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“श्रीराधाचरितामृतम्” 118 !!
प्रेम साधना की दो पद्धति – “वैधी और रागानुगा”
भाग 2
मैने उनसे पूछा था – “निकुञ्जरस” की प्राप्ति के लिये क्या करें ?
तब उनका उत्तर – “गोपाल मन्त्र का अनुष्ठान विधिपूर्वक …और निरन्तर युगलमन्त्र का जाप” ।
साधकों ! ये बात हुयी “वैधी” पद्धति की ………दूसरी पद्धति है …..”रागानुगा”……याद रहे इस पद्धति में शास्त्र विधि को ज्यादा मान्यता नही दी गयी है……..आपके हृदय में बसे “राग” को ही महत्व दिया है ।
जैसे – “प्रेम समाधि लगी है…….वो महात्मा बड़े प्रेमी थे ……..नाम था उनका श्रीहरिराम व्यास जी…….ब्राह्मण थे …….उच्चकोटि के विद्वान……..पर जब प्रेमसाधना में उतरे ……..वृन्दावन की माधुरी नें इनको पकड़ा ………प्रेम देवता जब इनपर प्रसन्न हुए ……..तब तो ये प्रेम सिन्धु में डूबनें लगे ……ध्यान करते करते देहातीत हो जाते थे ।
पर एक दिन …..महात्मा ध्यान कर रहे थे……रास का चिन्तन कर रहे थे ….युगल सरकार नृत्य में तल्लीन हैं …….दिव्य वृन्दावन है ………
आहा ! कितना आनन्द आरहा था नृत्य – रास में………..
पर तभी – पायल टूट गयी…….श्रीराधारानी की पायल टूट गयी ।
महात्मा जी नें देखा ………ध्यान में देखा , भावना में देखा …….टूट गयी पायल श्रीराधारानी की……अब क्या करूँ ? तब उन्होंने अपनी जनेऊ देखी……और उधर टूटी हुयी पायल…….तुरन्त उन्होंने अपनी जनेऊ तोड़ दी…….और श्रीराधिका जू के पायल में बाँधते हुए बोले …..ये जनेऊ का बोझा वर्षों से ढ़ो रहा था…..आज सही काम आया ।
इसे कहते हैं रागानुगा पद्धति प्रेम साधना की ।
रागानुगा पद्धति में कोई व्रत नही है ……कोई उपवास नही है …….कोई तीर्थ नही है……हमारे प्रिय का धाम ही हमारा सबसे बड़ा तीर्थ है …..।
रागानुगा वाले व्रत नही करते………..हमारे श्रीधाम वृन्दावन में श्रीराधाबल्लभ सम्प्रदाय वाले एकादशी का व्रत नही करते …….न हरिदासी सम्प्रदाय वाले करते हैं ……न ग्रहण मानते हैं ये लोग …..।
राग …….यानि किसी से अच्छे से चिपकना ……….अच्छे से किसी से जुड़ना ……उसे कहते हैं राग ……….जैसे – बालक के प्रति तुम्हारा होगा राग ……..परिवार के प्रति तुम्हारा होगा राग ।
क्रमशः….
🌹 राधे राधे🌹


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