!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! रंग सोहिलौ !!
गतांक से आगे –
!! पद !!
रंग सोहिलौ रंग रली कौ , रंग महल में रंग अली कौ ।।
श्रीरंगदेवी जू श्रीनव वासा , बिस्वाभा उत्तमा जू विलासा ।।
रँग रंग भीनी रंग रंगीली , नवल जुगल सेवा गरबीली ।।
सरस सरूपा मधुरा भद्रा , पद्मा श्यामा सुरस सारदा ।!
एक डार तोरी सी गोरी , जिनकें जीवन ऐही जोरी ।।
किरपाला देवदेवी सुन्दरि, पद्मास्या अरु इंदिरा सहचरि ।।
एकहिं साँचे माहिं ढ़री सी , छबि की छरी जराय जरी सी ।।
रामा बामा कृष्णा कामिनी , पद्मा भा श्रुति रूपा नामिनी ।।
कुंदन की सी वेलि सोहैं , महामोहिनी मन कों मोहैं ।।
गौरांगी केसीरु पवित्रा , कुम कुम देवी हितू विचित्रा ।।
कलकंठी ससिकलारुकमला , कंदरपा हित सुंदरि नवला ।।
भागवतिका माधवि असिता , गुन की आकरि बल्लभा लसिता ।।
सबै सखी सब सेवा माहीं , फूली – फूली फिरत उमाहिं ।।
भाँति भाँति के लाड़ लड़ावैं , लाल लडिले अति सुख पावैं ।।
रंग रँगी हिय रंगनि भारी , श्रीहरिप्रिया निरखि सुखकारी ।।
अपने आचार्य गुरु की आज्ञा सर्वोपरि है ….उनकी आज्ञा पर चलो तो निकुँज दर्शन , निकुँज प्रवेश सहज ही होगा । मन में शंका ना रखो , हम सखी ही हैं …यहाँ पुरुष देह में हैं या स्त्री देह में हैं उससे क्या ? हमारी गुरुरूपा श्रीरंगदेवि जू भी जब करुणावश भूतल पर अवतरित होती हैं तब वो श्रीनिम्बार्क प्रभु के रूप में ही होती हैं …पुरुष देह होता है उनका भी ….इसलिए ये सब नही विचारना ….पक्का विश्वास रखो …और कभी भी मन में किंचित भी नैराश्य घेर ले तो मन ही मन दोहराओ …”हम तो युगल सरकार के हैं” …अपने आप ठसक आजाएगी ।
***सखियों द्वारा यमुना के किनारे सुन्दर पुष्पों से छादित मंडप बना है ….वहीं पर रजत पाटे में युगल सरकार विराजमान हैं ….सुंदरतम वस्त्र हैं उनके …सिर में सेहरा सुशोभित है ….माथे में रोरी का तिलक और मोतियों का अक्षत लगा है ….ये दुलहा बने हैं और उनकी प्राण सर्वस्व दुलहन बनी हैं ….ये दोनों एक दूसरे को बस देखे ही जा रहे हैं । और अनंत सखियाँ इनको । सखियाँ अब इन दुलहा दुलहिन का “सोहिलौ उत्सव” मनाने जा रही हैं …जिसमें मधुर मिलन , यानि एक दूसरे को देखना होता है । सखियाँ दुलहा का सिर दुलहिन के सिर से छुवा देती हैं और रसमयी गीत गाती हैं …यही है सोहिलौ । अजी ! आनन्द तो चारों ओर बिखरा हुआ है आज …अनंत सखियाँ अपने अपने यूथ में चली आरही हैं …कोई नाचती हुई आती हैं तो कोई गीत गाती हुई । रस रंग में पगी श्रीरंगदेवि जू पहले हैं । इन्होंने लाल साड़ी पहनी हुयी है …सुरंग लाल । जपा कुसुम पुष्प देखा है ? जी , बिल्कुल वैसा ही लाल । इनके अंग का रंग कमल पुष्प की तरह है …और हाँ सुगन्ध भी कमल की ही आरही है …ये गोरी हैं ….शान्त हैं …अपने युगल को ये चंवर ढुराती हैं ……ये पहले आयीं …प्रसन्नता से भरी ये आयीं …इनके हाथों में डलिया है उसमें गुलाब के फूलों की पंखुडियाँ हैं …..ये नृत्य करती हुई आयी हैं ….नही नहीं , ऐसा लगरहा है । तभी हरिप्रिया सखी कहती हैं …ये अकेली नही हैं ….इनके पीछे तो अनन्त सखियों की पंक्ति है ….ये अद्भुत छटा देखते ही बन रही है । हरिप्रिया हम सब को श्रीरंगदेवि जू के पीछे आरही सखियों का नाम बता रही हैं …..इनके नाम हम बोलें या सुनें तो भी मंगल होगा ।
अरे ! ये तो हमारी श्रीरंगदेवि जू हैं ….जो आज प्रेम रंग में रँगी कैसी मत्त सी चली आरही हैं ….देखो तो ….अरे ! ये तो दूसरी “नव्यवासा जू” हैं …..जो श्रीरंगदेवि जू की ही चरण किंकरी हैं ….