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July 21, 2025 8:51 pm

अध्याय 3 : कर्मयोग- श्लोक 3 . 31: Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग- श्लोक 3 . 31: Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 31 ये ते मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः |श्रद्धावन्तोSनसूयन्तो मुच्यन्ते तेSपि कर्मभिः || ३१ || ये – जो; मे – मेरे; मतम् – आदेशों को; इदम् – इन; नित्यम् – नित्यकार्य के रूप में; अनुतिष्ठन्ति – नियमित रूप से पालन करते हैं; मानवाः – मानव प्राणी; श्रद्धा-वन्तः – श्रद्धा तथा … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेम नगर 52 – “जहाँ हानि ही लाभ है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेम नगर 52 – “जहाँ हानि ही लाभ है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! ( प्रेम नगर 52 – “जहाँ हानि ही लाभ है” ) गतांक से आगे – यत्र व्यय एव लाभ : ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर में ) व्यय को ही लाभ समझा जाता है । हे रसिकों ! आज आरम्भ में एक पद सुनो, सुन्दर पद … Read more

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 107 !!-ग्वाल सखाओं के मध्य बलराम ..भाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 107 !!-ग्वाल सखाओं के मध्य बलराम ..भाग 1 : Niru Ashra

🙏🙏🙏🙏🙏 !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 107 !! ग्वाल सखाओं के मध्य बलराम ..भाग 1 मैं श्रीदामा ……….. राधा का बड़ा भाई………….राधा मुझ से छोटी है । पता नही और कितना कष्ट लिखा है हम वृन्दावन वालों के भाग्य में ! और यही कष्ट शताधिक गुना बढ़ जाता है तब, जब मैं अपनी बहन राधा को देखता हूँ……वर्षों … Read more