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July 6, 2025 1:18 pm

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! “ये रसीली गर्विली सखियाँ” !! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! “ये रसीली गर्विली सखियाँ” !! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

!! “ये रसीली गर्विली सखियाँ” !!

गतांक से आगे –

रात्रि सोयें तो नाम जाप करते हुए सोयें ..नाम जाप में “युगल मन्त्र” को ही निकुँज का मन्त्र रसिकों ने माना है । उसका जाप करते हुए भावना करें कि निकुँज के ही एक सुन्दर सघन कुँज में हम सो रहे हैं …जहाँ चारों ओर पक्षी भी युगल मन्त्र का गान कर रहे हैं ..मन्द मन्द गान …रात्रि है ना ।

अब आप प्रातः उठें …वहीं …जहाँ सोये थे निकुँज में …सघन कुँज में …आप उठिये ….और भावना के चक्षु से चारों ओर दर्शन कीजिए ….प्रणाम कीजिए ….फिर जाइये ….यमुना जी के किनारे ….अत्यन्त निर्मल और नीलवर्ण की यमुना बह रही हैं ….किनारे में एक मणिमय चौकी है …..वहीं दातून भी है ….कीजिए …..फिर यमुना जी को प्रणाम करते हुए स्नान कीजिए …स्मरण रहे युगल मन्त्र को भूलना नही है …..फिर आइये किनारे ….देह को पोंछिये ….सुन्दर से सुन्दर साड़ियाँ हैं उन्हें लगाईये किन्तु पहले युगल की प्रसादी इत्र तो अपने अंगों में लगाइये …हाँ पाँवों में न लगाना । फिर वस्त्र , उसके बाद वेणी बनाइये …लम्बी वेणी बनाइये …उसमें पुष्प लगाइये ….अपने आपको सुन्दर बनाइये …सुन्दर तो आप हैं हीं तभी तो निकुँज में प्रवेश मिला है ….किन्तु और सुन्दर बनिये ….अपने लिए नही …युगल हमें सुन्दर देखें तो उन्हें अच्छा लगे …वाह ! सखी ! आप तो बहुत सुन्दर हो गयीं ….अब ? अब वहीं कहीं बैठ जाइये …युगल मन्त्र अब रोक दीजिए ….और सखियों का नाम लीजिए , नही नही , पहले अपना नाम लीजिए , निकुँज में प्राप्त इस भावमय वपु का नाम , गुरुदेव ने दिया होगा ना ? नही दिया तो उनसे माँगिये ……फिर अपना नाम लेते हुये सखियों का नामोच्चारण कीजिए ….और कहिए कि मैं……सखी आप श्रीरंगदेवि जू के चरणों में प्रणाम करती हूँ …..फिर उनकी सखियों का नाम लीजिए ……हे रसिकों ! कल जो “सोहिलौ उत्सव” में सखियाँ उपस्थित हुई थीं ….हमारी हरिप्रिया सखी जू ने उन सबका नाम बताया था ….सबका नाम याद कीजिए और नित्य लीजिए …..आज भी श्रीसुदेवि सखी जू के साथ सोहिलौ में ही अन्य सखियाँ आरही हैं …उनका दर्शन कीजिए और उन सखियों का भी नाम स्मरण रखिए …..देखिए ! अन्य भाव साधन साध्य हैं किन्तु ये “सखी भाव”साधन साध्य नही कृपा साध्य है। और कृपा सखिन की ही चाहिए ….क्यों कि यहाँ सखी ही मुख्य हैं …..इसलिए इस उत्सव में प्रवेश करना है ….तो श्रीमहावाणी के आधार पर चलिए ….कल के “रस सोहिलौ” उत्सव में सखियों का नाम जो दिया ….और आज भी देंगे …इसका कारण ही यही है कि इनकी पहले कृपा तो प्राप्त करो …उसके बाद ही उत्सवमय रसनिकुँज में आपका प्रवेश होगा ….आपने भावदेह प्राप्त कर लिया सखियों का नाम लेकर उनकी वन्दना भी कर ली …..अब चलिए ….ब्याह उत्सव में ।


                                           !! पद !! 

