!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! “अद्भुत ब्याह विनोद में” !!
गतांक से आगे –
सबै सहेलि महेलियाँ , राचि रंग रसाल ।
सर्वस जिनके सम्पत्ति , दम्पति पति प्रतिपाल ।।
दम्पति सम्पति सहज सुख , दुलहिन दूलह लाल ।
तदपि ब्याह विधि बिरचहीं , बिबिध बिनोदनि बाल ।।
बाल लाल सुख में सचे, रचे सहेलिन संग ।
अद्भुत ब्याह विनोद में , भीजि रहे रस रंग ।।
*सुन्दरतम ऋतु है ….निकुँज आज अति उत्साह से भरा हुआ है ….समस्त सखियाँ इधर उधर जा आ रही हैं …..इस उत्सव को कैसे सुन्दर से सुन्दर बनाया जाए ये सबका उद्देश है ….क्यों कर रही हैं सखियाँ ये सब ? अरी ! क्यों कि इनकी सम्पत्ति ही ये रसिक दम्पति हैं ….यही इनके सर्वस्व हैं ….इनके प्राण हैं ….इसलिए ये सब लगी हुई हैं …..क्यों कि दम्पति को सुख मिलेगा ….वैसे भी ये रसिक दम्पति उत्सवमूर्ति हैं ….इन्हें उत्सव ही प्रिय है …फिर उसमें भी विवाह उत्सव ! इस उत्सव का तो कहना ही क्या ?
हे रसिकों ! ये निकुँज भाव भूमि है ….भाव जब दृढ़ होगा , और हमारा…”राग” जब प्रिया प्रियतम की ओर मुड़ेगा ….जी ! यही राग जो आपका अपने पति में है , पत्नी में है , पुत्र में है , धन में है …बिल्कुल वही राग आपका जब श्याम सुन्दर और प्रिया जू में लगेगा ….जब आपको ये लगेगा कि हमारे सगे तो “वो”हैं …..सच्चा सम्बन्ध तो हमारा उनके साथ है ….तब ये सब तो छूट जाएगा किन्तु वो नही छूटेगा ….वो तो मरने के बाद भी रहेगा ….इसलिए जब आपकी “रागानुगा रति”, “वैधी रति” नही …..आप शास्त्र अनुसार , विधान अनुसार प्रेम-भक्ति करो लाल जू और प्रिया जू से ….तो वो भाव जगत में गहरा नही जाता । भाव में गहरा तो पुत्र के प्रति प्रेम या पति पत्नी के प्रति हुआ “राग” ही गहरा जाता है …..क्यों की वहाँ आप हृदय की सुनते हैं …आप नियम में नही चलते ….बालक रोएगा तो आप उसे दूध पिलाओगी ….आप ये नही सोचोगी कि मार्ग में नही पिलाना , या आज ये है काल है इसलिए नही पिलाना , आप मुहूर्त नही देखोगी ….आप शास्त्र विचार नही करोगी …आपका बालक रो रहा है बस …आप उसे दूध पिलाओगी ना ? ये राग है …बस यही राग तुम्हें भगवान से रखना है ….और याद रखना राग जैसे जैसे दृढ़ होता जाएगा ….भगवान भी मिटता जाएगा ….वो फिर भगवान नही …तुम्हारा अपना होगा , जैसे बेटा , पति , प्रेमी या मित्र ।
