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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 119 !!
निकुञ्ज रहस्य
भाग 1
अर्जुन सखी बन गए थे ……मान सरोवर में स्नान करते ही ।
सब कुछ अर्जुन नें ललिता सखी के कहनें पर ही किया था ।
सुन्दरी ! तुम तो बहुत सुन्दर हो गयीं….अर्जुन ! सखी रूपा अर्जुन !
हँसी थीं ललिता सखी ……फिर अर्जुन का हाथ पकड़ कर ले गयीं ।
सामनें वृन्दावन दिखाई दिया …….भू वृन्दावन …….पर कुछ ही देर में……तीव्रप्रकाश हुआ……और एक दिव्य धाम वहाँ खड़ा था ।
अर्जुन नें इधर उधर देखा………ललिता सखी अंतर्ध्यान हो गयीं थीं …….मात्र अर्जुन थे वहाँ………और वह भी सखी रूप में ।
इधर उधर दृष्टि दौड़ाई……..नाना प्रकार के कुञ्ज हैं……..लताएँ बड़ी मनोहारी हैं ……नाना जाति के पुष्प खिले हैं………छोटे छोटे सरोवर हैं ……जिनमें कमल के पुष्प हैं………कुमुदनी की संख्या ज्यादा है……कमल भी जो हैं वे अभी खिलेंगें नहीं ……क्यों की सूर्योदय नही हुआ……सामनें यमुना बह रही हैं ……..उसके तट पर बालुका, वो तो कपूर के चूर्ण जैसा लगता है……..हवा में भी कितनी सुगन्ध है ।
अरे ! अर्जुन नें आनन्दित होकर देखा ……पक्षी बोल रहे हैं …..राधे ! राधे ! पक्षियों में विशेष मोर – राधे ! राधे ! कहकर आनन्दित हो रहे हैं ………कोयल शुक मैना सबकी ध्वनि कितनी मधुर है ।
अर्जुन भाव विभोर हैं……..तभी दूर से हँसती खिलखिलाती सखियाँ दिखाई दीं…….अर्जुन नें देखा……..ये समस्त सखियाँ बहुत सुन्दर थीं ……अर्जुन नें तो उर्वशी के प्रेम को ठुकरा दिया था ……पर ये जो सखियाँ हैं ………इनके आगे तो हजारों उर्वशी भी न्यौछावर हैं …………..कितनी सुन्दर हैं ये सब ।
अर्जुन नें देखा …………..वो सब चहकती हुयी ……..मंगल गीत गाती हुयी चली जा रही थीं …………
अर्जुन दौड़े…….उन सखियों के पास…….अर्जुन को अपनी ओर आते देखा तो सखियाँ रुक गयीं…….उन्होंने देख लिया था अर्जुन को ।
कौन हो तुम ? इस दिव्य निकुञ्ज में तो देवादियों का भी प्रवेश नही है …..यहाँ तो बड़े बड़े योगिन्द्र भी प्रवेश नही पाते हैं …….फिर तुम कैसे आगयीं यहाँ ? सखियों नें अर्जुन से पूछा था ।
ललिता सखी की कृपा से मैं यहाँ हूँ ……अर्जुन नें उत्तर दिया ।
पर तुम हो कौन ? अपना परिचय तो दो ……….हमें पता है ललिता सखी जू की कृपा से ही तुम यहाँ हो …………..पर तुम हो कौन ?
मैं वासुदेव का मित्र अर्जुन हूँ……….अर्जुन नें उत्तर दिया ।
नारायण के अवतार वासुदेव ………तुम उनके सखा हो ?
एक सखी नें तुरन्त पूछ लिया ।
हाँ ……पर वासुदेव नारायण के अवतार ? अर्जुन नें पूछना चाहा ।
हाँ ……..दो अवतार एक साथ हुए हैं पृथ्वी में ………मथुरा में वसुदेव के यहाँ जो कृष्ण प्रकटे ……वो नारायण के अवतार कृष्ण हैं …….पर गोकुल वृन्दावन में जिन कृष्ण नें लीला की …….वो नारायण के अवतार नही ……अपितु स्वयं अवतारी कृष्ण हैं……..वो कभी वृन्दावन छोड़कर नही जाते ……..वो कभी अपनी श्रीराधा से दूर नही होते ……पर भूलोक में तो लीला करनी है ………..इसलिये मथुरा और द्वारिका के लिये नारायण स्वरूप वासुदेव नें लीला को सम्भाला …….पर निकुंजेश्वर श्रीश्याम सुन्दर रहस्यमय रूप से वृन्दावन में ही व्याप गए हैं ।
सखियों से ये रहस्यमयी बातें सुनकर अर्जुन चकित हो गए…….
आपका परिचय ? आप लोग कहाँ जा रही हैं ?
अर्जुन नें हाथ जोड़कर पूछा ।
“युगलवर को उठानें”………….समय हो गया है मंगलाआरती का …….तो हम सब वहीं जा रही हैं …………क्या तुम भी चलोगी ?
अर्जुन नें प्रसन्नता व्यक्त की ……और चल पड़े सखियों के साथ ।
मध्य मध्य में फूलों की फुहार छूट रही है …………..मणि माणिक्य के मार्ग हैं ……………मार्ग के दोनों ओर कुञ्जों की शोभा अत्यन्त सुन्दर है …………लाल चटक रँग के फूल खिले हैं …………..कहीं कहीं गुलाब , जूही, केतकी बेला …………
ये कौन सी ऋतु है ? निकुञ्ज की शोभा में अर्जुन खो गए थे…….तो पूछ बैठे …………अभी कौन सी ऋतू चल रही है ?
सखियाँ हँसीं ………….निकुञ्ज में कोई जड़ नही है सब चैतन्य हैं ।
मतलब ? अर्जुन समझे नही थे ।
देखो उसे – तोता बनकर नाम रट लगानें वाली ….अर्जुन ! देखो !
ओह ! ये क्या ……वो कोई शुक यानि तोता नही …….वो तो सखी थी …..हँस पड़ी ………सखी के रूप में आते हुये ।
अर्जुन कुछ समझ नही पा रहे……..पर पूछते हैं , कि ये क्या है ?
हे अर्जुन ! निकुञ्ज का एक ही धर्म है …..”हित धर्म”……….हित मानें प्रेम ………अच्छा ! अर्जुन ! तुम्हे पता है……..प्रेम का सिद्धान्त है ….”प्रेमी के सुख में सुखी रहना”…….अपनें सुख की होली जलाकर …प्रियतम की प्रसन्नता में प्रसन्न रहना ।
अर्जुन ! तुमनें पूछा कि …….यहाँ ऋतु कौन सी है अभी ?
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
🙌 राधे राधे🙌


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