🍃🍁🍃🍁🍃
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 113 !!
“श्रीराधाभाव” की चर्चा – बलराम जी द्वारा
भाग 2
देखा तो उठकर खड़े हो गए कृष्ण……….सामनें थे बलराम ।
कन्हैया ! दोनों हाथों को फैलाये नयनों से अश्रु बहाते हुए खड़े हैं ।
कृष्ण नें देखा …………..दाऊ ! दौड़ पड़े कृष्ण …………अपनें अनुज को हृदय से लगाया था बलभद्र नें ।
तुम यहाँ क्यों हो ? चलो वृन्दावन कन्हैया ! दाऊ नें अपनें छोटे भाई से बड़े स्नेहवश कहा……….
कान्हा ! यहाँ क्या देख रहे हो ? अर्जुन के रोम रोम से कृष्ण नाम निकल रहा है ये देखकर तुम प्रसन्न हो ? अरे ! इसका मन तुममे लगा है, हाँ हाँ , अच्छे से लगा है ….. इसलिये रोम रोम से तुम्हारा नाम निकल रहा है …..पर ……नेत्रों से अश्रु बहनें लगे थे संकर्षण के ।
उन गोपियों का मन, उन गोपों का मन , तेरी मैया यशोदा का मन, तेरी राधा का मन ……हे कृष्ण ! तुममें नही है …….मन तुममें नही लगा है उन लोगों का ……अपितु उनका मन ही “कन्हाई” बन चुका है ।
भक्त वो है जो अपना मन तुममें लगाये हे कृष्ण ! ………जैसे ये अर्जुन ……ये पाण्डव ………पर वृन्दावन के प्रेमी अलग ही हैं ……..उन लोगों नें अपना मन तुममें नही लगाया ……….अपनें मन को ही तुम बनाकर खड़ा कर दिया …….अब अलग से उनके पास कोई मन ही नही है ।
ये अर्जुन, ये पाण्डव लोग युद्ध में विजय मिले यही प्रार्थना करते हैं तुमसे ……….कोई विपत्ति न आये रक्षा करो ……यही कहते हैं ये लोग तुमसे…….अपनें छत्रिय कुल की आन बान शान बनी रहे………ये चाहते हैं तुमसे ये लोग……….पर हे कृष्ण ! वो लोग …….वो लोग कुछ नही चाहते ……….न कुल की परवाह , न स्वर्ग, न नर्क की चिन्ता…….न स्वयं के कष्ट की ………..उन्हें परवाह है ……..वो माँगते हैं …….दिन रात माँगते रहते हैं भगवान से ……….पर अपनें नही ……..अपनें लिए कुछ नही …………मांगते हैं तो केवल तुम्हारे लिये ………तुम्हारे लिए ……कि तुम खुश रहो ……तुम प्रसन्न रहो ……..तुम्हे कोई कष्ट न हो ……….बस यही कामना है उन लोगों की ।
अश्रु बहते जा रहे थे बलराम जी के ……….और बोलते जा रहे थे –
मुझ से कहा उन देवतुल्य नन्दबाबा नें ……… ..दाऊ ! मत आनें को कहना उसे वृन्दावन ……………
मैने पूछा – क्यों ? क्यों न आनें को कहूँ ?
क्यों कि जरासन्ध शत्रु है मेरे लाला का ……….घात लगाकर बैठा है ….वो आएगा यहाँ तो कहीं ……………हम तो रक्षा भी नही कर पायेंगें अपनें लाला की ………………
अपनें आँसू पोंछते हुए बलराम जी नें कहा – राधा ……..वो तो साक्षात् प्रीति की प्रतिमा हैं …………..मुझ से कह रही थीं – दाऊ भैया ! श्याम सुन्दर प्रसन्न हैं तो वो वहीं रहें ………..हमें उनकी प्रसन्नता से मतलब है ………हम तो उनकी ख़ुशी में ही खुश हैं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🍁 राधे राधे🍁
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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 113 !!
