श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “नृत्यति वनमाली” – अहो ! दिव्य झाँकी !!
भाग 5
हृद् के भीतर तल तक पहुँचे थे कन्हैया …………वे कूदे ही इस प्रकार थे कि ………..तल को छू लिया उनके चरणों नें ।
तात ! कालियनाग सो रहा था …………पर उसकी पत्नियां जागी हुयी थीं ………….अपलक देखती रहीं नन्दनन्दन को ।
उद्धव आनन्दित हैं आज …..गदगद् होकर इन लीला कथाओं का गान कर रहे हैं …………..हँसे उद्धव – तात ! कन्हैया की रूप माधुरी से आज तक कोई बच न पाया है …………नाग स्त्रियों को भी इसनें अपनें रूप पाश से बांध लिया था ……..अहो !
नाग पत्नियों नें आज तक ऐसा भुवन सुन्दर रूप देखा नही था ………
इतना सुकुमार अंग ! सांवला सलोना …..और फिर वो नयन ……कटीले , रसीले अधर ……….
फुफकारना चाहिए था इन्हें ……….पर एक ही दृष्टि में अपना हृदय दे बैठीं नन्दनन्दन को ………….पुकार उठीं …………
कौन हो बालक ! कहाँ से आये हो ? क्या नाम है तुम्हारा ? किस स्थान से आये हो और क्यों आये हो ?
नागपत्नियाँ एक नही थीं अनेक थीं ………….सबनें प्रश्न किये थे ।
उफ़ ! ये नन्दनन्दन मुस्कुरा और दिए …………..
मेरा नाम कन्हैया है ……….मैं यहीं बृज का हूँ ………….मेरा माता पिता बृजराज और बृजरानी हैं …………मैं उन्हीं का पुत्र हूँ ।
कुछ देर रुके .कन्हैया ……फिर सोते हुये कालियनाग को देखा ……..मुस्कुराते हुये एक चरण का प्रहार उसके देह पर किया ।
नही नही ……..ऐसा मत करो ………सब नाग पत्नियाँ पुकार उठीं ।
मैं तुम्हारे पति कलियनाग को नथनें आया हूँ ।
कन्हैया के मुखारविन्द से ये शब्द सुनते ही सब कहनें लगीं ……..पर क्यों ? क्यों नाथोगे हमारे पति को ?
श्रावण आरहा है …………….मैने अपनी प्रिया श्रीराधारानी को वचन दिया है कि मैं कालीय नाग को डोर बनाकर बरसानें में कदम्ब के वृक्ष पर झूला डालूँगा और उसमें हम दोनों झूलेंगे ………..कन्हैया नें अपना प्रेम प्रसंग छेड़ दिया था ।
तुम प्रेम करते हो ? क्या नाम बताया तुमनें ? नाग पत्नियाँ मुग्ध हैं नन्दनन्दन के रूप पर …….
हाँ ……बहुत प्रेम करता हूँ …………श्रीराधा ……यही नाम है उनका ।
पर ये काम तुमसे होगा नही ? क्यों की हमारे पति नागराज हैं ……..उन्हें अपनी क्रीड़ा का साधन मत समझो ………हे सुन्दर बालक ! एक बार वो जाग गए ना …….तो उनके विष से तुम्हारा ये रूप झुलस जाएगा ……………तुम जाओ यहाँ से …..जाओ !
तुम मेरे बारे में इतना क्यों सोच रही हो !
मुझे पुष्प चाहिये ……..नीलकमल के पुष्प……पता है मेरे बाबा कितनें दुःखी हैं ….मेरा पूरा बृजमण्डल दुःखी है ……कल तक अगर नीलकमल के पुष्प राजा कंस के पास न पहुँचे तो विध्वंस मचा देगा वो ।
हम दे देती हैं कमल के पुष्प ……जितनें चाहिये उतनें ले जाओ …..पर जाओ तुम यहाँ से ………नाग पत्नियाँ डर रही हैं ।
ना ,
बड़ी प्यारी झांकी थी ये कन्हैया की ………जब उन्होंनें मना किया ।
नीलकमल के पुष्प लेकर तेरा पति कालीय हमारे बृज में पहुँचायेगा ।
क्यों अपनी माता को जीवन भर दुःखी रखना चाहता है तू ……..क्यों अपनी प्रिया को जीवन भर आँसू देना चाहता है ?
तू मारा जाएगा बालक ! लौट जा …….हमारे पति अगर जाग गए ……
उसी समय उछलकर कन्हैया नें फिर अपनें चरण का प्रहार सोते हुये कालीय नाग के ऊपर किया था …………इस बार का प्रहार सबसे तेज था ……….वो उठ गया ……कालीय नाग फुफकारते हुए उठा ।
उसके मुख से विष निकल रहा था……वो और निकाल भी रहा था ।
डर से नागपत्नियां दूर खड़ी हो गयीं ।
*क्रमशः …


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