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September 14, 2025 8:47 am

अध्याय 3 : कर्मयोग-श्लोक 3 . 32 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग-श्लोक 3 . 32 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 32 ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् |सर्वज्ञानविमुढ़ांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः || ३२ || ये – जो; तु – किन्तु; एतत् – इस; अभ्यसूयन्तः – ईर्ष्यावश; न – नहीं; अनुतिष्ठन्ति – नियमित रूप से सम्पन्न करते हैं; मे – मेरा; मतम् – आदेश; सर्व-ज्ञान – सभी प्रकार के ज्ञान में; विमूढान् … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 53 – “जहाँ भूलना ही याद करना है” ): Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 53 – “जहाँ भूलना ही याद करना है” ): Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! ( प्रेम नगर 53 – “जहाँ भूलना ही याद करना है” ) गतांक से आगे – यत्र विस्मरणमेव स्मरणम् ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) भूल जाना ही याद रखना है । *हे रसिकों ! प्रीतम के सिवा सब भूलने लगो तो समझना कि … Read more

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 107 !!-ग्वाल सखाओं के मध्य बलराम …भाग 2 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 107 !!-ग्वाल सखाओं के मध्य बलराम …भाग 2 : Niru Ashra

🙏🙏🙏🙏🙏 !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 107 !! ग्वाल सखाओं के मध्य बलराम …भाग 2 मैं दौड़ पड़ा था ………ग्वालों के मध्य में बैठे थे दाऊ भैया …………..मुझे देखते ही वो भी उठकर खड़े हो गए ……….और अत्यधिक प्रसन्नता से मुझे अपनें हृदय से लगा लिया था । मनसुख, मधुमंगल, तोक, इत्यादि सब सखा थे वहाँ । मुझसे … Read more