Explore

Search

July 5, 2025 12:42 pm

लेटेस्ट न्यूज़
Advertisements

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! उपासनीय रस !! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! उपासनीय रस !! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

!! उपासनीय रस !!

गतांक से आगे –

“ये रस दो प्रकार से आस्वादनीय है …
एक – रस सिद्धांत के रूप में और दूसरा – शुद्ध रस को ही पीया जाये” ।

जुगल घाट की रेती में …जहाँ यमुना जी बह रही हैं तो सर्दी की कुनकुनी धूप भी है ….मैं और मेरे साथ पंजाब का एक साधक है ….जिसने कार्तिक भर गिरिराज जी में वास किया ….महावाणी जी का पाठ भी करता है वो ….युगलनाम मन्त्र का अविरल जाप उसका चलता ही रहता है …..ये कल आया था प्रातः श्रीवृन्दावन ….उस समय मैं दर्शन के लिए निकल रहा था …वो भी मेरे साथ हो लिया ….यमुना आचमन करके हम लोग श्रीराधाबल्लभ जी गये थे , बाद में श्रीबाँकेबिहारी जी ….फिर वापस जुगल घाट यमुना जी में आगये थे ।

“मुझे रसोपासना तभी समझ में आती है, जब आप सिद्धांत के रूप में इसे समझाते हैं”
उसने यमुना की रेत में चलते हुए मुझ से कहा था ।

“ये तो रस है, कुछ मिला कर पीयो या शुद्ध पीयो, अपना अपना स्वाद है”…..मैंने कहा ।

मैं महावाणी जी का पाठ करता तो हूँ …किन्तु सिद्धांत समझ में आता है …तब स्वीकार कर पाता हूँ । उसने अपनी बात स्पष्ट कर दी थी ।

“एक होते हैं साधक और एक होते हैं रसिक …देखो ! जो साधक श्रेणी के हैं उन्हें रस सिद्धांत प्रिय होता है …किन्तु जो रसिक होते हैं उन्हें तो शुद्ध रस ही प्रिय है ….उन्हें ये सिद्धांत की बातें रस में बाधक लगती हैं” ….मैंने उसे समझाया ।

वो सोच में पड़ गया …फिर उसने पूछा ….क्या रसिक उच्च स्थिति है ? मैंने कहा ..सिद्ध से भी ऊँची स्थिति है रसिक की । वो आगे पूछेगा इसलिए मैंने ही उसे बताना आरम्भ कर दिया था ।

निकुँज में, “रसिक” की स्थिति बन गयी है ….साधक की बनी नही है …नाम से ही समझ सकते हो …साधना में है अभी …इसलिए साधक है …किन्तु रसिक तो रस मय हो गया है ..वो तो सीधे पीता है ….साधक , सिद्धांत आदि का कुछ मिलावट करता है ….फिर मैंने उसे स्पष्ट किया …इसमें कुछ गलत नही है ….अभी बुद्धि की खुजली बाकी है इसलिए ही तो साधक श्रेणी में है…..इसको मिटाने के लिए ही सिद्धांत आदि की आवश्यकता पड़ रही है ….किन्तु रसिक तो रसिक है …उसे रस ही चाहिए केवल ….उसे निकुँज चाहिए ….वहाँ पल पल घट रही लीला दर्शन चाहिए ….उसे इससे मतलब नही है कि ..निकुँज क्या है ? और लीला का क्या अर्थ है ? अर्थ खोजना बुद्धि का काम है ….हृदय तो बस लीला का दर्शन करके ही रस पा जाता है ….फिर मैंने उसे समझाया ……पाठ करो , महावाणी जी का पाठ करो …..ये रस उपासनीय है ….यहीं है …इसलिये इस निकुँज रस की उपासना में लीन हो जाओ । रही सिद्धांत की बात तो स्वयमेव ही वो ‘रस रहस्य’ अपने आप खुलता जायेगा….बुद्धि शान्त हो जाएगी ….और याद रहे – हृदय रूपी अम्बर में घुमड़ पड़ेगा ये रस ……तुम तो बस उपासना करो ….यानि इस रस के ही निकट रहो ….इसको सदैव अपने साथ रखो …..निकुँज रस भावना में खोये रहो …..याद रखो …..श्रीमहावाणी जी का ये पद …..

“चलहु चलहु चलिये निज देश”

कितने प्यार से हमारी श्रीहरिप्रिया सखी जू हमें निर्देश दे रही हैं , है ना ?

वो मेरी बात सुनकर मौन हो गया था ।


                         !! पद !! 

