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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 121 !!
सौन्दर्यबोध और संगीत – “निकुञ्ज लोक में”
भाग 2
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अब इस “निकुञ्ज उपासना” में आप देखोगे कि……….सखियाँ सुन्दर हैं……..कुञ्ज सुन्दर हैं ……..सुन्दर श्याम को …..और सुन्दर बनाकर उनका दर्शन करती हैं सखियाँ………उनकी आल्हादिनी हैं …….वो वैसे ही सौन्दर्य की मूर्ति हैं ……पर उनको भी और सजा कर उनके पीया के पास ले जाती हैं ……..सजे धजे सब हैं इस निकुञ्ज में ………सब सुन्दरता की सीमा हैं ………हद्द है ।
है ना विचित्र उपासना ये निकुञ्ज की ।
अब इस उपासना में संगीत का भी बड़ा सुन्दर जोड़ है ………
राग रागिनियों के माध्यम से सेवा में लगी रहती हैं निकुञ्ज की सखियाँ……………
क्या सुननी आती है आपको संगीत ?
ये क्या बात हुयी……..मुझ से पूछा था तो मैने यही उत्तर दिया ।
वो बहुत बड़े संगीतकार थे…….शास्त्रीय संगीत के गायक……..
मुझ से बोले ……..संगीत को कैसे सुनना है ये आना आवश्यक है ।
संगीत तो सर्वत्र है………हवा में संगीत है …..बहती नदी में संगीत है ……आकाश में संगीत है ………….सुननी आती है संगीत है ?
बाँसुरी बज ही रही है ……………सुनो कभी ………..श्री आल्हादिनी की पायल बज ही रही है ……….सुनो कभी ।
प्रेम देवता तुम्हे पुकार रहा है …………सुनो कभी ।
कबीर दास नें लिखा है – गगन गरजें बरसे अमी, बादल गहन गम्भीर ।
चहुँ दिसि दमके दामिनी , भीजें दास कबीर ।।
ये है संगीत है ………….जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में बज ही रहा है ।
इस प्रेम साधना का की विचित्रता ये है कि संगीत के बिना शायद ये प्रेम साधना अपूर्ण ही रहेगी ।
अब संगीत का अर्थ ये नही ………कि हमें हारमोनियम नही आता ……हमें सितार नही आता …..हमें ख्याल नही आता …..छोटा बड़ा कुछ नही आता …….ध्रुपद धमार नही आता …………
कोई बात नही ……नही आता तो मत आने दो ……….यहाँ जिस संगीत की बात हो रही है ………….वो स्वयं में उठनें वाला संगीत है ।
जब प्रेम में कोई डूबा होता है …..तो वह गुनगुनाता है ….गाता है ……..भले ही उसे न आये ………..।
तो इस निकुंजोपासना में ……संगीत का बड़ा महत्व है ……….
आप लोगों नें सुना होगा …………..हवेली संगीत के माध्यम से …….युगलसरकार को उठाया जाता है ………भोग लगाया जाता है ……फिर स्नान कराया जाता है …..फिर श्रृंगार ……फिर आरती …..फिर राजभोग……फिर शयन ……….और हाँ …….इन सबके सुन्दर सुन्दर पद हैं……..उनको गाया जाता है …………प्रेम से गाया जाता है ……..गायन से ही उस परमपद निकुञ्ज की प्राप्ति कितनों नें कर ली ….ऐसे हम वृन्दावनीय लोगों के सामनें कतिपय उदाहरण हैं ।
अस्तु ।
साधकों ! आप लोग समझ रहे हो ना, इस प्रेम साधना के रहस्यों को ……..साधकों ! ये दिव्य और अद्भुत साधना का मार्ग है ।
अर्जुन इसी निकुञ्ज में आये हैं ………….सखी बनकर ।
युगलसरकार की जय …….लाडिली लाल की जय ……..
दोनों “युगलवर” को लेकर अष्ट सखियाँ चल पडीं ।
स्नान कुञ्ज में ………वहाँ स्नान होगा दोनों का ।
ललिता और विशाखा छत्र लेकर चल रही हैं …….चँवर लिया है रंगदेवी सुदेवी नें………बाकी सखियाँ पीछे पीछे सुन्दर गीत गाती हुयी चल रही हैं……….अभी भी उनींदीं हैं इन की आँखें …….सखी ! देख तो नींद अभी भी इन दोनों युगलों की पूरी नही हुयी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🌸 राधे राधे🌸


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