!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! “परम उदार सहेलियाँ” !!
गतांक से आगे –
!! दोहा !!
नव नव सुख सरसावतौ , तन मन प्राण धना ।
लाड़ लड़ीली लाड़िली, बनरी संग बना ।।
बना बनी के ब्याह के , रसमय मंगलचार ।
श्रीरंगदेवि संग सहचरी , गावत परम उदार ।।
परम उदार सहेलियाँ , फूली फिरत फबैं ।
रंगनि रंग रँगावहीं , सेवति सखी सबैं ।।
सबैं सखी सब सेव में , फूली फिरत उमाहिं ।
रंगरंगीली अली को , रंग सोहिलौ चाहिं ।।
“अरी सखी ! आज देखौ तो इस श्रीवन की शोभा कितना प्रफुल्लित है । हाँ हाँ , ऐसा लग रहा है मनौं श्रीवन अपनी पूरी निधि-वैभव प्रकट करने को आतुर है । क्यों न करे सखी ! आज हमारे लाल जू और लाड़ली जू दुलहा दूलहिन जो बन कर बैठे हैं ….आज इनका विवाह महोत्सव जो है …और ऐसे मंगल काल में भी श्रीवन अपनी सम्पदा नही बिखेरेंगे तो कब ? “
ये सहेलियाँ परम उदार हैं …जी , ये समस्त में सुख बरसाती हैं अजी ! अपने प्राण सर्वस्व युगल निधि को भी ये सुख प्रदान करती हैं तो इनसे बड़ा उदार और कौन होगा ?
आप दुखी हैं ? आज आपको प्रतिकूल वातावरण मिला जिसके कारण आप का मन खिन्न है ? या कोई अप्रिय घटना घट गयी , आप चिंतित हैं ! चलो एक काम करो – इन परम उदार अपनी सहेलियों को याद करो । ऐसे ही याद कर लो ….रात का समय है ….आप एकान्त में हैं …कर लो याद । आप दुखी हैं ….बहुत दुखी हैं …संसार के स्वार्थपूर्ण व्यवहार से आप परेशान हैं ….उस समय एकाएक याद कर लो ….कि हमारी अपनी आत्मीय सहेली श्रीरंग देवि जू इस समय निकुँज में क्या कर रही होंगी ? ये प्रश्न उठाओ मन में । उत्तर छोड़ो ..बस प्रश्न करके छोड़ दो । उनके साथ उनकी सेवा में रहने वालीं हमारी प्यारी हरिप्रिया जू क्या कर रही होंगी ? वहाँ तो सब उत्सव में ही लगी होंगी ….ओह ! ब्याहुला महोत्सव हो रहा है वहाँ तो ….मेरी सहेलियाँ तो वहीं हैं …..जी ! आपकी सच्ची सहेलियाँ तो निकुँज में ही हैं ….आप सबको वहीं जाना है ….वही “निज देश है हमारा” । ये प्रयोग करो…..भावना के द्वारा वहाँ पहुँचो …वहाँ की सजावट तो देखो ….देखो ! कैसा सुख चारों ओर पसरा हुआ है …..दूर एक कुँज है उस कुँज से कोयल की सी ध्वनि प्रकट हो रही है …वहाँ सब पताका-तोरण तैयार कर रही हैं ….बैठ जाओ वहीं ……और अगर हो सके तो कोई सेवा ले लो ।
अब बताओ , दुख दूर हुआ कि नही ? सांसारिक परेशानियाँ कुछ कम हुई की नही ? यही कीजिए ….और अपनी इन उदार सहेलियों को मत भूलिये ….यही हमारी सब कुछ हैं । आहा ! सुनो ! सुनो ! हरिप्रिया क्या कह रही हैं ….हमसे कह रही हैं ….”श्रीहरिप्रिया प्रताप ते दुःख पायन पेलौ री” । सांसारिक दुःख को लेकर तुम दुखी हो …अरी ! युगल के प्रताप को स्मरण करो ….और इन सांसारिक दुखों को अपने पैरों से रौंद दो …..कुचल दो ….और चलो , जहाँ सुख रूप हैं ….सुख ही सुख बरस रहा है जहां ……सुखसार वहीं हैं …..चलो , वहीं चलो ।