सखी सुदेवी के मंगलचार । गावत विमली ब्याह बिहार ।। सखी सहेली अरु सहचरी । मिली मंजरी और सुंदरी ।। काबेरी मंजुकेसी कवरा। केसी कंठीहार मनहरा ॥ महाहीरा अरु हीरा हारा। हितप्रदायका परम उदारा ॥ चटकभरी जहँ चारु चमेली। सुखमा-सनी महा अलबेली ॥ अहली महली फूली फूली। फिरत जुगल सेवा अनुकूली ॥ नीरजनैंनी नेह नवीना। नागरि नवला नवरंग-भीना ॥ भवनसुंदरी भावप्रकासा। सुखसरूपिका सहज सुहासा ॥ मंजुलमाला केलि कलावलि । रतिरसालिका रसरतनावलि ॥ मंजुमोदनी मौजमनोजा । मानमंजुला सरद सरोजा ॥ सुखदा सुखद सरूपासरसा। सानुरक्तिनी बाला बरसा ॥ महामोद मंगलगुन गावैं। मौज मनोजनि मन उपजावैं ॥ जूथ जूथ मिलि जुगल रिझावैं । नृत्य करें गावैंरु बजावैं ॥ रंगमंजरी रंग बढ़ावैं। चारु चोंपनी चोंप चढ़ावैं ॥ आनंदभरी उर में न समावैं। श्रीहरिप्रिया निरखि सुख पावैं ॥ १४६ ॥

अत्यन्त रसपूर्ण लताओं का निकुँज में अनेक समूह है ….लताएँ तो चलती हैं …..चलती हैं ? जी जैसे रंग रस की धारा चलती है ….वो ऊपर चढ़ती हैं वृक्ष पर फिर फैल जाती है ….लीजिए एक सुन्दर कुँज का निर्माण लता ने अभी कर दिया । उस कुँज में पुष्प भी खिल उठते हैं …बाहर एक छोटा सा सरोवर भी तैयार हो जाता है …उसमें कमल भी खिल जाते हैं …..चलिए आगे ….हमें तो ब्याहुला का दर्शन करना है …..है ना ? लीजिए आगये महल के आगे …..सुन्दर …अब क्या कहें तो ! सुन्दरतम ये कह सकते हैं , शब्दों की तो सीमा है किन्तु ये ब्याह मण्डप तो सीमातीत सौन्दर्य अपने में समेटे हुए है …..उस मण्डप के नीचे सुन्दरता की राशि किशोर किशोरी विराजमान हैं …इनके सिर में सेहरा बंधा है ….अनन्त सखियाँ इनको निहार रही हैं कुछ सखियाँ हैं जो उन्मत्त सी इधर उधर डोल रही हैं …कोई कोई हंस रहीं है …उनके हास्य में भी अद्भुत माधुरी दिखाई देती है । तभी सामने से देखा हरिप्रिया जू ने कि एक लम्बी पंक्ति सखियों की आरही है ….इस पंक्ति की प्रमुखा श्रीरंगदेवि जू की बहन श्रीसुदेवि जू हैं ….उनके हाथों में मोतियों से भरी थाल है ….जिसको सुन्दर लाल रेशम के वस्त्र से ढँका हुआ है ….मन्द चाल है श्रीसुदेवी जू की …..वो एक कदम दाएँ तो दूसरा बाँएँ ….ऐसे मटकती लचकती सहज नृत्य की अद्भुत भंगिमा में वो चली आरही हैं ….उनके साथ उनकी अनन्त सखियाँ पीछे हैं ….अच्छा ! थोड़ा ध्यान से सुनो ….छुन छुन छुन…..ये ध्वनि सखियों के नूपुर की आरही है ।

विमल गीत गा रही हैं श्रीसुदेवी जू …..उनके गाये गीत को पीछे आरहीं सभी सखियाँ दोहराती हैं ….ये विमल गीत ब्याह का मंगलाचरण है ….हरिप्रिया सखी श्रीसुदेवी सखी जू के पीछे आरही सखियों को जब देखती हैं तब सबको प्रणाम करती हैं ….और अपनी सखियों को भी प्रणाम करने को कहती हैं …अवनी पर माथा रखकर सब हरिप्रिया की सखियाँ प्रणाम करती हैं ।

श्रीसुदेवी सखी जू के पीछे आरहीं हैं ….हरिप्रिया बताती हैं …”कावेरी सखी जू” ….इनके वक्ष में श्रीजी के बाम चरण चिन्ह अंकित हैं ….हरिप्रिया आगे बताती हैं ….”मंजुकेशी जू”….ये ताम्रवर्णी हैं और लाल जू और लाड़ली जू को परस्पर हास्य संचार का काम करती हैं ….इनके पीछे जो मृदु हास्य बिखेरती आरही हैं …ये हैं “कवरा जू” इनके पीछे “केशी जू” “कंठीहारा जू” “मनहरा जू” “महाहीरा जू” “हीरा जू”…और इनके पीछे आरही हैं “हारा जू”….हरिप्रिया सखी इन समस्त सखियों को देखकर बहुत आनंदित हैं …..सब ब्याहुला के लिए सज धज के आयी हैं ।

