मुर्झा चांद, जलती राख और मैं : अंजली नंदा
हीकुछ कहने को बेताब है खामोशी अपने आप में एक किताब है।रात्रि की तन्द्रा को (निरिख्यन)अवलोकन करते-करते मैंने देखा जन्ह अब मध्य आकाश में (तक) उठ गया है।झिंकरी की झिंग झिंग (जिन जिन) स्वर संग को रजनीगंधा का उछलती सुगंध निशीथिनी का उम्र सुचित कर रहा हे(की सूचना दे रहा हे )(यह दर्शा रहा है)। … Read more