!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 28 – “जहां अनाचार ही आचार है” ) : Niru Ashra
!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! ( प्रेम नगर 28 – “जहां अनाचार ही आचार है” ) गतांक से आगे – यत्रानाचार एवाचार : । अर्थ – जहां ( प्रेम नगर में ) अनाचार को आचार माना गया है । वो शबर जाति की थी, शबरी उसका नाम था । उसने गुरु बनाया … Read more