भुत से भी अद्भुत है यह प्रेम रस ।
बिहरत दोऊ प्रीतम कुंज ।
अनुपम गौर श्याम तन शोभा , वन वरषत सुख पुंज ।।
अद्भुत खेत महामन्मथ कौ, दुंदुभि भूषण राव ।
जूझत सुभट परस्पर अँग अँग , उपजत कोटिक भाव ।।
भर संग्राम श्रमित अति अबला , निद्रायत कल नैंन ।
पिय के अंक निशंक तंक तन , आलस जुत कृत सैंन ।।
लालन मिस आतुर पिय परसत , उरु नाभि उरजात ।
अद्भुत छटा विलोकि अवनि पर , विथकित वेपथ गात ।।
नागरि निरखि मदन विष व्यापत , दियौ सुधाधर धीर ।
सत्वर उठे महा मधु पीवत , मिलत मीन मिव नीर ।।
अबही में मुख मध्य विलोके , बिम्बाधर सु रसाल ।
जाग्रत ज्यौं भ्रम भयौ पर्यौ मन , सत मनसिज कुल जाल ।।
सुकृदपि मयि अधरामृतमुपनय ,सुंदरि सहज सनेह ।
तब पद पंकज कौ निज मंदिर , पालय सखि मम देह ।।
प्रिया कहत कहु कहाँ हुते पिय , नव निकुंज वर राज ।
सुंदर बचन रचन कत वितरत , रति लंपट बिनु काज ।।
इतनौ श्रवण सुनत मानिनी मुख , अंतर रह्यौ न धीर ।
मति कातर विरहज दुःख व्यापत , बहुतर स्वाँस समीर ।।
श्रीहित हरिवंश भुजनि आकरषे , लै राखे उर माँझ ।
मिथुन मिलत जु कछुक सुख उपज्यौ , त्रुटि लव मिव भई साँझ ।66 ।
बिहरत दोऊ प्रीतम कुंज ………..
गौरांगी ने वीणा में इस पद का गान किया ।
इस पद में जो वर्णन है वो अनिर्वचनीय रस तत्व का है ….बाबा कहते हैं – ये प्रेम है ही ऐसा ….रस स्वयं हैं ..सामने जो बैठीं हैं वो रस हैं ….रस मय देश है …फिर भी रस के लिए आतुर हैं …और इनकी आतुरता बनी ही रहती है ….ये प्यासे ही रहते हैं ….हाँ , प्यास बनी रहेगी तभी तो ये प्रेम की क्रियायें बनी रहेंगी । पागलबाबा कहते हैं …प्रेम तत्व को कहा नही जा सकता । उसका वर्णन सम्भव नही है । बात तो सही है ।
अब बाबा आज के पद का ध्यान करायेंगे ……कीजिए ध्यान ।
!! ध्यान !!