“श्रीराधाभाव” की चर्चा – बलराम जी द्वारा
भाग 2
देखा तो उठकर खड़े हो गए कृष्ण……….सामनें थे बलराम ।
कन्हैया ! दोनों हाथों को फैलाये नयनों से अश्रु बहाते हुए खड़े हैं ।
कृष्ण नें देखा …………..दाऊ ! दौड़ पड़े कृष्ण …………अपनें अनुज को हृदय से लगाया था बलभद्र नें ।
तुम यहाँ क्यों हो ? चलो वृन्दावन कन्हैया ! दाऊ नें अपनें छोटे भाई से बड़े स्नेहवश कहा……….
कान्हा ! यहाँ क्या देख रहे हो ? अर्जुन के रोम रोम से कृष्ण नाम निकल रहा है ये देखकर तुम प्रसन्न हो ? अरे ! इसका मन तुममे लगा है, हाँ हाँ , अच्छे से लगा है ….. इसलिये रोम रोम से तुम्हारा नाम निकल रहा है …..पर ……नेत्रों से अश्रु बहनें लगे थे संकर्षण के ।
उन गोपियों का मन, उन गोपों का मन , तेरी मैया यशोदा का मन, तेरी राधा का मन ……हे कृष्ण ! तुममें नही है …….मन तुममें नही लगा है उन लोगों का ……अपितु उनका मन ही “कन्हाई” बन चुका है ।
भक्त वो है जो अपना मन तुममें लगाये हे कृष्ण ! ………जैसे ये अर्जुन ……ये पाण्डव ………पर वृन्दावन के प्रेमी अलग ही हैं ……..उन लोगों नें अपना मन तुममें नही लगाया ……….अपनें मन को ही तुम बनाकर खड़ा कर दिया …….अब अलग से उनके पास कोई मन ही नही है ।
ये अर्जुन, ये पाण्डव लोग युद्ध में विजय मिले यही प्रार्थना करते हैं तुमसे ……….कोई विपत्ति न आये रक्षा करो ……यही कहते हैं ये लोग तुमसे…….अपनें छत्रिय कुल की आन बान शान बनी रहे………ये चाहते हैं तुमसे ये लोग……….पर हे कृष्ण ! वो लोग …….वो लोग कुछ नही चाहते ……….न कुल की परवाह , न स्वर्ग, न नर्क की चिन्ता…….न स्वयं के कष्ट की ………..उन्हें परवाह है ……..वो माँगते हैं …….दिन रात माँगते रहते हैं भगवान से ……….पर अपनें नही ……..अपनें लिए कुछ नही …………मांगते हैं तो केवल तुम्हारे लिये ………तुम्हारे लिए ……कि तुम खुश रहो ……तुम प्रसन्न रहो ……..तुम्हे कोई कष्ट न हो ……….बस यही कामना है उन लोगों की ।
अश्रु बहते जा रहे थे बलराम जी के ……….और बोलते जा रहे थे –
मुझ से कहा उन देवतुल्य नन्दबाबा नें ……… ..दाऊ ! मत आनें को कहना उसे वृन्दावन ……………
मैने पूछा – क्यों ? क्यों न आनें को कहूँ ?
क्यों कि जरासन्ध शत्रु है मेरे लाला का ……….घात लगाकर बैठा है ….वो आएगा यहाँ तो कहीं ……………हम तो रक्षा भी नही कर पायेंगें अपनें लाला की ………………
अपनें आँसू पोंछते हुए बलराम जी नें कहा – राधा ……..वो तो साक्षात् प्रीति की प्रतिमा हैं …………..मुझ से कह रही थीं – दाऊ भैया ! श्याम सुन्दर प्रसन्न हैं तो वो वहीं रहें ………..हमें उनकी प्रसन्नता से मतलब है ………हम तो उनकी ख़ुशी में ही खुश हैं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🍁 राधे राधे🍁
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 113 !!
