महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (053) & (054) : Niru Ashra
महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (053) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) जो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1 किसी ने कहा कि जब तक धर्म-अर्थ-कामरूप, त्रिवर्ग की प्राप्ति न हो तब तक कर्म करो, माने फल-पर्यन्त कर्म करते रहो। अब फल मिलना तो अपने हाथ में नहीं है- ‘फलमतः उपत्तेः’- फल देने वाला ईश्वर है; पता नहीं किस … Read more