अरी सखियों ! ये सब सखियाँ युगल को प्रेम देने वाली हैं …और परम उदार हैं ….हरिप्रिया के ये कहने पर अन्य सखियों ने पूछा ये परम उदार कैसे हुईं ? हरिप्रिया हंसती हैं ….जब युगल एकान्त में मिलते हैं ….दोउ लाल ललना रति रस में डूब रहे होते हैं ….उस रस को छोड़ना …उस रस रंग से भरे इन छबीले युगल का दर्शन छोड़ना …ये सामान्य लोगों के लिए कहाँ सम्भव है …किन्तु उस अपार सुख को भी ये छोड़ देती हैं और इन दोनों को एकान्त प्रदान करती हैं ….यही परम उदारता है इनकी ….हरिप्रिया सखी मत्त होकर ये बताती हैं । इतना ही क्या , अरी , चारों ओर देखो तो ….जिधर देखो चटकीली मटकीली ये सखियाँ आनन्द में डूबी इधर उधर कर रही हैं ….कोई कोई मत्त हो गीत गा रहीं हैं ….उनका वो गायन अति मधुर है …नही नही मधुरातिमधुर है । ये सब सखियाँ “नवल प्रेम” से भरी हैं ….हरिप्रिया से उनकी सखियाँ पूछती हैं …ये नवल प्रेम क्या है ? हरिप्रिया कहती हैं …ये नित्य इन किशोर किशोरी को निहारती रहती हैं …किन्तु नित्य निहारने के बाद भी इनका प्रेम पुराना नही होता …ये जब जब युगल को निहारती हैं तब इनको लगता है कि हम प्रथम बार ही देख रही हैं ….ये इनका नया नया प्रेम होता है ….यही है नवल प्रेम । देखो तो सब कमल नयनी हैं …और चतुर हैं ….अरी सखियों ! ये सब रस रंग में भींजी हुयी हैं । हरिप्रिया की बातें सुनकर उनकी सखियाँ भी प्रमुदित हो उठीं हैं ….हरिप्रिया कुछ देर मौन हो जाती हैं …क्यों कि वो इस महामहोत्सव की रूप रेखा से इतनी आनंदित हैं कि इनको कुछ सुध ही नही रही ।

“ये सब युगल की प्यारी हैं”…..हरिप्रिया फिर बोलना आरम्भ करती हैं ….ये युगल की “केलि कला” में प्रेम रस का संचार भी करती हैं ….केलि कला में प्रेम का संचार ये कैसे करती हैं ? सखी पूछती है …तो हरिप्रिया कहती हैं ….युगल के केलि कला में “मान और मिलन” का बड़ा ही महत्व है …यानि रूठना और मनाना ….ये प्रेम केलि को बढ़ाते हैं ….इन सबमें इन सखियों की ही भूमिका होती है ….ये कहते हुए हरिप्रिया हंसती हैं ।

हे सखियों ! ये रस रूप प्रिया प्रियतम हैं …इनका विवाह उत्सव हो रहा है ….देखो ! सखियों द्वारा जो मधुर गीत गाये जा रहे हैं ….उससे युगल के हृदय में भी प्रेम का संचार हो चुका हैं ….वो मुस्कुरा रहे हैं ….ये नाच रही हैं …उन्मत्त होकर जब ये नाचती हैं …तब तो दम्पति खुल कर हंसते हैं …देखो ! युगल के हास्य ने निकुँज को प्रकाशित कर दिया है …..बस यही तो इन सखियों का उद्देश्य था ….कि युगल को प्रसन्नता प्रदान करें …अब तो ये सखियाँ और नाचने लगीं ….मोतियों से भरी थाल जो लेकर आयीं थीं श्रीसुदेवी सखी जू …वो युगल के ऊपर वारते हुए पूरे निकुँज में फैला देती हैं ….और तभी यमुना से अनन्त हंस उड़ते हुए आते हैं ….और मोती चुगने लग जाते हैं …ये झाँकी तो अनुपम है ….निकुँज अपनी पूरी छटा में है …और क्यों न हो ….निकुँज के अधिपति और स्वामिनी का ब्याहुला जो हो रहा है । अब तो सारी सखियाँ नाच उठीं हैं …..ये देखकर हमारे दम्पति सुख से भर गये हैं । हरिप्रिया नाचते नाचते युगल बलैयाँ लेने लग जाती हैं ।

क्रमशः …

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