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July 6, 2025 10:12 pm

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 120 !!-यन्त्र विज्ञान और “निकुञ्ज” भाग 1&2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 120 !!-यन्त्र विज्ञान और “निकुञ्ज” भाग 1&2 : Niru Ashra

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 120 !!

यन्त्र विज्ञान और “निकुञ्ज”
भाग 1

🍃🌻🍃🌻🍃🌻🍃

ब्रह्म संहिता में लिखा है – ये लोक यन्त्रवत् होते हैं ……..

ब्रह्म संहिता में और पद्मपुराण में वैकुण्ठादि लोकों का वर्णन आता है ।

साधकों ! हमारा सनातन धर्म बहुत रहस्यों से भरा था ……पर हम लोग धीरे धीरे बहुत सी चीजों को भूल रहे हैं …..और वे दिव्य साधनाएं लुप्त प्रायः होती जा रही हैं ।

आप लोगों नें सुना होगा …………हमारे यहाँ यन्त्र विज्ञान था ……..वैसे आपलोगों नें कई शक्तिपीठों में देखा भी होगा ……यन्त्र की विशेष पूजा होती है ……….कई प्राचीन मन्दिर के तो मैने ऐसे दर्शन किये हैं ……जहाँ देवताओं की मूर्ति नही ….यन्त्र की ही पूजा होती थी ।

श्रीयन्त्र के दर्शन तो आप लोगों नें किये ही हैं …….और यन्त्र के नाम पर अब ये “श्रीयन्त्र” ही रह गया है ………अस्तु ।

साधकों ! मन्त्र “शब्द” है ………..और यन्त्र “रूप” है ।

शब्द में कम्पन होता है …………..ये बात तो आप जानते ही हैं ।

शब्द के कम्पन को आकाश जगह देता है ……….तब वह कम्पन आकार ले लेता है ………..और वह आकार रेखा की तरह होता है …….इस बात को मुझे सिद्ध करनें की आवश्यकता नही है …………सेटेलाईट के जमानें में ये बात अब सिद्ध करनें की रही भी नही है ।

आप जिस मन्त्र का जाप करते हैं ………..उस मन्त्र के शब्द से एक कम्पन पैदा होती है……..उसी कम्पन से यन्त्र की रेखाएं बन जाती हैं ……और वही लोक उस साधक के लिये तैयार होता चला जाता है ।

साधकों ! मैने विभिन्न पुराणों में पढ़ा है वैकुंठादि लोकों का वर्णन …….मुझे सबमें अलग अलग वर्णन पढ़नें को मिले. ……..ऐसा क्यों था ……जब वैकुण्ठ एक है ……तो वर्णन में इतनी भिन्नता क्यों ?

मुझे समाधान मिला ……….”.साधक कि रूचि के अनुसार लोक में भी भेद देखे गए हैं………मन्त्र जैसा होगा…… ..मन्त्र के साथ साधक की जैसी भावना होगी ….इष्ट जैसे होंगें………..तो वैसे ही आपके लिये लोक तैयार होता चला जाता है …………

यन्त्र में अगर आपनें ध्यान से देखा हो …..तो षट्कोण , त्रिकोण, अष्टकोण ऐसी रेखाएं होती हैं ………बिन्दु भी होते हैं …………पर उसमें कुछ लिखा भी होता है …………मैने बंगाल के तारापीठ में दर्शन किये …..एक यन्त्र था ……..यन्त्र कि पूजा भी बड़ी विधिविधान से होती थी….. यन्त्र में रेखाएं थीं …………पर खाली जगह में ………बंगाली भाषा में “ह्रीं” ऐसे बीज लिखे थे ……..पर लिपी बंगाली थी ……।