हरिप्रिया कहती हैं ….ये भी कितनी प्रमुदित हैं ना , अति उत्साहित और उमंग से भरी । हरिप्रिया इतना बोलीं ही थीं कि ….अब तो लम्बी कतार ही लग गयी । “विश्वाभा सखी जू“ “उत्तमा जू” और “विलासा जू” ये सब नाचती गाती हुई आरही हैं ……कैसी प्रेम रस में डूबी ये सब युगल को दुलहा दुलहन के भेष में निहार कर मतवाली हो उठी हैं । सखी जू ! पीछे जो आरही हैं ना ….वो तो कितना सुन्दर नृत्य कर रही हैं ….हरिप्रिया से एक सखी ने कहा । अरे ! वो …वो तो “सरसा सखी जू” हैं ….उनके पीछे भी हैं …हरिप्रिया उनको भी देखकर बोलीं ….ओह ! वो तो “स्वरूपा जू”, “मधुरा जू”, “भद्रा जू”, “पद्मा जू”, “श्यामा जू”, “सरसा जू”, और “शारदा जू” हैं । अरी सखियों ! ये सब सखियाँ कितनी गोरी हैं ना …हंसते हुए हरिप्रिया कहती हैं ….सबकी सब गौर हैं एक सी लग रही हैं ….ऐसा लग रहा है कि एक ही डाल से ये सब आई हैं….ये कहते हुए हरिप्रिया फिर गम्भीर हो जाती हैं ….और कहती हैं …इन सबकी प्राण जीवनी ये जुगल जोरी ही है । जय जय हो ।
किन्तु पंक्ति रुकी नही है …..वो तो और लम्बी है …..हरिप्रिया सबको देखती हुयी प्रसन्न होकर कहती हैं ….”कृपाला जू”, “देवदेवि जू”, “पद्मास्या जू”, और “इन्दिरा जू”…..ये सब भी आरही हैं और ये तो ऐसी लग रही हैं जैसे जरी का काम इन्हीं के अंगों में विधाता ने कर दिया हो …छड़ी की तरह ये एक ही साँचे में ढली हैं , ऐसी लग रही हैं ना ? अपनी गुरु हरिप्रिया जू के मुख ये सुनकर समस्त सखियाँ आनन्द के सर में डुबकी लगाने लगती हैं । और और देखो ….अभी तो आही रही हैं ….ये हैं …..”रामा जू” , “वामा जू”, “कृष्णा जू”, “कामिनी जू”, “पद्माभा जू”, “श्रुतिरूपा जू”…..ये सखियाँ तो ऐसी लग रही हैं जैसे सुवर्ण की कोई लतिका , लता हों…जो बलखाते हुए चल रही हो । हरिप्रिया जू सबको प्रणाम करती हैं …और अपनी अपनी सखियों को प्रणाम करने के लिए कहती हैं …सबने अवनी में अपना माथा रखकर प्रणाम किया है इन सखियों को । सब गौर अंगों वाली हैं ….अतीव सुन्दर रूप लिए हुए हैं ये सब ….अभी और आरही हैं सखियाँ तो ….हरिप्रिया सखी , जो जो सखियाँ आरही हैं उनका नाम बता रही हैं ….”केशी जू “, “पवित्रा जू “, “कुमकुमा जू “, “सुदेवी जू “, “हितू जू”, “कलकंठी जू” , “शशिकला जू “, “कमला जू “, “कंदर्पा जू “, “नवला जू “, “हितू सुंदरी जू “, “भागवतिका जू “, “माधवी जू “, “असिता जू “, “लसिता जू “, “बल्लभा जू” । हरिप्रिया सखी कहती हैं …ये सब कैसी फूली फूली हैं ना …वैसे कनक बेल की तरह पतली हैं ये सब …किन्तु आज इनके जीवन धन युगल का ब्याहुला है , और उस ब्याहुला में आज “सोहिलौ” है ….तो ये सब उसी के लिए आयी हैं ….इसलिए अति सुख के कारण फूल गयी हैं । हरिप्रिया कहती हैं ….धन्य हैं ये ….इनको केवल प्रिया प्रियतम को सुख देना है ….अजी ! “सुखसार” को सुख देने ये सब यहाँ पहुँची हैं । ये कहकर हरिप्रिया जू मौन हो गयीं …वो अब बस निहार रही हैं …विवाह विधि का इन नयनों से आस्वादन कर रही हैं ।
आगे बढ़ीं श्रीरंगदेवि जू …लाल और ललना दोनों के मस्तक को थोड़ा छुवा दिया ….फिर तो जितनी सखियाँ थीं वो सब “जुगल जोरी” पर पुष्प बरसाने लगीं ..चारों ओर जयजयकार होने लगा….निकुँज में आनन्द की मानौं बाढ़ ही आगयी थी । श्रीहरिप्रिया सखी ये सब देखकर बलि बलि जा रही है …और दुलहा दुलहन अति प्रसन्न हो उठे हैं । जितनी सखियाँ हैं सब मंगल गीत गाने लगी हैं । चारों ओर छटा बिखर गयी है ।
क्रमशः ….


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