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November 22, 2024 6:16 pm

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!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेम नगर 23 – “नगर के द्वार पर दो परीक्षक” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेम नगर 23 – “नगर के द्वार पर दो परीक्षक” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!

( प्रेम नगर 23 – “नगर के द्वार पर दो परीक्षक” )

गतांक से आगे –

यत्र दृग्दर्शनवचनाभिज्ञसंज्ञावलक्षितहृदयवृत्तान्तविदौ परिक्षकौ ।।

अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर के दरवाजे पर ) दो परीक्षक नियुक्त किए गए हैं , जिनके नाम हैं …”दृग्दर्शन” और “वचनाभिज्ञ” । जो नगर में प्रवेश चाहने वालों के मन की बात को बिना कहे ही जान लेते हैं ।

*हे रसिकों ! आपने ये परीक्षक रखे हैं ? अपने प्रेमनगर ( हृदय ) में प्रवेश चाहने वालों के लिए ये परीक्षक रखिये । नही रखा है तो रखिए । कोई भी मुँह उठाये आपके नगर में चला जाये ….कोई भी प्रवेश पा जाये ….इससे आपके प्रेमनगर की हानि होगी …ये ध्यान रखिये । यहाँ इन अति चतुर परीक्षकों के नाम भी दिये हैं ….दृग्दर्शन और वचनाभिज्ञ ….यानि ये देखकर और सुनकर ही समझ जाते हैं कि – ये नगर में प्रवेश पाने योग्य है या नही ?

ये दृष्टि आप भी रखिये …ऐसे परीक्षक की आवश्यकता हर प्रेम साधकों को होगी । नही रखेंगे तो फिर आपका प्रेमनगर उजड़ जाएगा । इसलिये सावधान रहिये ।

एक दिन मैं श्रीधाम की परिक्रमा कर रहा था …..मेरे साथ मेरे पागलबाबा थे ….वो आगे आगे चल रहे थे मैं उनके पीछे था ….तभी मैंने देखा एक व्यक्ति किताब बाँट रहा है …वो सबको दे रहा था ….मुझे भी दिया तो मैंने ले लिया ….और मैं उस किताब को पढ़ते हुए चल रहा था ..किताब पढ़ने के कारण मेरी चाल धीमी हो गयी थी …तो आगे जाकर पागलबाबा रुक गये ..मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे …मुझे जब उन्होंने किताब पढ़कर चलते देखा तो जल्दी चलने के लिए संकेत किया …मुझे गलती का अहसास हुआ मैं दौड़ा और उनके पास पहुँच गया ।

ये क्या है ?

मेरे हाथ में किताब देखकर बाबा ने मुझ से पूछा । मैंने हंसते हुए कहा ….कोई ब्रह्माकुमारी संस्था है …उसकी किताब है ।

किन्तु बाबा गम्भीर थे ….वो बोले ….कोई भी किताब पढ़ लोगे ? मैंने बाबा को गम्भीर देखा तो मैं भी गम्भीर हो गया ….बाबा ! निशुल्क दे रहा था इसलिए ले लिया …निशुल्क सूगर का बच्चा कोई देगा तो तुम ले लोगे ? बाबा इस तरह बोलेंगे मैंने सोचा नही था । मैंने उस किताब को तुरन्त यमुना जी में फेंक दिया …और सिर झुकाकर उनके पीछे चलने लगा ….वो चल दिए थे । आगे युगलघाट में जाकर हम लोग जब बैठे तब बाबा ने मुझे बड़े प्रेम से समझाते हुए कहा था …देखो ! ये जो प्रेम है ना …ये बहुत कोमल वस्तु है ….तुम अगर ज्ञान मार्ग के होते तो कोई आपत्ति नही थी किन्तु तुम प्रेम मार्ग के हो ….हम लोग प्रेममार्ग के हैं ….थोड़ी भी श्रद्धा अगर टूटी ना तो सब किए कराए पर पानी फिर जाएगा ….इसलिये कुछ भी पढ़ना …कुछ भी ….ये प्रेम साधकों के लिए हानिकारक है …इसलिए वही पढ़ो जो तुम्हारे प्रेम मार्ग में सहायक हो ….इन पाखंडियों की किताब पढ़ कर हानि के सिवाय और क्या मिलेगा ? और कुछ भी सुनना मत । बाबा मुझे बड़े प्रेम से समझा रहे थे । अगर पढ़ना है तो देख लो एक बार …क्या हरि चर्चा उस ग्रन्थ के आरम्भ में है ? मध्य में है ? अन्त में है ? अगर है तो पढ़ो ..उद्देश्य क्या है किताब लिखने वाले लेखक का …क्या “हरि भक्ति” उद्देश्य है ? अगर है तो पढ़ो …अगर नही ..अपने आपको ही महिमा मण्डित करने का उद्देश्य है …लेखक का , तो मत पढ़ो …तुम्हारे प्रेम मार्ग में सहायक है वो किताब ? तुम्हें किताब पढ़ते हुए अपने ठाकुर जी की याद आरही है तो पढ़ो ..नही तो मत पढ़ो …बुद्धि विलास के लिए कुछ भी पढ़ना हानि है …तुम्हारे प्रेम नगर की हानि होगी ।