मैं गया था आबूरोड…….अम्बा जी शक्तिपीठ हैं……मैं वहाँ भी गया दर्शन के लिये ……वहाँ भी मैने यन्त्र के दर्शन किये …..यन्त्र कि पूजा वहाँ भी थी………पर मैने वहाँ देखा…….यन्त्र में रेखाएं तो थीं पर खाली जगह में …….गुजराती लिपी में ….. “ह्रीं” लिखा हुआ था ।

मैने बैगलोर में भी एक मन्दिर में देखा था ……….वहाँ भी यन्त्र में कन्नड़ में “ह्रीं” लिखा था ।

मैने एक शाक्त विद्वान से पूछा ……..( वैसे यन्त्र विज्ञान को जाननें वाले विद्वान अब बहुत कम होते जा रहे हैं )…….कि यन्त्र में जो लिखते हैं …….वो कहीं बंगाली में कहीं गुजराती में ………तो ऐसे किसी भी लिपि के लिखनें से उसका पूर्ण लाभ होगा ? यन्त्र का अपना प्रभाव रहेगा ? क्यों कि मैने सुना था की ….यन्त्र में एक बिन्दु भी कम या ज्यादा हो तो यन्त्र का कोई लाभ नही मिलता ।

बड़े विद्वान थे वे…..मुझ से बोले……तुम भक्ति मार्ग और भागवत कथावाचक होकर भी ये कैसा प्रश्न करते हो ? वो मुझ पर प्रसन्न थे ।

कहनें लगे ……ये सब आज कल बहुत कम लोगों को पता है ………

फिर मुझे समझाते हुए बोले …………..यन्त्र में ये क्लीं या ह्रीं जो भी लिखते हैं ……….या कुछ और भी लिखा जाता है उसका कोई महत्व नही है …..महत्व है …..यन्त्र में मात्र रेखाओं का ।

मैं बड़ा आनन्दित हो उठा था ………….शब्द से आकाश में कम्पन होता है ….और कम्पन से रेखाएं बनती हैं …………यानि मन्त्र से यन्त्र ।

शब्द से रूप कि ओर …….क्यों कि शब्द मन्त्र है और, और रेखाओं का बनना उस शब्द के हलचल का परिणाम है ………..वाह ! मैं आनन्दित हो उठा था उस दिन ।

मन्त्र जैसा होगा ……….कम्पन वैसी होगी ………..ये विज्ञान है ……और जैसा मन्त्र …….वैसा यन्त्र ……यानि लोक ।

साधकों ! हम चर्चा कर रहे हैं “निकुञ्ज” की………….प्राचीन वैष्णव शास्त्रों में लिखा है कि ………वैकुण्ठ सबसे ऊंचा है ……ऊपर है ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –

🦜 राधे राधे🦜
👏👏👏👏👏

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 120 !!

यन्त्र विज्ञान और “निकुञ्ज”
भाग 2

🍃🌻🍃🌻🍃🌻🍃

शब्द से रूप कि ओर …….क्यों कि शब्द मन्त्र है और, और रेखाओं का बनना उस शब्द के हलचल का परिणाम है ………..वाह ! मैं आनन्दित हो उठा था उस दिन ।

मन्त्र जैसा होगा ……….कम्पन वैसी होगी ………..ये विज्ञान है ……और जैसा मन्त्र …….वैसा यन्त्र ……यानि लोक ।

साधकों ! हम चर्चा कर रहे हैं “निकुञ्ज” की………….प्राचीन वैष्णव शास्त्रों में लिखा है कि ………वैकुण्ठ सबसे ऊंचा है ……ऊपर है ।

पद्मपुराण में भी अच्छे से वर्णन है इसका ।

पद्मपुराण में तो लिखा है कि – बहुत विस्तृत लोक है वैकुण्ठ ……….