अब यहाँ सखियों को देखो …..ये राग से जुड़ी हैं प्रिया प्रियतम से ….ये भगवान नही मानतीं …और इनके लिए ये भगवान हैं भी नहीं …..इनके लिए तो ये सर्वस हैं ….सब कुछ यही हैं ….ये पूजा नही करतीं ये प्रेम करती हैं …..और एक रस नही हैं इन सखियों का …सारे रसों को लेकर ये चलती हैं …..जी ! ये अद्भुत बात है ….निकुँज की सखियाँ शान्त हैं ….जब प्रिया प्रियतम शयन करते हैं तो ये सखियाँ योगियों की तरह शान्त होकर ध्यान करती हैं …अपने रसिक दम्पति का ये ध्यान करती हैं …यानि इनमें शान्त रस भी है ….ये सेवा करती हैं ….अपने आपको “श्रीराधा दासी” कहकर इतराती हैं । रास में थक जाते हैं जुगल तो उनके चरण दबाती हैं …..यानि इनमें दास्य रस भी है । सलाह देती हैं ….प्रिया जू ! आप चलिए ….नही तो लाल जू की स्थिति विकट हो रही है ….वो तड़फ रहे हैं …..उधर लाल जू को कहती हैं …लाड़ली जू ! बहुत दुखी हैं लालन ! आपको चलना चाहिए । इस तरह ये सख्य रस का भी रस ले लेती हैं ।
एक बार थक गये रास करते करते बिहारी बिहारन जू ।
ये लीला स्वामी श्रीरूपरसिक देव जू ने एक पद में गाया है ….जुगल की किशोरावस्था है ….दोनों ही नव यौवन से भरे हैं ….अद्भुत रूप लावण्य है ….सुबह से ही श्रीनिकुँज में रास कर रहे हैं ….नाचते नाचते मुख चन्द्र अरुण हो गया है …किन्तु किशोरवय कब माना है जो अब मान जायेगा ….सखियों ने रोकना चाहा …कि अब तो साँझ होने आगयी है ….तभी श्रीरंगदेवि सखी से रहा नही गया , वो आवेश में दौड़ीं लालन और लाड़ली जू के पास और दोनों को जबरन अपनी गोद में बैठाकर अपना स्तनपान कराने लगीं ….उस समय श्रीरंगदेवि सखी जू का जो रूप था वो दमक रहा था …वात्सल्य रस सिन्धु बह चला था श्रीरंगदेवि जू के वक्ष से ।
हे साधकों ! इसलिए सखियाँ अपने आपमें पूर्ण रागानुगा रति की भाव मूर्ति हैं ….यहाँ पर पहुँचना है तो सहज राग जो है …जो प्राकृत है ….उसी को इन अनादि दम्पति से जोड़ना पड़ेगा । याद रहे ये मार्ग प्राकृत से अप्राकृत में जाने का है ….राग प्राकृत ही तो है ….किन्तु ये बेटे , बहु , धन , जन में लगा रहा तो प्राकृत रहा..और अगर “अनादि दम्पति” में लग गया तो बस पहुँच गये थे अप्राकृत जगत में …जहाँ ये प्रकृति काम नही करती उस निकुँज में तो सब कुछ अप्राकृत ही है ।
तो कैसे पहुँचना है वहाँ तक …इस ब्याहुला उत्सव में ?
यहाँ श्रीमहावाणी जी में लिखा है …..”सर्वस जिनके सम्पती , दम्पति पति प्रतिपाल” ।
यहाँ सखियाँ ही पहुँचती हैं पहली बात …और दूसरी बात ये कि ये सखियाँ इतनी महान हैं कि केवल यही इस भाव जगत में पहुँचती हैं । अब प्रश्न उठा – क्यों ?