ये कुँज तो बड़ा ही सुन्दर है ….लताओं से आच्छादित कुँज है ….सामने यमुना भी बह रही हैं ….फुल बगिया भी है …जिसमें अनेक फूल खिले हैं । मोर इधर उधर स्वच्छन्द विचरण कर रहे हैं । दूसरी ओर एक सुन्दर सा सरोवर भी है ….उसमें कमल खिले हैं …हर रंग के कमल हैं । उसी सरोवर में जल के फुब्बारे भी हैं …जो रंग विरंगे ऊँचे छूट रहे हैं ….हंस हंसिनी अपने जोड़े के साथ विहार कर रहे हैं …..उससे सरोवर की शोभा और बढ़ रही है ।
दोपहर में राज भोग आरोगने के पश्चात् युगल सरकार विहार करने श्रीवन में निकले हैं ।
सखियों को लगा कि युगलवर शयन करेंगे तो सब अपने अपने कुँज में सन्ध्या सेवा की सामग्री जुटाने चली गयीं थीं । युगलवर ने एक कुँज देखा …जो एकान्त में था । सामने यमुना बह रही थीं और पीछे सरोवर भी था …कुँज की शोभा अनुपम थी । जब गलवैयाँ दिये दोनों कुँज में गये तो भीतर तो और सुन्दर था वो कुँज । नील मणि और पीत मणि के झालर लगे थे …वो चमचमा रहे थे ,उसी से झनकर प्रकाश भीतर आरहा था , कुँज रंगों से भर गया था, अब रस बरसने वाला था।
उस कुँज में एक सुमन शैया भी सजी हुयी थी ।
श्याम सुन्दर प्रसन्न होकर श्रीजी की ओर देखने लगे …फिर मुस्कुराते हुए ले गये शैया के पास , अपनी प्रिया जी को विराजमान कराया , फिर स्वयं बैठे ।
हित सखी युगलवर को खोजती हुयी चली थी ….उसके साथ उसकी कृपा पात्र सखियाँ भी थीं । कुँज को देख लेती है हित सखी ….वो समझ जाती है कि युगलवर यहीं हैं ….क्यों की कुँज से सुगन्ध की बयार निकल रही थी । हित सखी रंध्रों से भी भीतर देखती है । आहा ! भीतर तो श्याम गौर और गौर श्याम क्रीड़ा में रत हैं । अन्य सखियों को भी इस दर्शन का लाभ दिलाती हुयी ये हित सखी कहती है …..सखियों ! देखो ! देखो …….
मेरे दोनों प्रीतम ललना और लाल कुँज में विहार कर रहे हैं ।
दोनों के श्रीअंग से आभा निकल रही है …..वैसे समझ में नही आरहा कि कौन श्याम हैं और गोरी भोली श्यामा हैं …बस जिनके अंग से श्याम छटा निकल रही है वो श्याम सुन्दर हैं और जिनके अंग से स्वर्णकान्ति प्रकट हो रही है …वो श्यामा प्यारी हैं ।
हित सखी ये सब देखते हुए मुग्ध हो गयी है ।
सखियों ! जिस शैया पर ये दोनों विराजकर विहार कर रहे हैं …उस शैया को तो देखो …ये शैया सामान्य नही है …कामदेव को भी मथने वाली शैया है ये । कामदेव लड़ता है बेचारा …किन्तु बाद में हराना ही है उसे । अब देखो ना ! प्रिया जी के जो नूपुर इस शैया में बज रहे हैं , किंकिणी और कंगन जो बज उठे हैं ….वही तो युद्ध की दुंदुभी हैं ।
सखियाँ हित सखी से पूछती हैं ….योद्धा कहाँ हैं ? हित सखी कहती हैं …प्रिया प्रियतम के जो अंग हैं वही योद्धा हैं ….इन दिव्य छटा बिखेर रहे अंगों से जो भाव प्रकट हो रहे हैं …वही तो रन कौशल है ।
हित सखी दर्शन करते हुए कुछ देर के लिए देह सुध भूल जाती हैं ।
उधर प्रिया जी भी थक गयीं हैं इस सुरत संग्राम में । उनको आलस आगया है वो लेट गयीं हैं …श्याम सुन्दर प्रिया जी के कभी वक्ष को छू रहे हैं कभी नाभि को …प्रिया जी “नहीं” का संकेत करती हैं …तो उस संकेत में भी वो सौन्दर्य उभर आता है कि श्याम सुन्दर मूर्छित ही हो जाते हैं ।
