श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ऊधो ! तू ना समझे प्रीत – “उद्धव प्रसंग 23” !!
भाग 2
मुक्त होनें से पूर्व उस वेश्या नें कहा था ……आशा दुःख का कारण है ।
इसलिये आशा को त्यागो ! उद्धव नें कथा का सार बता दिया ।
उद्धव ! हंसी गोपियाँ ………..आशा से ही दुःख प्रकट होते हैं …..ये बात भले ही स्वेच्छाचारिणी पिंगला नें कही हो ……….सत्य भी हो …….तो भी हम अपनी आशा नही त्याग सकतीं ……….पता है उद्धव ! जिस दिन हमारी आशा मर जायेगी ना ! उस दिन हम भी जीवित नही रहेंगी …………”.मैं आऊँगा” आहा ! कितनें भोलेपन से कहा था उन्होंने ……..हमें भी विश्वास था और है …..तभी तो हमारी साँसे चल रही हैं ….नही तो कब की रुक जातीं उद्धव !
तुम नही समझोगे ये प्रेम का पन्थ है ……कैसे श्याम की आस छोड़ दें !
और चलो हमारे वश में होता तो छोड़ भी देतीं पर अब बात हमारे हाथ से निकल चुकी है ….हमारा वश नही है ये हम साफ साफ बताये रही हैं उद्धव ! समझो , गोपियों नें उद्धव को उल्टा समझा दिया था ।
ये , ये यमुना …….इसको देखती हैं तो हमारा दुःख और बढ़ जाता है ….हृदय दहाड़ मार कर रोनें लगता है……कि इसी यमुना के तट पर हमारे साथ उसनें महारास किया था ……….अपनें सुरभित बाहों को हमारे गले का हार बना दिया था ………हम कैसे भूलें उद्धव !
गोपियाँ के नेत्रों में फिर जल भर आया था ।
तुम कुछ दिन यमुना में मत आओ ………उद्धव नें कहा …….यमुना आना कुछ दिन के लिए बन्द कर दो ………..इससे तुम्हे उनकी याद नही आएगी ।
रोते हुए हंस रही हैं उद्धव की बातों पर ………….मात्र यमुना की बात कहाँ है उद्धव ! ……इस सात कोस के गिरिराज पर्वत को देखती हैं तो उसकी याद आती है …………क्या करें ?
कुछ दिन के लिए गिरिराज पर्वत को भी मत देखो ……..उद्धव उपाय बता रहे हैं ।
पर कदम्ब वृक्ष तो दीखेगा ………उसमे खड़े होकर वो बाँसुरी बजाते थे …………..और याद आएगी ।
कदम्ब वृक्ष को भी मत देखो ……………उद्धव नें कहा ।
गोपियों नें आश्चर्य से उद्धव की ओर देखा…….फिर तो हमें घर के कक्ष में बन्द होना पड़ेगा ? हाँ , हो जाओ …….उद्धव ने कृत्रिम समाधान दिया गोपियों को ।
ठीक है हम हो गयीं घर के कक्ष में बन्द ………..बाहर कुछ नही देखेंगी …..पर उद्धव ! इस देह को उसनें छूआ है ……….अब इस देह का क्या करूँ ?
ये देह तो मिथ्या है ………….देह मिथ्या, मन मिथ्या, बुद्धि मिथ्या, अहं मिथ्या सत्य केवल आत्मा है …..इसलिये तो मैं कहता हूँ अद्वैत को साधो गोपियों ! उद्धव नें मौक़ा देख कर ज्ञान झाड़ दिया था ।
अद्वैत ? फिर तो सब अद्वैत ! तुम और हम ये मिथ्या ? उद्धव ! फिर मिथ्या को मिथ्या क्यों समझा रहा है ……..हमसब तो एक आत्मा ही हैं ना ? फिर मैं अज्ञानी आत्मा और तुम ज्ञानी आत्मा …..ये अज्ञान और ज्ञान आत्मा में तो नही होगा ? फिर क्या आत्मा को अज्ञान हो गया है इस वृन्दावन में ? एक अज्ञानी आत्मा के अज्ञान को मिटानें के लिये ज्ञानी आत्मा मथुरा से आया है ?
मैं इनको गँवार समझ रहा था ! तात ! मैं श्रीकृष्ण को बोला था ……कि मैं उन गंवार गोपियों के सामनें क्या बोलूंगा ……पर ये तो तर्क में मुझ से भी आगे थीं……..इन्होनें भले ही शास्त्र पढ़े नही थे …….पर इन्हें अनुभव था…..मेरी आज बोलती बन्द कर दी थी इन गोपियों नें ।
फिर गोपियों में दीनता का भाव प्रवेश कर गया था …………दीन होकर वो सब मुझ से कहनें लगी थीं ……….”हम क्या जानें ज्ञान योग ……..हम तो बस तुमसे ऐसे ही कह रही थीं ………अच्छा ! अब आगे बताओ घर के कक्ष में बन्द होकर क्या करें ?” गोपियों को ये सत्संग अच्छा लग रहा था ……अच्छा इसलिये लग रहा था कि बातें उनके प्रियतम की जो हो रही थीं …………और मैं उनके प्रियतम का सखा था ।
कक्ष के एकान्त में बैठकर – आँखें बन्द करो …………
पर वो तो खुली आँखों से ही दिखाई देता है……….इन्दु बोली ।
इसलिये तो आँखें बन्द करो ………..आँखें बन्दकरोगी तो वो नही दिखाई देगा । ……….उद्धव ! और दिखाई देगा, सुदेवी बोली थी ।
हृदय को शान्त रखो ……..उद्धव ! आग लगी है शान्त कहाँ से होगा !
अरे ! तुम समझती नही हो ……..उद्धव नें कहा ये ज्ञान की बात है ….तुम नही समझोगी ।
उद्धव ! तो ये भी प्रेम की बात है तुम भी नही समझोगे ।
ललिता बिलखते हुये बोली थी ।
शेष चरित्र कल –
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