क्यों कि “इनकी सम्पत्ति ही ये रसिक दम्पति हैं” ..इसलिए ये ही पहुँचती हैं ।
सम्पत्ति को छुपाया जाता है …केवल धनी को ही पता है कि मेरे पास धन क्या है ! इस तरह सब कुछ मेरे वही हैं …ये भावना करते हुए …”अगर वो नही तो मेरे कोई भी नही हैं” मैं उनकी हूँ ….सिर्फ उनकी दासी हूँ …..तो जगत ब्रह्माण्ड की मालकिन हूँ …ये ठसक भी आजाएगी ….अजी ! ये मार्ग बड़ा भी सुन्दर , सजीला है ।
चलो मेरे साथ , उस भावमय निकुँज देश में ….जहाँ ब्याहुला की तैयारी हो रही है । चलिए ।
प्रिया जू क्या धारण करेंगीं दुलहिन के रूप में ….ये सब सखियाँ तैयार कर रही हैं ….इनको जो समझ में नही आता वो अपनी प्रमुखा सखी से पूछती हैं …अपने अपने यूथ को गुरु सखी देख रहीं हैं और उन्हें जब लगता है कि कुछ आज्ञा दें तो वो देती हैं ।
श्रीहरिप्रिया जू इस यूथ की प्रमुखा हैं …और इनकी गुरु सखी हैं श्रीरंगदेवि जू ….जो अष्ट सखियों में प्रमुख हैं ……हरिप्रिया सखी सब को देख रही हैं ……किंकिणी , नूपुर , बाजूबन्द , हार आदि सब तैयार करके एक सखी हरिप्रिया को दिखाती हैं …बहुत सुंदर सुंदर ..कहकर उस सखी का उत्साह वर्धन कर रही हैं हरिप्रिया ।
मैं प्रिया जू की वेणी सजाऊँगी …..एक सखी ने हरिप्रिया जू को आकर कहा ।
इस सखी की बात सुनकर हरिप्रिया हंसीं ……किन्तु कुछ बोलीं नहीं …..हरिप्रिया को इस तरह उन्मत्त हंसते हुए देखकर सब सखियाँ हंसने लगीं ……अजी ! वृक्षादि , लतादि , पक्षी आदि सब हंसने लगे थे …..आहा !
“अद्भुत ब्याह विनोद में , भीजि रहे रसरंग”
मैं सजाऊँगी प्रिया जू को ….मुझे सजाना बहुत आता है …..एक सखी ने ये भी प्रार्थना कर दी थी ।
तभी हरिप्रिया का ध्यान महल की ओर गया …..जहाँ प्रिया लाल हैं । वो हंसते हुए वहाँ गयीं और थोड़ा सा पर्दा हटाकर जब देखा , तो वहाँ विचित्र लीला हो गयी थी ।
बाहर की बातें सुन कर लालन ने अपनी प्यारी से कहा था …..सब सखियाँ आपको ही सजाना चाहती हैं किन्तु ये सेवा तो मैं लेना चाहता हूँ …..प्रिया जू हंसीं …..बस उनकी हंसी में ही लालन मोहित हो गये थे ……अंजन हाथों में लेकर मृगनयनी के नयनों में लगाने लगे थे ….लगा दिया था ….आहा ! नयनों में अंजन के लगाते ही ….सौन्दर्य और बढ़ गया था प्रिया जू का ….और इसी सौन्दर्य सिन्धु में लाल डूब गये थे ….उनके हाथों में अंजन था ….स्तब्ध हो गये थे ….उनसे आगे कुछ किया नही जा रहा था …..वो बस मुग्ध से बस निहारे जा रहे थे प्रिया जू को !
इस झाँकी का दर्शन हरिप्रिया सखी ने किया था …और पर्दा थोड़ा हटा कर अन्य सखियों को भी करा दिया था ।
अब बताओ , जिनका शृंगार करने के लिए लालन लालायित रहते हैं ….क्या तुम्हें ये सौभाग्य मिलेगा ? उस सखी को हरिप्रिया जू ने कहा । वो सखी प्रसन्नता से बोली ….लालन को सुख मिले और लाड़ली को जिसमें आनन्द मिले , हमारी तो यही इच्छा है ….हरिप्रिया सखी ये सुनकर बहुत आनंदित हो गयीं थीं ….फिर हंसते हुए बोलीं ….दूल्हा दुलहिन के शृंगार करने का अवसर हम को ही मिलेगा …..इसलिए अब विलम्ब न करो ….ये कहते हुए हरिप्रिया चली गयीं थीं ।
सब सखियाँ रस में भीगीं हैं …..खिलखिलाती हुई सेवा कर रही हैं …उनकी खिलखिलाहट निकुँज को आह्लादित कर रही है ।
तभी शहनाई बज उठी ….मंगल ध्वनि आरम्भ हो गया …निकुँज सज धज गया था ।
“भीजी ब्याह विनोद रस , सरस सहेलिन बाल ।
कहत सबै आओ अली , लड़वैं दोऊ लाल ।।”
क्रमशः ….


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