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July 20, 2025 8:54 pm

अध्याय 3 : कर्मयोग – श्लोक 3 . 38 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग – श्लोक 3 . 38 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 38 धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च |यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् || ३८ || धूमेन – धुएँ से; आव्रियते – ढक जाती है; वहिनः – अग्नि; आदर्शः – शीशा, दर्पण; मलेन – धूल से; च – भी; यथा – जिस प्रकार; उल्बेन – गर्भाशय द्वारा; आवृतः – ढका रहता है; गर्भः … Read more

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (042) : Niru Ashra

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (042) : Niru Ashra

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (042) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) भगवान ने वंशी बजायी बाँसुरी प्राणों को खींचती है। क्यों? बोले कि इसका स्वर प्राण से निकलता है। अगर आप वंशी की ध्वनि ध्यान से सें या वंशी को ध्यान से बजावें, तो प्राणधाम करने की जरूरत नहीं पड़ती है। प्राणायाम से जो सिद्धि मिलती … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेमनगर 58 – “जहाँ असन्त ही सन्त है”) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेमनगर 58 – “जहाँ असन्त ही सन्त है”) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! ( प्रेमनगर 58 – “जहाँ असन्त ही सन्त है” ) गतांक से आगे – यत्रासन्त एव सन्त : ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर में ) असन्त ही सन्त माने जाते हैं ।। * हे रसिकों ! सन्त की परिभाषा क्या ? शास्त्रीय परिभाषा सीधी सादी ये … Read more

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 109 !!-कन्हाई की वर्षगाँठ भाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 109 !!-कन्हाई की वर्षगाँठ भाग 1 : Niru Ashra

👏👏👏👏 !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 109 !! कन्हाई की वर्षगाँठभाग 1 मैं अनन्त, संकर्षण, बलभद्र, बलराम…….पर इनसे ज्यादा प्रिय नाम मुझे कोई लगता है तो वह है …..दाऊ …….दाऊ दादा ! कितनें प्रेम से बोलते हैं यहाँ मुझ से ………..मैं इसी प्रेम को फिर पानें के लिये तो वृन्दावन आया हूँ …….सोचकर आया था कि कुछ दिन … Read more

अध्याय 3 : कर्मयोग-श्लोक 3 . 37 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग-श्लोक 3 . 37 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग🌹🌹🌹🌹🌹🌹श्लोक 3 . 37🌹🌹🌹🌹श्री भगवानुवाचकाम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः |महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् || ३७ || श्री-भगवान् उवाच – श्रीभगवान् ने कहा; कामः – विषयवासना; एषः – यह; क्रोधः – क्रोध; एषः – यः; रजो-गुण – रजोगुण से; समुद्भवः – उत्पन्न; महा-अशनः – सर्वभक्षी; महा-पाप्मा – महान पापी; विद्धि – जानो; एनम् … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेमपत्तनम्” !! : ( प्रेमनगर 57 – “और जहाँ चन्द्र भी सूर्य लगता है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेमपत्तनम्” !! : ( प्रेमनगर 57 – “और जहाँ चन्द्र भी सूर्य लगता है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेमपत्तनम्” !! ( प्रेमनगर 57 – “और जहाँ चन्द्र भी सूर्य लगता है” ) गतांक से आगे – यत्र चन्द्र एव रवि : ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) चन्द्रमा भी सूर्य की तरह लगता है । *हे रसिकों ! प्रेम में सूर्य चन्द्रमा की तरह शीतल … Read more

आज के विचार-!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 108 !!-: Niru Ashra

आज के विचार-!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 108 !!-: Niru Ashra

🍃🍁🍃🍁🍃🍁 आज के विचार !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 108 !! बरसानें में बलरामभाग 3 ये प्रश्न फिर किया श्रीराधा जी नें । हे राधा ! आप लोगों को ही तो मेरा कन्हा याद करता रहता है …. कोई भी प्रसंग हो ……..आप लोगों को ही याद करता है । उसके हृदय में आप लोग हो ……..मैं झूठ … Read more

अध्याय 3 : कर्मयोग-श्लोक 3 . 36 ,: Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग-श्लोक 3 . 36 ,: Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 36 अर्जुन उवाचअथ केन प्रयुक्तोSयं पापं चरति पुरुषः |अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः || ३६ || अर्जुनः उवाच – अर्जुन ने कहा; अथ – तब; केन – किस के द्वारा; प्रयुक्तः – प्रेरित; अयम् – यः; पापम् – पाप; चरति – करता है; पुरुषः – व्यक्ति; अनिच्छन् – न … Read more

अध्याय 3 : कर्मयोअध्याय 3 : कर्मयोग🌹श्लोक 3 . 35 श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः || ३५ || : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोअध्याय 3 : कर्मयोग🌹श्लोक 3 . 35 श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः || ३५ || : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग🌹🌹🌹🌹🌹श्लोक 3 . 35🌹🌹🌹🌹श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः || ३५ || श्रेयान् – अधिक श्रेयस्कर; स्वधर्मः – अपने नियतकर्म; विगुणः – दोषयुक्त भी; पर-धर्मात् – अन्यों के लिए उल्लेखित कार्यों की अपेक्षा; सू-अनुष्ठितात् – भलीभाँति सम्पन्न; स्व-धर्मे – अपने नियत्कर्मों में; निधनम् – विनाश, मृत्यु; श्रेयः – श्रेष्ठतर; पर-धर्मः … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेमनगर 55 -“जहाँ सकामता ही निष्कामता है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेमनगर 55 -“जहाँ सकामता ही निष्कामता है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! ( प्रेमनगर 55 -“जहाँ सकामता ही निष्कामता है” ) गतांक से आगे – यत्र सकामत्वमेवाकामत्वम् ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर में ) सकामता ही निष्कामता है । *हे रसिकों ! प्रेमनगर में सकाम और निष्काम का झंझट नही है ….”अपने प्रिय के लिए चाहना” – भले … Read more