!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 97 !!
वेदनापूर्ण वृन्दावन वार्ता
भाग 3
रथ से उद्धव नें मटकी निकाली थी ………..
कृष्ण नें देखा ……..ओह ! मेरी मैया यशोदा नें माखन भेजा है ।
उद्धव आये …………ये भेजा है आपकी मैया यशोदा नें ……..कहा है ….मैं ही खिलाऊँ ………..इतना कहते हुए मटकी से माखन ले ……कृष्ण के मुखारविन्द में देनें लगे उद्धव ………रो रहे हैं कृष्ण ….और माखन खा रहे हैं ……………
बहुत स्वाद है माखन में……..कितना समय हो गया …….ऐसा स्वाद वृन्दावन छोड़नें के बाद आज तक नही आया था ।
तो चलो ना वृन्दावन ! बहुत आनन्द आएगा वहाँ ……..मैं आपके साथ रहूंगा वृन्दावन में……..चलिये ना ! यहाँ कुछ नही है ।
अच्छा एक बात बताइये ! आपके यहाँ न रहनें से कोई मरेगा ?
उद्धव नें पूछा ।
कृष्ण इसका क्या उत्तर देते …….पर उद्धव नें बार बार पूछा ……बताइये आप अगर मथुरा नही रहेंगें तो यहाँ का कोई भी व्यक्ति मरेगा ?
नही ….पर हे गोविन्द ! आप अगर चले जाओगे वृन्दावन …….तो वृन्दावन बच जाएगा ……वहाँ के वो प्यारे अनूठे प्रेमी बच जायेंगें ……..
उन्हें बचा लो हे गोविन्द ! बचा लो उन्हें !
रो रो कर प्रार्थना कर रहे थे उद्धव ।
ये आपके सखाओं नें भेजा है ……….उद्धव मोर का पंख देते हैं ……..कृष्ण उस मोर के पंख को माथे में लगाते हुए बहुत प्रसन्न हैं ।
ये गुंजा की माला है………सखाओं नें दी है…….कृष्ण प्रसन्न होकर माला धारण करते हैं…….ये काली कमरिया श्रीदामा नें भेजी है तुम्हारे लिये……कृष्ण पागलों की तरह काली कमरिया भी ओढ़ लेते हैं ।
और मेरी राधा ?
कृष्ण सुनना चाहते हैं अपनी राधा के बारे में....इसलिये पूछते हैं ।
श्रीराधा ! श्रीराधा !
सात्विक भाव देह में स्पष्ट दिखाई देनें लगे थे उद्धव के ।
श्रीराधा के बारे में कुछ नही कहा तुमनें उद्धव ?
कृष्ण नें फिर पूछा ।
श्रीराधा ! वो तो प्रेम का साकार रूप हैं…….उनके बारे में बोलनें के लिए मेरे पास कोई शब्द नही है……..वो श्रीराधा !
सुनो गोविन्द ! श्रीराधारानी की स्थिति ! सुन सकोगे ?
उद्धव बोलनें की कोशिश करते हैं …..पर बोल नही पाते ……….कृष्ण उद्धव को सम्भालते हैं……..अपनें हृदय से लगाते हैं………दोनों ही रो रहे हैं …….बस रो रहे हैं…………
शेष चरित्र कल –
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