प्रिया जी उठती हैं ….मूर्छित होकर गिर पड़े हैं श्याम सुन्दर ….वो देखती हैं ….स्पर्श करती हैं …ताप अत्यधिक बढ़ गया है श्याम सुन्दर का । साँसे बड़ी तेज़ी से चल रही हैं । समझ जाती हैं कि ..कामदेव इनपर हावी हो गया है …काम विष इनके श्रीअंग में फैल गया है । कैसे अब इन्हें उठाया जाय …..प्रिया जी श्याम सुन्दर के ऊपर आ जाती हैं ….और अपने अधर श्याम सुन्दर के अधरों में रख देती हैं …..धीरे धीरे लाल जू उस महामधु का , उस महाअमृत का पान करने लगते हैं ….कुछ ही देर में इनकी मूर्च्छा टूट जाती है …ये उठकर बैठ जाते हैं ।
किन्तु ।
श्याम सुन्दर जब जागते हैं मूर्च्छा से , तब इन्हें लगता है अभी मैंने स्वप्न देखा था कि मेरी प्यारी मुझे अधर रस पिला रही थीं । हित सखी चमत्कृत है …कहती है ….इतने रसातुर हैं कि अभी का मिलन भी इन्हें स्वप्न लग रहा है ।
हाथ जोड़ कर प्रार्थना कर रहे हैं ….हे सुन्दरी ! मुझे अपने अधरों का पान कराओ ।
वो कह रहे हैं ….जैसे ये आपके चरण मेरे लिए मन्दिर हैं , इसी प्रकार आपके लिए भी मेरे इस देह की रक्षा करना, कर्तव्य होना चाहिये । मेरी रक्षा करो ।
श्याम सुन्दर की ऐसी अवस्था देखकर प्रिया जी विचार करने लगीं …प्रिया जी तो प्रेम की सूक्ष्मता को समझने वाली हैं ना ! कुछ देर विचार कर प्रिया जी ने सोचा ….मेरी अनुकूलता इनको ज़्यादा ही मिल गयी है …इसलिये इनकी ये स्थिति होगयी । तो क्या करें ? प्रतिकूल हो जाती हूँ । तभी इस रस समुद्र से इन्हें निकाला जा सकता है अन्यथा नही ।
प्रिया जी तुरन्त बोलीं – हे नव निकुँज के राजा ! आपका ध्यान कहाँ है ?
श्याम सुन्दर ने जब गम्भीर प्रिया जी को देखा तो सावधान हुये ….बोले – प्यारी जू ! मेरा ध्यान तो आपकी ओर ही है । नही , आपका ध्यान बँटा हुआ है ….आप सावधान नही है …..हटिये !
ये कहते हुए मुख मोड़कर प्रिया जी मानिनी बन जाती हैं ।
ये क्या हो गया !
श्याम सुन्दर के नयनों के सामने अंधकार छा गया …..विरह से उत्पन्न होने वाला दुःख उनके रोम रोम में व्याप्त हो गया । उनकी साँस जोर जोर से चलने लगी । ओह ! क्या अपराध बन गया मुझ से …ये बार बार सोचने लगे । पर उनको कुछ समझ में नही आरहा ।
तभी प्रिया जी ने देखा ….हाँ , मेरा प्रयत्न सफल हो गया …अब श्याम सुन्दर सावधान हो गये हैं ….अब इस मान को ज़्यादा न बढ़ाया जाये , दुःख बहुत हो रहा है प्यारे के मन में ।
ये सोचते हुए प्रिया जी ने अपनी दोनों गोरी बाँहें श्याम सुन्दर की ओर फैला दीं ।
श्याम सुन्दर ने जैसे ही देखा …अब उनके आनन्द का कोई ठिकाना नही था …वो तुरन्त अपनी प्रिया की बाहों में समा गए थे ….अब श्याम सुन्दर के नेत्रों से आनन्द के अश्रु बहने लगे थे ….अपने कोमल केशों से श्याम सुन्दर के अश्रु प्रिया जी पोंछती हैं ।
हित सखी अपनी अन्य सखियों के साथ भाव सिन्धु में डूब चुकी है ।
बाबा कुछ नही बोलते …अब उनकी वाणी अवरुद्ध हो गयी है ।
गौरांगी ही इसी पद का गायन करती है ।
“बिहरत दोऊ प्रीतम कुंज”
आगे की चर्चा अब कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877