उद्धव गोपी संवाद -भ्रमर गीत-६१ एवं ६२ : Niru Ashra
उद्धव गोपी संवाद(भ्रमर गीत)६१ एवं ६२ उमग्यौ जो तहं सलिल,सिंधु सौ तन की धारन।भींजे अंबुज नीर, कंचुकी, भूषण,हारन।।ताही प्रेम प्रवाह में,ऊधौ चल्यौ बहाई।भली ग्यान की मैंड़ि सी,ब्रज में प्रगटयौ आई।।-कूल को तृन भयौभावार्थ:-गोपियां कृष्ण को याद करते करते रोने लगीं इतना कि उनके नैंनन से अश्रुओं की धारा नदी रूप में बहने लगी। उनके नीर … Read more