Explore

Search

June 23, 2025 5:27 am

लेटेस्ट न्यूज़

संघ प्रदेश दमन के प्रशासक श्री प्रफुलभाई पटेल के मार्गदर्शन से आयुष मंत्रालय के वर्ष 2025 के थीम के अनुसार “एक पृथ्वी और एक स्वास्थ्य – योग” स्वास्थ्य विभाग दमन द्वारा संघ प्रदेश दमन में पूरे जोश से तैयारी चल रही है।

Advertisements

!! उद्धव प्रसंग !!-{ श्रीराधा की विरहव्यथा – भ्रमरगीत }भाग-17 : Niru Ashra

!! उद्धव प्रसंग !!-{ श्रीराधा की विरहव्यथा – भ्रमरगीत }भाग-17 : Niru Ashra

!! उद्धव प्रसंग !!

{ श्रीराधा की विरहव्यथा – भ्रमरगीत }
भाग-17

प्रियसख पुनरागाः प्रेयसा प्रेषितः किं…
( श्रीमद्भागवत)

उद्धव अब विचलित हो उठे थे…

श्रीराधा को मुर्छिता देखकर… उद्धव का धैर्य जवाब दे गया था ।

उद्धव ने “विरह” शब्द बहुत बार सुना था… पर ये श्रीराधा तो ऐसी लग रही थीं कि स्वयं विरह ही आकार लेकर बैठा हो… श्रीराधा के रूप में ।…उद्धव को ऐसा लगने लगा था ।

हाँ… उद्धव ने ही तो ललिता सखी को अलग ले जाकर डाँटा था… ये कहते हुए कि… हमारे श्रीकृष्ण की आल्हादिनी इस हालत में ? ओह !…हे ललिते ! कम से कम… वस्त्र तो बदल दिया करो… गीले हैं श्रीराधा के वस्त्र ।

तब ललिता ने एक ही उत्तर दिया था…कितनी बार वस्त्रों को बदलें ?

उद्धव ! जितनी बार भी बदलते हैं वस्त्र… फिर गीले हो जाते हैं !

क्यों ?

तब ललिता ने कहा था…

“कंचुकी पट सूखत नही कबहूँ, उर बिच बहत पनारे”

आँखों से अश्रु धारा निरन्तर बहती रहती है उद्धव । अभी ही तो बदले थे वस्त्र… पर फिर गीले हो गए ।

ये आँखों के पनारे रुकें तब तो कुछ हो… ललिता ने इतना ही कहा था ।

पर अपने नेत्रों से उद्धव ने अभी स्वयं देखा… विरह का अवतार… श्रीराधा ।

ओह !…

वो बरसों “में” बरसते हैं, पर इनके आँसू तो… बरसों “से” बरसते हैं ।

पर विरहिणी श्रीराधा मूर्छित अवस्था में भी प्रलाप कर रही थीं ।

उद्धव को श्रीराधा के उन प्रेमोदगार को सुनना था…

तो ध्यान से सुनने लगे थे उद्धव ।


श्रीराधा लम्बी लम्बी श्वास ले रही थीं… उनकी श्वास की सुगन्ध से पूरा वातावरण महक रहा था… आँसुओं की धार से धरती गीली हो गयी थी… अभी भी श्रीराधा मूर्छित अवस्था में ही थीं ।

भ्रमर ! तुम कहाँ चले गए ?

एकाएक श्रीराधा बोल उठीं ।

प्रेम की भाव दशा है अभी भी श्रीराधा की ।

अरे ! तुम कहाँ गए मधुपति कृष्ण के मित्र ?

हाँ… आगये ! आओ ! आओ !

मैंने तुम से कितना कठोर व्यवहार किया न ?

भूल जाओ !… लो ! मैं कान पकड़ती हूँ अपने !

मैं क्या करूँ ? हे कृष्ण दूत !

उस छलिया से छली गयी हूँ ना…इसलिये थोड़ा गुस्सा आजाता है ।

पर तुमसे क्यों रोष ? ..तुम तो अतिथि हो ना…हमारे इस वृन्दावन के ।

पर तुम बहुत अच्छे हो… तभी मेरी बातों का तुमने बिल्कुल बुरा नही माना… और मथुरा जाकर… अपने मित्र को सारी बातें बता कर मेरे पास लौट आये… अच्छा किया ।

ये राधा तुमसे बहुत प्रसन्न है… और वैसे भी हम लोगों के काम को तुम सम्भालने वाले हो… दूत हो ना… और शास्त्रों में लिखा भी है… कि दूत का सम्मान होना ही चाहिए ।

जो तुम्हें चाहिए माँगो ये राधा तुम्हें वही देगी… माँगो मधुप !

श्रीराधा मूर्छित अवस्था में ही अपने हाथ जोड़ रही हैं…

हे भ्रमर ! हमने अंजाने में ही तुम्हें भला बुरा कह दिया ना !

हमसे गलती हुयी… हम क्या करें मधुप !… हमारी इन्द्रियां हमारे वश में नही हैं… हम क्या करें !

उद्धव श्रीराधा की बातों को सुन रहे हैं… और रोमांचित हो रहे हैं ।

क्या कहा ?… फिर कहना ?

मुझे रथ में चढ़ाकर मथुरा ले जाने आये हो ?

श्रीराधा ने उस मधुप से पूछा… यही कहना चाह रहे हो ना ?

हाँ… मैं समझ गयी… ।

पर मेरी प्रार्थना है… हे भ्रमर ! इस बार तो बोल दिया ..पर आगे से ये मत बोलना… मेरी विनती है ।

क्यों ?…

भ्रमर ! तुम पूछ रहे हो क्यों ?…

तुम तो प्रेम सिद्धान्त को समझते हो ना… फिर भी पूछ रहे हो ?

