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July 20, 2025 4:48 pm

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (036) : Niru Ashra

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (036) : Niru Ashra

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (036) (स्वामी अखंडानंद सरस्वती ) रास-रात्रि में पूर्ण चंद्र का दर्शन जिसने न तो चिकोटी की तकलीप देखी और न प्यार का मजा देखा- जिसने यह देखा कि यह हमारा प्यारा है, उसकी क्रिया पर नजर नहीं गयी, उस पर नजर गयी। एक बार तमाचा जड़ दिया उसने और एकबार … Read more

।। एक अद्भुत काव्य -“प्रेम पत्तनम्” ।।-( प्रेम नगर 48 – “जहाँ वियोग ही संयोग है” ) : Niru Ashra

।। एक अद्भुत काव्य -“प्रेम पत्तनम्” ।।-( प्रेम नगर 48 – “जहाँ वियोग ही संयोग है” ) : Niru Ashra

।। एक अद्भुत काव्य -“प्रेम पत्तनम्” ।। ( प्रेम नगर 48 – “जहाँ वियोग ही संयोग है” ) गतांक से आगे – यत्र वियोग एव संयोग : ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) वियोग में ही संयोग है । उद्धव सन्देश लेकर गये हैं बृज । सायंकाल बीत रहा है ….किन्तु रात्रि … Read more

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!-कोयला भई न राख भाग 3: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!-कोयला भई न राख भाग 3: Niru Ashra

🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃 !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !! कोयला भई न राखभाग 3 महर्षि ! उछल पडीं थीं श्रीराधारानी ……….क्या सच में मेरे प्रियतम नें विवाह कर लिया ! ओह ! मैं कितनी खुश हूँ ………..मैं आज बहुत प्रसन्न हूँ ……….सच ! मेरे प्राणधन नें विवाह कर लिया । अब ठीक है …………अब उनकी सेवा अच्छी होगी ………….जब … Read more

अध्याय 3 : कर्मयोग – श्लोक 3 . 26 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग – श्लोक 3 . 26 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 26 न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् || २६ || न – नहीं; बुद्धिभेदम् – बुद्धि का विचलन; जन्येत् – उत्पन्न करे; अज्ञानाम् – मूर्खों का; कर्म-संगिनाम् – सकाम कर्मों में; जोषयेत् – नियोजित करे; सर्व – सारे; कर्माणि – कर्म; विद्वान् – विद्वान व्यक्ति; युक्तः – … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 47 – “जहाँ जागना ही सोना है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 47 – “जहाँ जागना ही सोना है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! ( प्रेम नगर 47 – “जहाँ जागना ही सोना है” ) गतांक से आगे – यत्रानिद्रत्वमेव सनिद्रत्वम् ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर में ) जागना ही सोना है । *हे रसिकों ! ये बात ध्यान देने की है …कि जैसे निद्रा में सब कुछ विस्मृत करके … Read more

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !! भाग 2: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !! भाग 2: Niru Ashra

🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃 !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!भाग 2 द्वारिका जाकर रह रहे हैं समस्त यदुवंशी ? उनके नायक हैं श्रीकृष्ण ? कीर्तिरानी नें आगे आकर ये और पूछा – द्वारिका कहाँ है ? समुद्र के किनारे ये कृष्ण नें ही बसाया है…….महर्षि नें उत्तर दिया । दूर है ? कीर्तिरानी नें पूछा । हाँ देवी ! दूर … Read more

अध्याय 3 : कर्मयोग- श्लोक 3 . 25 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग- श्लोक 3 . 25 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 25 सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत |कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्र्चिकीर्षुर्लोकसङ्ग्रहम् || २५ || सक्ताः – आसक्त; कर्मणि – नियत कर्मों में; अविद्वांसः – अज्ञानी; कुर्वन्ति – करते हैं; भारत – हे भारतवंशी; कुर्यात् – करना चाहिए; विद्वान – विद्वान; तथा – उसी तरह; असक्तः – अनासक्त; चिकीर्षुः – चाहते हुए भी, … Read more

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) : Niru Ashra

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) : Niru Ashra

महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) श्रीकृष्ण की रासलीला का अर्थ🙏+++++++++++++++++++ श्रीमद् भागवत में रास पंचध्यायी का उतना ही महत्व है जितना हमारे शरीर में आत्मा का। श्रीमद् भागवत में रास पंचध्यायी दसवें स्कंध में 29 से 33 अध्याय में है। रास लीला के अर्थ को इस लेख में समझाया है। एक गोपी जो भगवान कृष्ण … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेम नगर 46 – “जहाँ बिना पैर वाले ही पैर वाले हैं”) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-(प्रेम नगर 46 – “जहाँ बिना पैर वाले ही पैर वाले हैं”) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! (प्रेम नगर 46 – “जहाँ बिना पैर वाले ही पैर वाले हैं”) गतांक से आगे – यत्रापद एव सहस्रपद : ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) बिना पैर वाले ही हजार पैर वाले हैं । हे रसिकों ! इस प्रेम नगर की पद्धति ही … Read more

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!-कोयला भई न राख भाग 1: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!-कोयला भई न राख भाग 1: Niru Ashra

🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃 !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !! कोयला भई न राखभाग 1 हे वज्रनाभ ! प्रेम जिन क्रमिक दशाओं को पार करता हुआ शुद्ध तत्व में प्रकट होता है ……..उस रहस्य को “श्रीराधाचरित” के माध्यम से मैं तुम्हे बता रहा हूँ …….शायद पूर्व में भी मैने तुम्हे कहा हो ……पर सुनो – स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, … Read more