महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (070): Niru Ashra
महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (070) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) विकारयुक्त प्रेम से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है वेद पर प्रामाण्य बुद्धि करवाने के लिए ब्राह्मण की सेवा है। क्योंकि इनकी परंपरा ने वेद को धारण किया है, वेद के संस्कार को धारण किया है। इसीलिए अंतरंग साधन के अन्तर्गत ब्राह्मण-सेवा आयेगी। और बहिरंग साधन के … Read more