इसमें एक तरफ नगरी है ……साकेत धाम ………जो भगवान श्रीराम के उपासकों का लोक है ………इसी साकेत में ही श्रीसीताराम जी विराजे हैं …….उनका अपना सम्पूर्ण परिकर वहीं रहता है …..हनुमानादि सेवा में नित्य निरन्तर लगे रहते हैं…….इसी वैकुण्ठ के दूसरी ओर ….गोलोक धाम है ……जहाँ नन्दनन्दन श्रीकृष्ण चन्द्र विराजे हैं ….उनके सखा , मैया यशोदा , बाबा नन्द समस्त परिकर यहीं रहता है ।

इस वैकुण्ठ से थोडा अलग……….उच्च में स्थित है – कुञ्ज ……….जहाँ सखियों का निवास है …………यहाँ प्रियाप्रियतम दिव्य लीलाएं सम्पादित करते रहते हैं ।

अब इसके ऊपर है …………..निकुञ्ज ……………..

साधकों ! इसी निकुञ्ज में अर्जुन आये हैं ………..सखी बना दिया है ललिता जू नें ………….और चकित होकर अर्जुन निकुञ्ज रस का आनन्द ले रहे हैं ।

हाँ …..एक बात और ……वैकुण्ठ ऐश्वर्य प्रधान है ………..पर गोलोक माधुर्य प्रधान है …………पर कुञ्ज , निकुञ्ज, नित्य निकुञ्ज निभृत निकुञ्ज ये तो विशुद्ध प्रेम के लोक हैं …………..इसलिये तो कहा गया कि इन लोकों में पुरुष का प्रवेश नही है ……पुरुष मात्र श्याम सुन्दर हैं यहाँ ……..बाकी सब सखियाँ ।

साधक अहंकार रहित हो ………..युगलमन्त्र का जाप करे ………युगल मन्त्र के अर्थ का चिन्तन करते हुए …………दिव्य सिंहासन में विराजे युगलवर , ऐसा ध्यान करते हुए…… “श्रीराधा” इन दिव्य नामों से प्रणायाम करते हुए ………..अपनी वृत्ती मन्त्राकार बना ले ।

अहंकार पूर्णरूप से गल गया …………तो हो गए सखी ।

फिर यही मन्त्र तुम्हे , यन्त्र निकुञ्ज लोक में पहुँचा देगा…..जहाँ सर्वत्र प्रेम का ही राज्य है….जहाँ प्रेम ही झरता है…..जहाँ प्रेम ही प्रेम है ।

सॉरी साधकों ! मैने आज आपको बोर किया……..चलिये – अब उसी प्रेम देश निकुञ्ज में ……..जहाँ अर्जुन सखी बने घूम रहे हैं और प्रेमसुधा को छक कर पी रहे हैं ।


मंगला आरती हो गयी थी…………निकुञ्ज में सखियों नें युगलवर को फिर सुला दिया था …….और स्वयं दूसरे कुञ्ज में चली गयीं ।

यहाँ कितना आनन्द है ……….सर्वत्र रस ही रस है ………आस पास पुष्पों की कितनी सुन्दर सुन्दर क्यारियाँ हैं ………हरी हरी घास कितनी सुन्दर लग रही है …..ऐसा लग रहा है कि हरा गलीचा ही बिछा दिया ।

तभी आकाश से छोटी छोटी बुँदे टपकनें लगीं ……….बादल छा गए ।

अर्जुन नें सखियों से पूछा ………जल्दी चलो ……बादल आरहे हैं ।

कुछ नही होगा………गर्मी थोड़ी लग रही थी ……..तो बुँदे पड़नें लगीं ।

सखी की बात सुनकर अर्जुन चौंके………क्या मतलब ? तुम्हारी कामनाओं से ही सब हो जाएगा…..तुम जो चाहोगी वही होगा ?

हाँ ……सखियों नें मन्द मुस्कुराते हुए कहा ।

अर्जुन क्या उत्तर देते………वे पीछे पीछे चलते रहे सखियों के ।

एक कुञ्ज में आगयीं थीं सखियाँ………चन्दन खिसनें लगीं ।

क्रमशः….
शेष चरित्र कल –

🦜 राधे राधे🦜

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Author: admin

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