महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (028) : Niru Ashra
महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (028) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) भगवान की प्रेम-परवशता(योगमायामुपाश्रित:) ईश्वर जिसको जिस ढंग से मिलना चाहता है उसको वैसी साधन-संपत्ति पहले देकर तब भेजता है। पुरुष बनकर स्त्री परमात्मा को प्राप्त नहीं करेगी, स्त्री स्त्रीत्व के द्वारा ही परमात्मा को प्राप्त करेगी और पुरुष औरत बनकर – काजल, लगाकर, सिन्दूर लगाकर, … Read more