!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!!”छयौ कोलाहल विपिन में”!!
गतांक से आगे –
!! दोहा !!
चित चोभा गोभा भयौ , नख सिख रूप निहार ।
चंदमुखी चहुँ ओर ते , गावत मंगलचार ।।
मंगल गावहिं विविध विधि , विधुवदनी चहुँ कोद ।
छयौ कुलाहल विपिन में , भयो सबन मन मोद ।।
मोद बढ्यो मन रँग चड्यौ, आनँद उमग्यो हीय ।
सोभा सरस सुहावनी , प्रीतम श्रीहरिप्रीय ।।
प्रीतम श्रीहरिप्रिया कौ , प्रति अंगनि अभिराम ।
दिन दूल्है देखौ सखी , लाल भाँवतौ भाम ।।
युगल केलि से रसाभिषिक्त श्रीवृन्दावन है ….यही निकुँज है ….दिव्य कनकमय भूमि है …जिसमें बड़े बड़े वृक्ष हैं ….उन वृक्षों से लता लिपटी हुयी हैं …..उन लताओं में नाना प्रकार के पुष्प खिले हैं ….उन वृक्षों में पक्षी गण हैं …..जो इन दिनों कुछ ज़्यादा ही आनंदित हैं …ये विवाह आदि का प्रसंग ही ऐसा होता है कि इसमें न प्रसन्न रहने वाले भी नाचते उछलते दिखाई दे जायेंगे …फिर ये तो निकुँज के पक्षी हैं …हर काल में आनंदित ही रहते हैं …फिर आज कल तो व्याहुला उत्सव जो चल रहा है …..सब पक्षी आदि प्रफुल्लित हैं …इनको जब देखो तब युगल मन्त्र का गान करते हुए ही आप पाओगे ….ये दाना भी नही चुगते ….ये तो प्रिया प्रीतम के युगल नाम का ही दाना चुगकर मत्त रहते हैं ….यानि नाम ही इनका आहार है …..अद्भुत है ये तो ! जी ! अब थोड़ा यमुना जी का भी दर्शन कर लो ….ये भी ब्याहुला उत्सव में अति प्रसन्न हैं …स्वाभाविक है …इनके भी तो प्राण सर्वस्व हैं ये । अब यमुना जी के तट में , मणि आदि से निर्मित तटों पर वृक्ष लता आदि झुक गए हैं ….इतना झुक गए हैं कि यमुना का स्पर्श ही कर रहे हैं । वहीं से होकर हंस गुजरते हैं ..अकेले नही …हंसिनी को भी साथ में लेकर । ऐसे अनन्त हंस हंसिनी के जोड़े जा रहे हैं …उनकी शोभा देखते ही बन रही है । यमुना कंकन के आकार की हैं …तो यमुना के मध्य में कमल के आकार की भूमि है इसे ही निकुँज कह लो या श्रीवृन्दावन कह लो …यही है ।
यहाँ अकेले कोई नही रहता …ये अकेले की साधना ही नही है …यहाँ स्वयं आनँद भी अपनी आल्हादिनी के साथ है ….तो यहाँ कोई अकेले कैसे रहे ? सखियाँ हैं ….आठ कुंजें हैं …उन आठ कुंजों में अष्ट सखियाँ रहती हैं …..और हाँ कोई अकेली नही रहती …सब के साथ अपना अपना परिकर है …अब इन अष्ट सखियों में जो प्रमुख सखी हैं श्रीरंगदेवि जू , श्रीहरिप्रिया सखी उनके साथ हैं ….और श्रीहरिप्रिया सखी जू के साथ “हम हैं” ।
अब इन अष्ट कुंजों के मध्य में “मोहन महल” है ..जहाँ हमारे युगल सरकार विराजमान हैं …..अब इस महल के चारों दिशाओं में थोड़ा देखिए ….चार सरोवर हैं ….उन सरोवरों में नाना प्रकार के कमल खिले हैं …चलिए …थोड़ा सरोवर का नाम भी सुन लीजिए …जिससे आप इन सरोवरों को पहचान लें ।
मानसरोवर , मधुर सरोवर , रूप सरोवर और स्वरूप सरोवर ।
इसी के मध्य में जुगल सरकार हैं ।
सजावट खूब है ….निकुँज स्वयं ही सज रहा है …क्यों की इस निकुँज के नायक और नायिका के विवाह उत्सव को धूम धाम से मनाया जा रहा है ।
अनादि दम्पति का ब्याह !
अद्भुत उत्सव है ये तो , है ना ?
चलिए दर्शन करें !
काल क्रम क्रियादि चेष्टाओं से सर्वथा रहित , सहज प्रेम रूप , उत्कृष्टतम रस रंग से रंजित …रसात्मक श्रीयुगल सरकार आज सिंहासन में नहीं …रजत के पाटे में विराजमान हैं …क्यों की …इनका ब्याहुला उत्सव चल रहा है ….और ये सखियाँ , रस लेकर , रस का धीरे धीरे आस्वादन करते हुए …इन्हें कोई शीघ्रता नही है ….इनका तो जीवन ही यही है ….इसलिए आनँद से अनुरंजित हैं ये सब ।
दुलहा दुलहिन के भेष में विराजे युगल को जब सखियाँ निहारती हैं तो उनका चित्त “चित” हो जाता है …और मन अति आनन्द के कारण शून्य हो जाता है । आहा ! ये चंद्रमुखी सखियाँ जब निहारती हैं युगल को ….तब इनकी स्थिति विचित्र हो जाती है ….कोई स्तब्ध हो गयीं हैं तो कोई हंसे जा रही है …तो किसी के नेत्रों से अश्रु बह रहे हैं ….क्यों कि आनँद सीमा पार कर रहा है । अरे ! देखो तो …हरिप्रिया कहती हैं …कोई सखी तो नृत्य कर रही हैं ….तो कोई उच्च स्वर से गायन करती हैं …कोई ताली बजाकर उछल रही है …किन्तु सावधान भी रहना है …इसलिए ये सब अपने आपको सम्भालती भी हैं……मंगल गीत गायन आरम्भ हो गया है …..गायन आरम्भ किया था हरिप्रिया जू ने तो सब अब गायन ही करने लगीं हैं …उन सबकी वाणी कोयल से भी मीठी है …इनका मंगल गान सुनकर दुलहा दुलहिन अति प्रसन्न हो रहे हैं ….लो जी ! अब तो मंगल गीत का कोलाहल पूरे निकुँज में छाने लगा है ….सब साथ में गीत गाने लगे हैं ….पक्षियों ने भी साथ देना आरम्भ कर दिया है ….आहा ! क्या दिव्य उत्सव आरम्भ हो चुका था । अब मंगल गीत आदि के कारण निकुँज में प्रसन्नता का वातावरण फैल गया है ….सबका हृदय आनँद रस में निमग्न होने लगा …..इन सबके बीच हरिप्रिया सखी फिर अपनी सखियों को कहती हैं ….सखियों ! जी नही भरता …ऐसा लगता है इन दोनों को अपने हीय में बसा लूँ …..और ऐसे ही हमें दुलहा दुलहिन के रूप में ये दर्शन देते रहें ।
ये कहकर हरिप्रिया मौन हो जाती हैं …….
यमुना जी अति आनन्द के कारण उछालें भर रही हैं …और उस उछाल में अनन्त अनन्त कमल पुष्पों को युगल चरणों में चढ़ा देती हैं यमुना जी ।
क्रमशः …..


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