!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! “दूलह दुलहिन नख सिख सोभा” !!
गतांक से आगे –
“महावाणी की उपासना में श्रीराधा और श्रीकृष्ण को अलग अलग नही देखा गया है….”युगल” को एक ही माना गया । इसलिए यहाँ निकुँज की सखियाँ अकेली श्रीराधा की ही उपासिका नही हैं …वो श्रीकृष्ण को भी उतना ही मानती हैं …अपितु दोनों को वो एक ही मान कर चलती हैं ।”
युगलघाट में उन पंजाबी साधक के साथ मेरी चर्चा हो रही थी…तो जब उसने मुझे अन्य रसिकाचार्यों के सम्बन्ध में बात की …और फिर उनके वाणी ग्रन्थ के विषय में ….फिर श्रीमहावाणी जी की चर्चा आरम्भ हुई ….तो मैंने उनसे कहा – श्रीराधाकृष्ण की भक्ति में भक्त को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है …..एक वो जो श्रीराधा कृष्ण में से कृष्ण को ही मानते हैं ….जैसे – श्रीमीरा बाई जी , उनके लिए श्रीकृष्ण ही सब कुछ हैं ..श्रीराधा वहाँ नही हैं । दूसरे वर्ग हैं जो श्रीराधा को मानते तो हैं किन्तु श्रीकृष्ण उनके लिए प्रमुख हैं …जैसे – सूरदास जी , और अष्ट छाप के कवि आदि । अब तीसरा वर्ग है …..जो श्रीराधा को ही मानता है किन्तु श्रीकृष्ण उनके चाकर हैं …सेवक हैं यानि श्रीराधा प्रधान उपासना है उनकी …जैसे – स्वामी श्रीहरिदास जी और श्रीहित हरिवंश महाप्रभु । श्रीहित हरिवंश जू तो श्रीराधा को ही गुरु मानते हैं और उपास्य भी वही हैं उनके ।
अब आइये श्रीमहावाणी की उपासना में …..वैसे श्रीराधा यहाँ प्रमुख ही हैं …किन्तु श्रीमहावाणीकार श्रीराधा की ही उपासना नही करते …न करने की प्रेरणा देते हैं …इनके लिए तो युगल तत्व ही एक है ….इनके लिए “राधेश्याम” ये दो नही हैं ….ये एक ही नाम है ।
“इसलिए महावाणी की सखियों की भक्ति एक श्रीराधा पर ही मात्र केंद्रित न होकर युगल के चरणों में समर्पित हुयी है”….ये अद्भुत बात है ….ये सखियाँ दोनों का ही ख्याल रखती हैं …दोनों को ही अपना मानती हैं ….ये कभी कभी प्रिया जू का पक्ष लेती हुयी दिखाई अवश्य पड़ती हैं किन्तु ये लाल जी को भी अपनी आत्मा ही समझती हैं …ये युगल की हैं ..और युगल ही इनके हैं “रिझवत सिखवत दुहुंनि कौं” ये सखियाँ दोनों को ही बराबर लाड़ करती हैं ….हाँ , लाल जू प्रिया जू को सर्वस्व मानते हैं …..किन्तु सखियाँ इन दोनों को ही अपना सर्वस्व मानती हैं …दोनों इनके हैं …दोनों के बिना सखियों को चैन भी नही मिलता ।
मैंने अब जुगल घाट में यमुना आचमन करते हुए उन पंजाबी साधक को “सिद्धांत सुख” ( महावाणी ) की एक पंक्ति सुनाई ।
“इनमें श्रीहरिप्रिया कौ , नित्य बिहार अखंड”
युगल को लाड़ करना , ये महावाणी का अपना “हित रूप” है ।
!! दोहा !!
पढ़ी परत कहौ कौन पे , परमा परम पराज ।
अँग अँग बानी बढ़ी , सजे सहाने साज ।।
साज सहाने सेहुरें , सोहत नैंन बिसाल ।
अँग अँग उमँग भरे दोउ , लाड़ लड़ीले लाल ।।
!! पद !!
लाड़ लड़ीले दोऊ लाल , सोहत सुंदर नैंन बिसाल ।।
अलबेले अँग अँग रहे फबि, भूषन के भूषन छबिकी छबि ।।
सदा सलोने सहज सनेही , एक प्रान दीपति द्वै देही ।।
सीस सेहुरे जगमग जोती , जरे जराय महामनि मोती ।।
सजे सुरंग सहाने बागे , बैठे दंपति अति रति पागे ।।
मुख तँबोल रँग भीजि रहे लसि, बात करत कछु मंद मंद हँसी।।
सोभा के सरवर में मानौ, हुलसत हंस हंसिनी जानौं ।।
रस रंग भीने दोऊ लाला , सोहत उर मोतिन की माला ।।
दूलह दुलहिन नख सिख सोभा , श्रीहरिप्रिया निरखि चित चोभा ।। महा. उत्साह सुख , 143 .
