श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! अद्भुत महारास – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 1
तात ! गोपियाँ प्रेम वृत्ति हैं, श्रीराधारानी ब्रह्मविद्या हैं …..वे स्वयं आराधना हैं आराधिका हैं…..एक ब्रह्म और एक वृत्ती, ज्ञानी जन इस महारास की ऐसे ही व्याख्या करते हैं……..उद्धव कह रहे हैं ।
हृदय का रंगमंच है …….श्याम ब्रह्म साक्षात् खड़े हैं …….तदाकार वृत्तीयों की धारा के रूप में गोपियाँ हैं…….और इन सबका यहाँ नृत्य शुरू हो जाता है………वो अद्भुत नृत्य था……इस नृत्य नें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को थिरकनें के लिये मजबूर कर दिया…….यही तो महारास है ।
उद्धव ! गोपी किसे कहते हैं ? आध्यात्मिक अर्थ चाहते हैं विदुर जी ।
तात ! गो मानें इन्द्रियाँ, और इन्हीं इन्द्रियों से जो ब्रह्मरस का पान करे ……ये ब्रह्म रस श्यामसुन्दर ही तो हैं………जो इसका पान करे …….उसे कहते हैं – गोपी ।
सीधी सादी भाषा में कहूँ तो तात ! यह इन्द्रियों के द्वारा ही “भगवद्रस” को पान करनें की लीला का नाम – महारास है ।
ये उस रहस्य का भी उदघाटन करती हैं – जब यह आत्मा समस्त कर्मकाण्ड का तिरस्कार करते हुये …..अन्य अभिलाषाओं का परित्याग करते हुये …….शुष्क ज्ञान और बहिरंग ज्ञान को धता बताते हुये ……जब स्वयं की इन्द्रियों से ही आत्मा, भगवत् रस का पान करनें लग जाती है…….यानि – ये नेत्र दिए हैं तो देखनें के लिये ही ना ! फिर जब इन्हीं नेत्रों से उस ब्रह्म को देखना चाहें तो ब्रह्म श्याम बनकर त्रिभंगी बनकर तुम्हारे सामनें आकर खड़ा हो जाता है…….कान, उसकी प्रेम सुरीली बाँसुरी सुननें लग जाएँ……त्वक् इन्द्रियाँ उसे छूनें लगें …..आहा ! कहीं जानें की आवश्यकता ही क्या है ! ये इन्द्रियाँ ही हैं…….इन्हीं को सर्वप्रथम आधार बनाकर उस ब्रह्म रस का पान करें ……रस में एकाकार हो जाएँ……रस ही रस रह जाए……यही तो “रास” है ।
उद्धव बताते हैं ।
उद्धव और सरलता से महारास का अर्थ समझाते हैं विदुर जी को ।
वेद की ऋचाएँ जैसे अन्य देवताओं की उपासना बताते हुये अन्त में ईश्वर की ओर ही इशारा करती हैं……यानि , अग्नि के रूप में भी ईश्वर ….वायु के रूप में भी……आकाश के रूप में भी …..इन्द्र के रूप में भी ………हैं ये सब मूल में ईश्वर ही, ये सब हैं ईश्वर ही ……नाम भले ही इनके अग्नि देवता या वायु देवता हों ।………ऐसे ही तात !
इन गोपियों के भले ही बाहरी रूप से ब्याह हुआ हो ……….इनके पति हों ……..उन पतियों के नाम हों……..पर वो सब भी तो मूल रूप से कृष्ण ही हैं……उनके पति उन पतियों के पति भी तो श्रीकृष्ण ही हैं ।
वेद की ऋचाएँ हीं गोपियाँ हैं…….वो ब्रह्म रूप श्रीकृष्ण के सिवा और किसी की हो ही नही सकतीं …………उद्धव नें समझाया ।
इन्हीं अनन्त गोपी और श्रीकृष्ण का अद्भुत महारास वृन्दावन में हुआ ।
या विद्वान लोग कहते हैं – अभी भी महारास वृन्दावन में हो रहा है ।
ये अपूर्व ऐतिहासिक घटना भी थी और आध्यात्मिक घटना भी है ।
……..ये दोनों ही है ।
क्रमशः …


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