श्रीसीतारामशरणम्मम(18-1),“एक था पुरंजन, एक थी पुरंजनी”, & श्रीमद्भगवद्गीता : नीरु आशरा
Niru Ashra: “एक था पुरंजन, एक थी पुरंजनी” भागवत की कहानी – 22 “साधकों ! इस कहानी को ध्यान से पढ़ना । इस कहानी के पात्र हम ही हैं , ये कहानी हमारी है”। कहानी शुरू होती है यहाँ से ….. एक था पुरंजन । ये सदैव प्रसन्न रहता था …आनंदित रहता । क्यों ? … Read more