श्रीकृष्णकर्णामृत – 64 : नीरु आशरा
श्रीकृष्णकर्णामृत – 64 हे विभो ! मेरा परिपालन करो… परिपालय नः कृपालयेत्यसकृज्जल्पितमार्त्तबान्धवः ।मुरली-मृदुल स्वनान्तरे विभुराकर्णयिता कदानु नः ॥६२।। हे साधकों ! इस रस राज्य की यही साधना है , यही उपासना है कि अपने आपको प्रियतम की सेवा में जीवन का उत्सर्ग कर देना । इसी सेवा के लिए तो बिल्वमंगल नाना प्रकार की कल्पना … Read more