श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सखाओ का अद्भुत प्रेम – “गौचारण प्रसंग” !!
भाग 2
“हम कन्हैया के हैं और कन्हैया हमारा”
अब जाओ तुम लोग ….जाओ यहाँ से ………….कन्हैया थक गया है ……उसे अब विश्राम तो करनें दो ………..बृजरानी जब तक क्रोध नही दिखातीं , ये सब कन्हैया को छोड़ते ही कहाँ हैं ?
बेचारे दुःखी मन से उठते हैं …………गले लगते हैं ……कोई हाथ मिलाता है ………कोई कन्धे में हाथ रखते हुए कहता है ……कल मिलेंगे ……..कोई, अपना ध्यान रखना ………..कोई सखा ……कल गेंद लेकर चलेंगे …….खूब खेलेंगे ……………बृजरानी भीतर से फिर आती हैं ……..अब जाओगे या नही ? बेचारे ग्वाल सखा बेमन से निकल पड़ते हैं अपनें अपनें घरों कि ओर ।
पता है कन्हैया आज मेरे पीठ पर चढ़ गया ………….ये कहते हुए वो सखा खूब हँस रहा है …….माँ ! पता है ……….मैं जीत जाता पर बस जीतते जीतते रह गया …………अगर मैं जीत जाता तो कन्हैया कि पीठ में मैं बैठता …………वो ग्वाला रात्रि का भोजन करते हुये अपनी माँ को बड़े उत्साह से बता रहा है ।
अब खा भी ले ……..बोलता ही रहता है ………उसकी माँ उसे खानें को कहती है …………पर – नही माँ ! कन्हैया तो कोमल है ……….बहुत कोमल मैं उसके ऊपर कैसे चढूंगा ………..उसे कष्ट होगा ……….अगर वो हार भी गया ना ……तब भी मैं मना कर दूँगा ।
पागल हो गया है तू ……..अकेले अकेले बोले जा रहा है ……जल्दी खा और जा सोनें ………..उस ग्वाले कि माँ नें फिर डाँटते हुए कहा ।
मैं आज बाबा के साथ सोऊंगा……….माँ को कह चुका है ये बालक ।
क्यों ? क्यों सोयेगा अपनें बाबा के साथ ? माँ भी पूछती है ।
वो रात भर मेरी बात सुनते हैं ……….तू सो जाती है ।
अच्छा ! अच्छा ! सो जाना बाबा के साथ ……………
माँ नें इतना कहा……….वो तो उठ गया और भागा सोनें के लिये ………रात्रि हो रही थी ।
बाबा ! कोई कहानी सुनाओ ना ! अपनें दादा से पूछ रहा है वो ग्वाला ।
अब सो जा…….कहानी सुनाओ !……कितनी रात हो गयी है पता है !
दादा नें डाँटा ।
ये रात क्यों होती है ? वो बालक फिर कुछ देर में ही बोल पड़ा ।
पर उसके दादा नें इसका कोई उत्तर नही दिया ।
कन्हैया ! कन्हैया ! कन्हैया !
गा रहा है वो बालक……….फिर एकाएक उठ जाता है ……..बाबा ! सुबह हो गयी ? चुप ! सो जा इतनी जल्दी कैसे सुबह होगी …….सो जा ……अब बोलेगा ना तो पिटेगा तू । बूढ़े बड़े बाबा नें डाँट दिया इसे ……….वो फिर सोनें का स्वांग करनें लगा ।
मुश्किल से आधी घड़ी ही बीती होगी ……….बाबा ! सुबह हो गयी ?
नही हुयी मेरे लाल ! सो जा….
……इस बार बड़े प्रेम से कहा था दादा जी नें ।
बालक को इस बार डाँट नही पड़ी तो फिर बोला वो ……
“बाबा ! पता है …….कन्हैया बहुत हाँसी करता है ……सबको हँसाता है ……..हम सब तो हँसते हँसते लोट पोट हो जाते हैं” …………..विचित्र है ये ग्वाला ………..हँस रहा है ये कहते हुए ।
मटकी फोड़ दी बरसानेंवारी कि………चार मटकी थी उसके सिर में ……..वो चारों मटकी फोड़ दी ……….एक ही कंकड़ में …….।
बाबा सुनो ना ! आप फोड़ सकते हो ? बालक का प्रश्न है ।
ना …..मैं नही फोड़ सकता ……..दादा भी हाथ जोड लेते हैं …….तू अब सो जा …………और मुझे भी सोनें दे ।
हाँ ………कोई नही कर सकता मेरे कन्हैया कि बराबरी …………कोई नही ……….भगवान भी नही………..फिर दादा से बोलनें लग जाता है……….बाबा ! कन्हैया भगवान है ?
झुंझला उठते हैं उसके दादा ………..
हाँ हाँ ….सारे भगवान यहीं बृज में पैदा हो गए हैं…….अब तो सो जा !
दादा नें इस बार कर्रा डाँटा है ………….इसलिये वो बालक चुप हो गया ……………..कुछ देर में उसे झपकी भी आयी ……….पर फिर उठ गया ……इधर उधर देखा ………..सोते हुए अपनें दादा को जगाया …….बाबा ! सुबह हो गयी उठो ……………
अरे ! …….उसके दादा नें ऊपर देखा …..आकाश में देखा ………हे भगवान ! अभी कहाँ सुबह होगी ………..अभी तो बहुत समय है ।
बहुत समय है ? बाबा ! कितना समय और है ?
बाबा ! आज सुबह क्यों नही हो रही ?
बाबा ! कहीं ऐसा तो नही होगा ना …..कि सूर्य उदित ही न हों ?
बालक के अनेक प्रश्न उठ खड़े हो जाते हैं रात्रि में ।
तू बता ! क्या करना है सुबह तुझे ? सुबह होनें कि इतनी प्रतीक्षा क्यों है तुझे ? दादा उठ कर बैठ गए थे अब ……….
बाबा ! सुबह होते ही मैं जाऊँगा अपनें कन्हैया के साथ गौ चरानें …..
बाबा ! कन्हैया के बिना मन नही लगता ……….रात नही कटती …….मन को शान्ति नही मिलती …………..कुछ अच्छा नही लगता बाबा ! ये कहते हुए वो ग्वाला रोनें लगा ………।
दादा नें उसे चुप कराया ………….फिर कहानी सुनानें लगे ……..सुनाते सुनाते वो स्वयं सो गए ………पर वो कृष्ण सखा देखता रहा आकाश में ……..तारों को …..फिर चन्द्रमा को ………..ये चन्द्रमा मेरा कन्हैया है …और हम सब तारे …….कबड्डी खेल रहे हैं हम सब …………
फिर हँस पड़ता है ………………
जैसे तैसे सुबह हो गयी ………..वो उठा …………….नाचा उठते ही ……..स्नान किया जल्दी …………और फिर अपनी गैयाओं को लेकर चल पड़ा नन्द भवन कि ओर ।
उद्धव कहते हैं ये स्थिति सबकी है ……..प्रत्येक ग्वाल बालों कि ऐसी ही स्थिति है ……कन्हैया के सिवा इनका मन लगता ही नही है ।
उद्धव गदगद् हैं ।
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