अली अतिहीं विचित्र चित चोंप भारी , मोद मन दुहुनकें मत्त महारी ।
कोउ अतिहिं अलबेलि उर में उमाहीं , सबै अहल महली फिरैं महल माहीं ।।
कोउ कुमकुमा घोरी अँगराग लावैं, कोउ रँगरेली जु अँग रंग चढ़ावै ।
कोउ अंग उबटाय अन्हवाय ल्याई , रुचिर मुकुट रचि मौर मौरी बनाई ।।
सुरँग रंग बागे बिराजें रँगीले , जु आभरन अँग अँग छाजैं छबीले ।
सुआई जुसबसिइकठौर सोभा, चढ़ी देखि सिरसिरी दृग भएलोभा ।।

निकुँज में इन दिनों रस ही रस बरस रहा है …जिधर देखो रस का विस्तार है ….क्यों न हो …अनादि दम्पति का आज ब्याहुला है …..इसलिए पूरा निकुँज ही प्रेम रस में मत्त हो उठा है ….सखियाँ – ये तो अधिकाधिक सुख जुगल को देने के लिए तात्परता से जुटी हुयी हैं । यमुना कंकण के आकार में हैं ….वो भी आज तरंगयित हैं ….उसमें हंस हंसिनी के जोड़े कितने सुन्दर लग रहे हैं ….कमल किनारे में खिले हैं …..अजी ! जिधर देखो …उधर आनन्द की बहार चल रही है ।

अरी सखियों ! कहाँ इधर उधर दृष्टि घुमा रही हो ….रतन जटित पाटे में विराजे ये जुगलवर कितने आनंदित लग रहे हैं …..अपने ब्याह में ही इनका मन झूम रहा है ….ये एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे हैं …कभी अगाध प्रेम से भर जाते हैं ……एक दूसरे को देखकर इन्हें रोमांच भी हो रहा है …….हरिप्रिया सखी ने जब अपनी निज सखियों को ये सब बताया …..तब सखियाँ भी अपलक निहारने लगीं जुगल को …..और एक बात ध्यान नही दी तुम लोगों ने …..क्या सखी जू ? हरिप्रिया सखी से पूछा तो हरिप्रिया सखी ने बताया ….इनको आनंदित देखकर सखियाँ कितनी मत्त सी हो गयी हैं …..इनको मत्तता क्या छायी …पूरा सखी समाज ही मत्त हो गया है । ओह !

हरिप्रिया सखी हम सब सखियों को बता रही हैं ……..

देखो ! उस सखी को देखो ….वो तो इतनी आनंदित है कि लता की ओट से निहारते हुए आनन्दाश्रु प्रवाहित कर रही है …..और और उस सखी को देखो …उसे तो कुछ सूझ ही नही रहा ….वो इस उत्सव में इतनी आनंदित है कि इधर उधर , क्या करूँ , क्या नही …बस इसी में खो गयी है ।

हरिप्रिया की बातें सुनकर …उनकी सखियाँ उस सखी को देखने लग जाती हैं कि …कैसे उस सखी का हृदय ही उमड़ पड़ा है । कुछ देर उस ओर देखकर फिर हरिप्रिया कहती हैं ….अरे ! उस सहचरी को देखो ….कैसे रंगमहल में चली गयी है …और वहाँ से कुमकुम से भरी कटोरी लेकर आगयी है ….और इन अलबेले दम्पति को लगा रही है ….और लगाते हुए परम आनन्द की स्थिति में पहुँच गयी है …..ओह ! ये कुमकुम नही लगा रही ये तो प्रेम रंग लगाकर इन प्रेमियों के प्रेम खेल को और बढ़ा रही है …..अब देखो ….अपने कपोल में लगे कुमकुम को श्याम सुन्दर ने प्रिया जू के कपोल में लगा दिये तो प्रिया जू श्याम सुन्दर के वक्षस्थल में अपने कपोल को लगा कर अपना कुमकुम उनके हृदय में चढ़ा देती हैं । ये देखकर पूरा निकुँज आह्लादित हो उठता है ।

अब तो फिर स्नान करना पड़ेगा क्यों की लाल जू ने फिर प्रिया जू को लाल कर दिया तो प्रिया जू ने भी लाल जू को ……यहाँ तो ये “रस खेल” फिर चल पड़ा था । तभी अष्ट सखियाँ आयीं …..और उबटन लगाने लगीं …..लाल जू ने कहा ….ये फिर ? श्रीरंग देवि जू ने कहा …आप दोनों काम ही ऐसा करते हैं …हम क्या करें ….अब उबटन ललिता जू लगा रही हैं ….और जल डाल रही हैं सुदेवी जू । श्रीअंग को मल रही हैं श्रीरंगदेवि जू । आहा ! क्या रस रंग बरस रहा था । सुन्दर वस्त्र फिर लाए गए …लालन को और लाड़ली को वस्त्र धारण कराये गए ….मौर मौरी सिर में बांधा गया । बस फिर क्या था ….आभूषण धारण कराये गये हैं …अब तो इनकी शोभा का क्या वर्णन करें …हरिप्रिया सखी कहती हैं …ऐसा लग रहा है …मानौं ब्रह्माण्ड की शोभा इन्हीं में प्रकट हो गयी है …और इनके सिर में जो मौर मौरी सजा है …उसको देखकर तो हम सबकी आँखें लुभित हो रही हैं …ये कहते हुए हरिप्रिया सखी आह भरती हैं और उनके साथ समस्त सखियाँ स्तब्ध हो सब कुछ भूल जाती हैं । उन्हें इन दुलहा दुलहन के सिवा अब और कुछ भान नही है ।

क्रमशः …

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements