महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (032) : Niru Ashra
महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (032) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) कृपायोग का आश्रय और चंद्रोदय ‘रन्तुं मनश्चक्रे’ का दो अर्थ है- रन्तुं मनः कृतवान् चक्रे माने कृतवान् रमने का मन किया माने रमण का संकल्प किया और दूसरा अर्थ होता है- अमना भगवान् ने ‘रन्तुं मनश्चक्रे के कृतवान् निर्मितवान् मन बनाया। चंद्रमा ने कहा- यह … Read more