“श्रीराधाभाव” की चर्चा – बलराम जी द्वारा
भाग 2
देखा तो उठकर खड़े हो गए कृष्ण……….सामनें थे बलराम ।
कन्हैया ! दोनों हाथों को फैलाये नयनों से अश्रु बहाते हुए खड़े हैं ।
कृष्ण नें देखा …………..दाऊ ! दौड़ पड़े कृष्ण …………अपनें अनुज को हृदय से लगाया था बलभद्र नें ।
तुम यहाँ क्यों हो ? चलो वृन्दावन कन्हैया ! दाऊ नें अपनें छोटे भाई से बड़े स्नेहवश कहा……….
कान्हा ! यहाँ क्या देख रहे हो ? अर्जुन के रोम रोम से कृष्ण नाम निकल रहा है ये देखकर तुम प्रसन्न हो ? अरे ! इसका मन तुममे लगा है, हाँ हाँ , अच्छे से लगा है ….. इसलिये रोम रोम से तुम्हारा नाम निकल रहा है …..पर ……नेत्रों से अश्रु बहनें लगे थे संकर्षण के ।
उन गोपियों का मन, उन गोपों का मन , तेरी मैया यशोदा का मन, तेरी राधा का मन ……हे कृष्ण ! तुममें नही है …….मन तुममें नही लगा है उन लोगों का ……अपितु उनका मन ही “कन्हाई” बन चुका है ।
भक्त वो है जो अपना मन तुममें लगाये हे कृष्ण ! ………जैसे ये अर्जुन ……ये पाण्डव ………पर वृन्दावन के प्रेमी अलग ही हैं ……..उन लोगों नें अपना मन तुममें नही लगाया ……….अपनें मन को ही तुम बनाकर खड़ा कर दिया …….अब अलग से उनके पास कोई मन ही नही है ।
ये अर्जुन, ये पाण्डव लोग युद्ध में विजय मिले यही प्रार्थना करते हैं तुमसे ……….कोई विपत्ति न आये रक्षा करो ……यही कहते हैं ये लोग तुमसे…….अपनें छत्रिय कुल की आन बान शान बनी रहे………ये चाहते हैं तुमसे ये लोग……….पर हे कृष्ण ! वो लोग …….वो लोग कुछ नही चाहते ……….न कुल की परवाह , न स्वर्ग, न नर्क की चिन्ता…….न स्वयं के कष्ट की ………..उन्हें परवाह है ……..वो माँगते हैं …….दिन रात माँगते रहते हैं भगवान से ……….पर अपनें नही ……..अपनें लिए कुछ नही …………मांगते हैं तो केवल तुम्हारे लिये ………तुम्हारे लिए ……कि तुम खुश रहो ……तुम प्रसन्न रहो ……..तुम्हे कोई कष्ट न हो ……….बस यही कामना है उन लोगों की ।
अश्रु बहते जा रहे थे बलराम जी के ……….और बोलते जा रहे थे –
मुझ से कहा उन देवतुल्य नन्दबाबा नें ……… ..दाऊ ! मत आनें को कहना उसे वृन्दावन ……………
मैने पूछा – क्यों ? क्यों न आनें को कहूँ ?
क्यों कि जरासन्ध शत्रु है मेरे लाला का ……….घात लगाकर बैठा है ….वो आएगा यहाँ तो कहीं ……………हम तो रक्षा भी नही कर पायेंगें अपनें लाला की ………………
अपनें आँसू पोंछते हुए बलराम जी नें कहा – राधा ……..वो तो साक्षात् प्रीति की प्रतिमा हैं …………..मुझ से कह रही थीं – दाऊ भैया ! श्याम सुन्दर प्रसन्न हैं तो वो वहीं रहें ………..हमें उनकी प्रसन्नता से मतलब है ………हम तो उनकी ख़ुशी में ही खुश हैं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🍁 राधे राधे🍁
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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 113 !!
