अध्याय 3 : कर्मयोग-श्लोक 3 . 32 : Niru Ashra
अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 32 ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् |सर्वज्ञानविमुढ़ांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः || ३२ || ये – जो; तु – किन्तु; एतत् – इस; अभ्यसूयन्तः – ईर्ष्यावश; न – नहीं; अनुतिष्ठन्ति – नियमित रूप से सम्पन्न करते हैं; मे – मेरा; मतम् – आदेश; सर्व-ज्ञान – सभी प्रकार के ज्ञान में; विमूढान् … Read more