विवाह उत्सव बड़ी धूमधाम से निकुँज में इन दिनों चल रहा है ।
ये रस है ….और रस का अर्थ ही होता है …जिसका आस्वादन किया जाये ….बार बार आस्वादन हो …जी ! तो सखियों का आनन्द देखिए वो इतनी मुग्ध हैं अपने लाड़ली लाल जू को निहारने में कि और बातें सब भूल जाती हैं …और स्वयं में खो जाती हैं । उनकी वाणी अवरुद्ध हो जाती है …नेत्रों से आनन्द के अश्रु बहते हैं तो वो भी इन्हें विघ्न डाल रहे हैं ….रोमांच भी इनको सह्य नही है …क्यों की इन नवेले दम्पति को निहारने में ये भी बाधक बनते हैं । रजत चौकी पर दोनों विराज मान हैं ….सखियों ने सजा दिया है …मौर मौरी भी सिर में पहना दिया है …रोरी का तिलक भी माथे में रचा दिया है ….अजी ! क्या बतायें ….
अब हरिप्रिया सखी कहती हैं ….देखो तो ….परात्पर के भी परात्पर का ये विवाहोत्सव है …इसका वर्णन हम क्या करें ! उनके अँग अँग में से जो अनन्त कांति प्रकट हो रही है …उस एक कांति से ही समस्त जगत में कांति फैल जाती है ….फिर उन अनन्त कांति को धारण किये ये हमारे युगलवर की कांति का हम क्या वर्णन करें ? यहाँ कुछ देर के लिए हरिप्रिया सखी मौन हो जाती हैं …वो कुछ बोल नही पातीं ….अनन्त सखियाँ हरिप्रिया की ओर ही देख रही हैं …इन्हीं के मुखारविंद से युगल के दर्शन किए जायें ।
अरी सखियों ! कुछ देर में लम्बी स्वाँस लेते हुए हरिप्रिया कहती हैं ।
देखो तो सही , ये दोनों युगल कितने सुन्दर लग रहे हैं …इनके दोनों विशाल नेत्र कितने करुणा से पूरित हैं ….और इनके अंग अंग से जो शोभा प्रकट हो रही है …वो तो और अद्भुत है ।
सखी जू ! आभूषण इनके अँग में दिव्य शोभा बिखेर रहे हैं ! पास में खड़ी एक सखी युगल को निहारते हुए हरिप्रिया को बोली थी । हरिप्रिया ने उस सखी की ओर देखा ….फिर युगल की ओर देखते हुए बोली …ना ! ये दोनों स्वयं में आभूषणों के भी आभूषण और सौंदर्य के भी सौंदर्य सिन्धु हैं …अरी सखी ! आभूषण क्या …ये स्वयं आभूषण को भी भूषित करने वाले हैं । एक श्याम और एक गौर ….सुन्दर सलौने हैं ….सहज प्रेम से युक्त हैं …..और सखियों ! सहज प्रेम से युक्त हैं इसलिए ये दो नही हैं ….एक ही हैं ….हाँ , देखने में दो लगते हैं ..किन्तु दो हैं नहीं । हरिप्रिया ये कहते हुए रोमांचित हो जाती है । यहाँ भी हरिप्रिया मौन हो जाती हैं …और अपलक निहारती रहती हैं अपने युगल आराध्य को ।
ये इनके सिर में विराजमान मणियों और मोतियों से जड़ा हुआ सेहरा कितना सुन्दर लग रहा है ना …इसकी ज्योति पूरे निकुँज को जगमग कर रही है ..आहा ! अद्भुत है ये प्रकाश तो ।
मौन से कुछ मुखर हो हरिप्रिया सखी कहती हैं , और भाव सिन्धु में फिर डूब जाती हैं ।
सुन्दर अति सुंदर ये वस्त्र जो इन्होंने धारण किए हैं …इनकी शोभा का क्या वर्णन किया जाये ।
फिर उस पर भी ये दोनों आपस में हंस हंस कर जो बातें कर रहे हैं ….बातें रस भरी हैं ….आहा ! मुख में पान है …पान चबाते हुए हंस हंस के बतियाना ….अद्भुत से भी अद्भुत झाँकी है ये तो ..वैसे ही अरुण अधर थे इनके ..उस पर पान …और उस पर भी प्रेम से हंसना …प्रेम की बातें करना । हरिप्रिया सखी प्रेम से सनी हुयी हैं ….वो “प्रेम द्वय” को निहारते हुए प्रेम ही हो गयी हैं ।
अरी सखियों ! ऐसा लगता है ..जैसे …शोभा के सरोवर में दो हंस हंसिनी विहार कर रहे हैं …केलि कर रहे हैं …अरी देख तो ! रस रंग में भीजे ये युगल और उनके कण्ठ में शोभित मोतियों की माल …बलिहारी सखी ! बलिहारी । बलैयाँ लेती हैं हरिप्रिया …सब लेती हैं ….दुलहा दुलहन की नख सिख पर्यंत अद्भुताद्भुत झाँकी देखकर हरिप्रिया सखी का “चित्त”ही अब “चित” हो गया है….इसलिए अब वर्णन करने की क्षमता भी नही रही । बस निहार रही हैं इन छबीले रसिक दम्पति को ।
क्रमशः…..


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