“श्रीराधाभाव” की चर्चा – बलराम जी द्वारा
भाग 2
देखा तो उठकर खड़े हो गए कृष्ण……….सामनें थे बलराम ।
कन्हैया ! दोनों हाथों को फैलाये नयनों से अश्रु बहाते हुए खड़े हैं ।
कृष्ण नें देखा …………..दाऊ ! दौड़ पड़े कृष्ण …………अपनें अनुज को हृदय से लगाया था बलभद्र नें ।
तुम यहाँ क्यों हो ? चलो वृन्दावन कन्हैया ! दाऊ नें अपनें छोटे भाई से बड़े स्नेहवश कहा……….
कान्हा ! यहाँ क्या देख रहे हो ? अर्जुन के रोम रोम से कृष्ण नाम निकल रहा है ये देखकर तुम प्रसन्न हो ? अरे ! इसका मन तुममे लगा है, हाँ हाँ , अच्छे से लगा है ….. इसलिये रोम रोम से तुम्हारा नाम निकल रहा है …..पर ……नेत्रों से अश्रु बहनें लगे थे संकर्षण के ।
उन गोपियों का मन, उन गोपों का मन , तेरी मैया यशोदा का मन, तेरी राधा का मन ……हे कृष्ण ! तुममें नही है …….मन तुममें नही लगा है उन लोगों का ……अपितु उनका मन ही “कन्हाई” बन चुका है ।
भक्त वो है जो अपना मन तुममें लगाये हे कृष्ण ! ………जैसे ये अर्जुन ……ये पाण्डव ………पर वृन्दावन के प्रेमी अलग ही हैं ……..उन लोगों नें अपना मन तुममें नही लगाया ……….अपनें मन को ही तुम बनाकर खड़ा कर दिया …….अब अलग से उनके पास कोई मन ही नही है ।
ये अर्जुन, ये पाण्डव लोग युद्ध में विजय मिले यही प्रार्थना करते हैं तुमसे ……….कोई विपत्ति न आये रक्षा करो ……यही कहते हैं ये लोग तुमसे…….अपनें छत्रिय कुल की आन बान शान बनी रहे………ये चाहते हैं तुमसे ये लोग……….पर हे कृष्ण ! वो लोग …….वो लोग कुछ नही चाहते ……….न कुल की परवाह , न स्वर्ग, न नर्क की चिन्ता…….न स्वयं के कष्ट की ………..उन्हें परवाह है ……..वो माँगते हैं …….दिन रात माँगते रहते हैं भगवान से ……….पर अपनें नही ……..अपनें लिए कुछ नही …………मांगते हैं तो केवल तुम्हारे लिये ………तुम्हारे लिए ……कि तुम खुश रहो ……तुम प्रसन्न रहो ……..तुम्हे कोई कष्ट न हो ……….बस यही कामना है उन लोगों की ।
अश्रु बहते जा रहे थे बलराम जी के ……….और बोलते जा रहे थे –
मुझ से कहा उन देवतुल्य नन्दबाबा नें ……… ..दाऊ ! मत आनें को कहना उसे वृन्दावन ……………
मैने पूछा – क्यों ? क्यों न आनें को कहूँ ?
क्यों कि जरासन्ध शत्रु है मेरे लाला का ……….घात लगाकर बैठा है ….वो आएगा यहाँ तो कहीं ……………हम तो रक्षा भी नही कर पायेंगें अपनें लाला की ………………
अपनें आँसू पोंछते हुए बलराम जी नें कहा – राधा ……..वो तो साक्षात् प्रीति की प्रतिमा हैं …………..मुझ से कह रही थीं – दाऊ भैया ! श्याम सुन्दर प्रसन्न हैं तो वो वहीं रहें ………..हमें उनकी प्रसन्नता से मतलब है ………हम तो उनकी ख़ुशी में ही खुश हैं ।
क्रमशः ….
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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877