!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! महालालची लाल जू !!
गतांक से आगे –
जी , ये रस क्षेत्र है …यहाँ लालच नही होगा तो रस खिलेगा नही । ये प्रेम है ….ये क्षेत्र ही ऐसा है जहाँ लोभ , राग , काम ये सब आकर उच्च स्थिति में स्थित हो जाते हैं । यहाँ वैराग्य नही चाहिए …किससे वैराग्य ? अपने प्रिय से ? फिर तो ये रस भूमि आपके लिए नही है …चले जाओ हिमालय वहीं आपके लिए ठीक रहेगा । ये तो रसस्थान है …..यहाँ की रीत अलग ही है ….जहाँ लोभ को सब दुर्गुणों का मूल बताया गया है ….यहाँ उसी लोभ के बिना आप रस मार्ग में आगे बढ़ ही नही सकते । अजी ! श्रीबाँके बिहारी जी के दर्शन का लोभ नही होगा तो फिर काहे के प्रेमी हो आप ….श्रीराधाबल्लभ जी के पौष मास में भोग लगने वाली खिचड़ी प्रसाद का लोभ नही होगा तो आप कैसे भक्त हो ? भीड़ है ….किन्तु श्रीराधारमण जी के मुख कमल को निहारने का लोभ नही होगा तो आप कैसे प्रीति मार्ग में सफलता पायेंगे । ये मार्ग ही अलग है …अब क्या कहूँ ….यहाँ का राजा ही लोभी है …..किसी को बुरा लगे तो लगे …..दिव्य श्रीवृन्दावन जिसे ही निकुँज कहा गया है …..यहाँ के राजा तो श्याम सुन्दर ही तो हैं ….वो तो महालालची हैं ….
“सहज सदा ललचोई बानि”
लीजिए , इनकी बानि ही ऐसी है ….ललचाने की ….लोभ की ।
अरे ! तुम देख तो रहे हो अपनी प्यारी को …..किन्तु इन्हें अभी ओर देखना है ….ये देख ही रहे हैं ….लाखों करोड़ों ब्रह्मा विष्णु बदल चुके हैं …पर इनका देखना खतम नही हो रहा …”राधे ! तेरो मुख नित नवीन सौं लागे” …..अन्य लोक में लोक बदल गए ….किन्तु ये कह रहे हैं ….अभी और …अभी जी भरा नही है ….और देखने दो । ये अद्भुत से अद्भुत रस का खेल है ….इसे समझना नही है ….इसमें तो डूब जाना है । अजी ! चलो अब उसी निकुँज में …जहाँ उत्सव मन रहा है …और इस उत्सव में आज हमारे लालन लालची हो उठे हैं ।
!! दोहा !!
रूप यहै भल पाय कें , भाग मानि हौं आज ।
चरन कमल की अरुनता , रहौं सरोजनि साजि ।।
चरन कमल की अरुनता , कमल कुमुद रँगाय ।
कहें मधुक केतकि कमल , कलसनि बास बसाय ।।
बास बसै तबहीं लहैं , सोभा परम रसाल ।
सीस फूल तरु राज बड़ , बन्यो सुनहरी भाल ।।
चारों ओर अनन्त सखियाँ हैं , पूरा निकुँज विशेष सजा हुआ है ….चारों ओर पुष्पों की सुगन्ध बह रही है ….पक्षियों का गान अलग ही सौन्दर्य को बढ़ा रहा है ….गान तो होना ही है ..क्यों की विवाह उत्सव जो चल रहा है इन दिनों ।
श्रीरंगदेवि जू अति प्रमुदित हैं ….उनका हृदय इस रस को सम्भाल नही पा रहा तो उनके नेत्र बह चले हैं ….उनके नयनों में एक अलग ही चमक है जो उस चमक को देखकर अंदाज़ा लगा सकता है कि इनका आनन्द उछल रहा है …कितने आनन्द में ये डूबी हैं । हरिप्रिया तो नृत्य करते करते उन्मद होकर बैठ ही गयीं हैं ….वो बारम्बार बलैयाँ ले रही हैं इन युगलवर की …..किन्तु ये क्या ! लाल जू तो अब अपनी प्यारी जू को देखकर कुछ बोलने लगे ….अब इनको बोलने की क्या आवश्यकता ….हरिप्रिया मुस्कुरा रही है …..सब सुनने को उत्सुक हैं ….इस समय पक्षी भी शान्त हो गये उन्हें भी सुननी है इन रसिक रसीले की बातें ……
हे सखियों ! देखो तो आज हमारी प्यारी जू कितनी सुन्दर लग रही हैं । इनका रूप सौन्दर्य अद्भुताद्भुत खिल गया है …मैं तो अब उस काल की प्रतीक्षा में हूँ जब मुझे इस रूप सौन्दर्य को अत्यंत निकट से निहारने का अवसर मिलेगा । लाल जू की बातें सुनकर सखियाँ चकित हैं …मन ही मन मुस्कुरा भी रहीं हैं । अरी सखियों ! मेरा वश चले तो मैं प्रिया जू के इन अरुण चरणों को अपने सुन्दर कमलों से सजा दूँगा । आहा ! तभी इन चरणों की शोभा होगी । एक सखी ने हरिप्रिया के कानों में पूछा …ये क्या कह रहे हैं ….हरिप्रिया हंसती बोलीं …ये कह रहे हैं …कि “मैं अपने हृदय कमल में इन चरणों को पधराना चाहता हूँ “। हरिप्रिया की बात सुनकर वो सखी खूब हंसीं ….
“फिर मैं उन चरणों में लाल कमल भी चढ़ा दूँगा …तब देखना …इन चरणों की शोभा और बढ़ जाएगी” । लाल जू की बात सुनकर दूसरी सखी बोली …ये क्या कह रहे हैं …लाल कमल ?
हरिप्रिया हंसते हुये बोलीं ….लाल कमल यानि इनके अधर …ये लाल जू प्रिया जू के चरणों को चूमना चाहते हैं ….ये कहते हुए हरिप्रिया ने फिर लाल जू की ओर देखा ….हे सखियों ! इतना ही नही ….अगर ये आज्ञा दें तो मैं इनके अंग अंगों को मधुक , केतकी , और कमल से सुन्दर सजा दूँगा ….सखी ने हरिप्रिया की ओर देखा तो हरिप्रिया मुस्कुराते हुए बोलीं …मधुक पुष्प से ये प्रिया जू के लाल गालों को सजायेंगे …केतकी से ये बाहों को सजायेंगे …और कमल से प्रिया जू के कलशों को …..सखी कुछ बोलने जा रही थी ….हरिप्रिया ने उसे चुप रहने के लिए कहा ।
हे सखियों ! जिस प्रकार प्रिया जी के सिर में शीश फूल लगा देने से वो कितना सुन्दर दिखाई देने लगता है ….ऐसे ही मैं जब उनके सुन्दर अंगों को पुष्पों से सजा दूँगा तो उनकी शोभा कितनी बढ़ जाएगी …ये तो मैं कल्पना भी नही कर सकता । ये कहकर लाल जू वहीं बैठ गये ….और आहें भरने लगे । लाल जू को ऐसा देख सखियाँ यही बोलीं ….”सहज सदा ललचोई बानि” ।
क्रमशः ….


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