निकुँज स्वयं ही दुलहिन की तरह सज कर तैयार हो गया है ….जगह जगह पर केसर की क्यारी रखी गयी हैं….उससे केसर की सुगन्ध पूरे श्रीवन में फैल रहा है …..गुलाब फूल के कहीं कहीं फुब्बारे छूट रहे हैं …..श्रीवन इतना आह्लादित है कि सखी ! नभ में भी देखो तो फूल खिले दिखाई देते हैं ….नभ में फूल ? जी ! ये निकुँज है यहाँ असम्भव कुछ नही है ….क्यों की सब चेतनघन हैं यहाँ ….सभी एक ही रस से भरे हैं ….और मन सबका एक है …वो मन हैं युगल …बाकी किसी के पास यहाँ मन ही नही हैं …ये सब वहीं से संचालित हैं ….इसका अभिप्राय ये है कि …युगल ही सब कुछ बने हैं …..सखी , निकुँज , लता , पुष्प , चन्द्र , सूर्य तारे …नभ , अवनी ..आप ये समझिये कि सब कुछ युगल के मन से हो रहा है ..और सखी ही सब बन रही हैं ।
रजत के पाटे में दुलहा दुलहिन विराजमान हैं …..उनके सौंदर्य का वर्णन कौन कर सकता है …..अनन्त सखियों में हरिप्रिया सखी कुछ वर्णन कर रही हैं ….”दुलहन कितनी प्यारी लग रही हैं देखो तो और अपनी दुलहिन को ही ये दुलहा देखे जा रहे हैं ….चलो सखी ! इन दोनों का अब “सोहिलौ” कराया जाये”……ये क्या है सोहिलौ ? दुलहा दुलहिन मण्डप में बैठकर एक दूसरे को देखेंगे …..एक हंसते हुए कहती है …देख तो रहे हैं ? हरिप्रिया भी खूब हंसती हैं और कहती हैं …हाँ , किन्तु ये विधि होगी तो इनको और आसानी होगी , एक दूसरे को देखने में …ये कहते हुए हरिप्रिया मंगल गीत गाने लगती हैं ….तभी अष्टयुथेश्वरी श्रीरंगदेवि जू …हाथ में मोतियों से भरी थाल लेकर आती हैं ….और दुलहा दुलहिन के ऊपर वारती हुई नाचने लग जाती हैं …ये देखकर हरिप्रिया सबको ताली बजाने को प्रेरित कर रही हैं ….अपनी गुरु रूपा श्रीरंग देवि जी को नाचते देख …हरिप्रिया उन्मत्त होकर और उत्साह से गीत गाती हैं …..बस फिर क्या था …श्रीललिता श्रीविशाखा सुदेवी , चित्रा आदि सखियाँ भी वहीं आजाती हैं …सब बहुत प्रफुल्लित हैं …आनन्द और उमंग से भरी हुयी हैं । प्रेम के रंग में सब रंग गयी हैं ….फूल गयीं हैं …अति सुख के कारण ये फूली फूली लग रही हैं …..अब तो ऐसा आनंद बढ़ चला है …कि सब इसी आनंद के सिंधु में डूब रहे हैं …. सब गोरी सखियाँ जब सुख की सीमा पार कर नृत्य करती हैं …तब इनके केश , जिसमें पुष्प लगे हैं …वो चारों ओर बिखर रहे हैं …उन्मद नृत्य के कारण इनके गोरे भाल में स्वेद आगया है …उससे इनकी सुन्दरता और बढ़ गयी है । चारों ओर से सब जय हो , जय हो , की ध्वनि हो रही है ….इन सखियों के ऊपर नभ से पुष्पों की अविरल वर्षा हो रही है ….इस तरह “सोहिलौ विधि “ की तैयारी श्रीरंगदेवि सखी जू ने कर दी है ।
लम्बी साँस लेकर रुक गयीं हैं श्रीरंगदेवि जू ….अपने केशों को सम्भालते हुए , साड़ी के पल्लू को कमर खोंसते हुए , जोर से बोलती हैं …..बोलो ….”दुलहा दुलहिन सरकार की”…..और पीछे से अनन्त ध्वनि गूंज उठती है ….”जय जय जय जय”।
क्रमशः …..


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877