अरे भ्रमर ! तुम्हारे मित्र को… मथुरा की नारियाँ घेर कर बैठी हुयी हैं ।

मेरा वहाँ जाना…तुम्हारे मित्र को रुचेगा नही… समझो इस बात को ।

क्या कहा… फिर कहना ?… कृष्ण ने ही बुलवाया है मुझे… मथुरा ?…

श्रीराधा हँसी… उसे तो अच्छा लगेगा ही… कि वो इस तरह अपना ऐश्वर्य हम वनवासिनियों को दिखाए… और अपनी पत्नियों को लेकर बैठे… ।

ना… हम नही जायेंगी… हमारे जाने से… उसे विघ्न होगा अपने विलास में… और हमें अत्यंत कष्ट होगा… कि हमारे प्रियतम के वक्ष में… कोई और शोभा पा रही है… ।

हमें क्षमा कर दे… हे भ्रमर ! हम नही जा सकेंगी मथुरा ।

हाथ जोड़ते हुए श्रीराधा ने अपना सिर भी धरती में रख दिया था ।

कह दिया ना ! नही जा सकतीं हम लोग… मथुरा । अब तुम क्यों जिद्द कर रहे हो मधुप !…

सौत के विद्वेष ज्वाला में हमें क्यों जलाना चाहते हो भ्रमर !… जाओ… हमें नही जाना ।

नही मान रहे तुम…ओह ! दूत तो उसी के हो ना !… वो भी बहुत जिद्दी था… बात मानता ही नही था… तुमको भी उसी ने ये सब सिखा दिया लगता है… हम सब जानती हैं ।

वो भौंरा अब श्रीराधा के कान के समीप आकर गुन गुन करने लगा था ।

क्या क्या !… फिर कहना ! श्रीराधा ने भ्रमर के गुनगुन पर जबाब माँगा… ।

क्या कहा… उसकी कोई मथुरा में पत्नी या प्रेयसि नही है ?

हे भ्रमर ! तुम तो झूठ मत बोलो…हाँ हम जानती हैं तुम्हारे स्वामी बहुत झूठे हैं… झूठ बोलना उनके सहज स्वभाव में है… पर सेवक का झूठ बोलना अच्छा नही है ।

हम क्या जानती नही हैं .?…मथुरा में जाते ही लक्ष्मी उनके हृदय में विराजमान हो गयी है… हम सब जानती हैं ।

उद्धव ने ये बात जैसे ही श्रीराधा की सुनी… वो चकित रह गए ।

मन में आया… लक्ष्मी तो जब कृष्ण वृन्दावन में रहते थे… तब भी उनके हृदय में ही रहती थीं… कृष्ण तो नारायण हैं… और नारायण के वक्षस्थल में लक्ष्मी ही निवास करती हैं !

क्या कहा ? भ्रमर ! फिर कहना ? श्रीराधा बोल पड़ीं ।

ना ! तुम जो सोच रहे हो ना ! कि कृष्ण के हृदय में तो… वृन्दावन में भी लक्ष्मी रहती होंगी ।…ना ।…श्री वृन्दावन बिहारी के हृदय में तो एक मात्र मेरा ही आधिपत्य था…श्रीराधा ने कहा ।

हाँ… मथुरा में जाते ही… लक्ष्मी ने उनके हृदय को घेर लिया ।

वे जब तक वृन्दावन में थे ना… भ्रमर !… उनका हृदय प्रेम से पूर्ण रहता था… उनके हृदय में प्रेम का ही वास था… यहाँ लक्ष्मी को कहाँ स्थान ?

और वैसे भी भ्रमर !… जहाँ प्रेम होता है… वहाँ महत्ता प्रेम की ही होती है… लक्ष्मी की नही ।

पर… मथुरा में… महत्ता लक्ष्मी की है… ।

अब तो उनके हृदय को ऐश्वर्य ने घेर लिया है… चारों ओर से घिरे रहते हैं महा ऐश्वर्य से…मथुराधीश ।

वहाँ मथुरा में माधुर्य कहाँ है ?… श्रीराधा ने भ्रमर से कहा ।

इसलिये भ्रमर ! अब तुम ही बताओ… मैं वहाँ कैसे जा सकती हूँ ?

इतना कहते हुए… श्रीराधा ने अपनी चुनरी बिछा दी…

तुम यहाँ बैठो… बैठो !… भ्रमर से कहने लगीं…

तुम ही हमारे “प्राणप्रिय” को यहाँ ले आओ ना !…

भ्रमर ! तुम जो कहोगे मैं वही करूँगीं… पर एक बार उन प्यारे को यहाँ ले आओ ना !…मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ…

तुम ला सकते हो…क्यों कि वो “मधुपति” हैं… तो तुम “मधुप” हो ।

ले आओ ना !… हम बृज की गरीब ग्वालिनीयाँ तुम्हें आशीष देंगी ।

तुम्हारे सारे मनोरथ पूरे होंगे…ले आओ ना… हमारे प्यारे को ।

श्रीराधा विलाप करने लगीं फिर…

हम हाथ जोड़ती हैं तुम्हारे… ले आओ हमारे “प्राण” को ।

इतना कहते हुए फिर विरह समुद्र में डूब गयीं श्री राधा ।

उद्धव के अब कुछ समझ में नही आरहा… कि ये क्या स्थिति है ।

शेष चर्चा कल…

निशिदिन बरसत नयन हमारे !

सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबसे श्याम सिधारे ।

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements