महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (008) : Niru Ashra
महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (008) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) रास की भूमिका एवं रास का संकल्प -भगवानपि०- रसो वै सः। रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति । अरे! तुमको रस चाहिए कि नहीं! आनन्द चाहिए कि नहीं? सोता रस चाहिए कि जागता रस? शान्ति की उपाधि से जो रस मिलता है वह सोत रस है … Read more