मेरे पागलबाबा ने मुझे उस दिन बहुत समझाया था ।

कुछ भी पढ़ना उचित नही है ….और कुछ भी सुनना भी उचित नही । कथा के नाम पर आजकल जो कुछ भी बोला जा रहा हैं ….उनको सुनना भी उचित नही है । सुनना भी उसी वक्ता को जिसका उद्देश्य भगवत्भक्ति हो ….उद्देश्य देखो ….क्यों बोल रहा है ? बातें तो बड़ी बड़ी हैं किन्तु अन्त में – दान दो , आश्रम बनाना है …कमरे बनाना है …बेचारे भक्त दान दे देते हैं …फिर कमरे बनाकर oyo को दे दिए जाते हैं ….फिर उन कमरे में भोग विलास का नंगा नाच होता है ….ऐसे धन ही कमाना उद्देश्य जिसका हो …उसको सुनकर हानि ही होगी । इससे बढ़िया है आप अपनी कुटिया में शान्ति से बैठिए और अपने ठाकुर जी को रिझाइये ….एकान्त में बैठकर महावाणी जी का पाठ कीजिए …हित चौरासी जी का , विनय पत्रिका आदि का । नाम जाप कीजिए । मानस जी का , भक्तमाल जी का , भागवत जी का पाठ कीजिए । सुनिये अच्छे सन्तों को सुनिये । जो देह को सजाने में लगे हैं ….देह से ऊपर नही उठ पाए …पाउडर पोत कर जो व्यास गादी में बैठे …अनर्गल प्रलाप करते हैं …उनको सुनकर क्या मिलेगा ?

अपने हृदय को बचाइये ….क्यों कि ये कुछ भी कहेंगे ….आज कल नयी बातें कहने का फ़ैशन सा हो गया है …फिर नयी बात कहने के चलते ये जो मन में आया बोलते हैं ।

इसलिए हे प्रेम के साधकों ! सावधान ।


यहाँ सावधान किया गया है हम लोगों को ।

इस प्रेमनगर में दो परीक्षक रखे गए हैं …..दोनों के अलग अलग नाम हैं ।

दृग्दर्शन और वचनाभिज्ञ ।

यानि देखकर और बात-चीत से ये समझ जाते हैं कि – इसे नगर में प्रवेश देना है या नही ।

देखकर ।

मेरे बाबा कहते हैं ….कुछ भी खाना , कहीं भी जाना , किसी का भी संगत करने वाला साधक हो ही नही सकता । साधक यानि “सावधानी पूर्वक कल्याणकारी मार्ग में जो चले”। सावधान रहिये …..यहाँ बहुत लुटेरे हैं ….जो आपके प्रेमनगर में घुसने की ताक में रहते हैं …..

इसलिए पहले देखिये , देखकर समझिये कि ये सही है या नहीं ?

उनके पास बैठकर आपको सात्विकता का आभास होता है या नही …उनके संगत से आपको लाभ होगा या नही ….आपकी भक्ति बढ़ेगी या घटेगी ? इन सबकी परीक्षा कीजिए ।

श्रद्धा कोमल है …..टूट गयी तो फिर जुड़ नही पाती । इसलिए सावधान ।

देखिए ! जो प्रेमी होते हैं ….वो केवल अपने प्यारे के ही चिंतन में लीन रहते हैं ….उनके प्यारे के विषय में जो कहता है …उन्हीं को ये भी प्रेम करने लगते हैं …..नही तो नही । क्यों कि हमारे लिए हमारा प्यारा ही मुख्य है ….और कोई भी नही , गुरु भी नही । गुरु भी हमने इसलिए बनाया कि प्यारे से ये मिला देंगे अगर नही मिलाते तो छोड़ो गुरु को भी ।

ये बात क्या गोसाईं श्रीतुलसी दास जी ने नही कही है ?

“बलि गुरु तज्यो, कंत बृज वनितन । भये मुद मंगल कारी”
जाके प्रिय न राम वैदेही , तजिये ताहीं कोटि वैरी सम जद्यपि परम सनेही ।।

राजा बलि ने अपने गुरु को भी त्यागा ।

इसलिए ये परीक्षक आप भी रखिये अपने प्रेमनगर ( हृदय ) की सुरक्षा के लिए । हर किसी को प्रवेश मत करने दीजिये ।

सावधान !

शेष अब कल –

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